Tuesday, May 31, 2011

मै ....और .....तुम

चित्र आभार ....रोज़ी सचदेवा ....................


मै ....और .....तुम


मैंने अपने आप को
शब्दों में ढाल लिया
खुद को मायाजाल
में फांस लिया
देख और समझ
कर भी सच्चाई को
मुंह मोड़ लिया ...खुद के
जीने के लिए ...
अस्तित्व की लडाई में
दिल पर नश्तर हज़ार लिए
******
जब भी मौका मिला तुम्हे
नहीं चुके तुम मेरा शरीर
रगड़ने से
अब खुद कि आँखों से वो
भोलापन कहाँ गया ?????
समय बीता ...बीते बसंत हज़ार
फिर भी क्यों ये जीवन है
कुछ है आधा अधूरा सा
क्यों मिलती है इस में
खाली और अपूर्ण जीवन
की झलक बार बार
तुम पल पल चुकते गए
मै वक़्त दर वक़्त
सागर बनती गई
मन की तुम्हारी विकृतियाँ
मुझ में आ आ कर
मिलती गई
अब काल्पनिक जीवन की
तस्वीरों के साये में
कटने लगे है ...
मेरे ये दिन और रात
मिट गया मुझ में '' मै ''
होने का एहसास
पर...तुम ''तुम'' बने रहे ........
पर...तुम ''तुम'' बने रहे ........
((अनु...))

Wednesday, May 25, 2011

चित्र आभार .....रोज़ी सचदेवा





इंतज़ार और इंतज़ार

आँखों में आंसू
दिल में दर्द
बातो में उम्मीद
जिन्दगी की सीख
दो पल साथ
जिन्दगी की आस
बूंदे बारिश की
तड़प सूखी धरती की
वही जाने
जिसने किया है कभी
किसी से भी प्यार..
दुलार और इंतज़ार ..............
****************
इंतज़ार अपनों का
कुछ सपनो का
इंतज़ार मीत का
उसकी प्रीत का
इंतज़ार ख़ुशी का
मिल कर उसे
बांटने का
इंतज़ार सागर का
अपनी लहरों के लिए
बस मन की भावनाओं में
इंतज़ार व्याकुलता का
मुलाकात का
इंतज़ार दो घडी
देखने का
करीब बैठ कर
बाते करने का
इंतज़ार ....बस इंतज़ार

.((अनु.))

Friday, May 20, 2011

प्यार की बलि





प्यार की बलि

फिर रिश्तो की दुहाई
ये जात पात का अंतर
ये गरीब की रेखा
जो बांधी ..है
अमीरों ने ..
दिल से दिल का है
मिलन ...
फिर क्यों ये जिन्दगी है
इस तलवार की धार पे
याद आने पर बन गई
बीते लम्हों की कसक
मजबूरी का तो
बन गया है साया
मेरे दिल की दीवार पे
मैंने जो ख्याब बोया था
वो हकीकत में खिला नहीं
जिसे से इज़हार किया
उसने इस समाज के डर से
स्वीकार किया नहीं ...
बिन बोले तनहा रहीं
तड़पती रहीं खुद की
बेज़ुबानी पे.....
होगा दो दिलो का मेल
ये सोच भी दगा दे गई.....
आँखों की भाषा
भी खूब बरसी मेरे
इस व्यथित मन पे
लगी चोट मेरे दिले -अफ़गार पे
(((अनु ))))


दिले -अफ़गार ...(बेचैन दिल की तड़प )




















चित्र आभार......रोज़ी सचदेवा

Monday, May 16, 2011

तेरे ही इंतज़ार में .....




तेरे ही इंतज़ार में

मंजिल दूर है क्या जो
वो आई नहीं अभी तक
दिल हमारा इंतज़ार और सब्र
करते करते पत्थर का हो गया

इस कदर सीना मेरा
इश्क से संलग्न हुआ
ना रहीं अब इस दिल में
कोई रंजिश उसके लिए

सामने जो पड़ गई वो
तो होश उड़ गए
ये सहोबत का असर है कि
यार मेरा भी ज़वा हो गया

दिखा के चेहरा -ए -रोशन
वो पूछते है हम से कि
भरी महफ़िल में भी
हम तन्हाँ से क्यूँ है

जानते है हम कि ये दिल
बेचैन क्यूँ है ...
मरना कबूल नहीं है मुझे
तेरे ही इंतज़ार में .....
(अनु)



Thursday, May 12, 2011

वो...राहें आज भी.....




वो...राहें आज भी है

आज क्यूँ सारा जहान सो गया
दूँ जिसे आवाज़ वो भी
कहीं खो गया
वक़्त कि बंदिशों में
बेबुनियादी इल्जामो में
दिल का हर रिश्ता
धराशाही हो गया
कागज़ पे लिख देने से
रिश्ते भी टूटते है .. ....

लबों की हँसीं
बन कर तितली उड़ चुकी है
वो सुनते नहीं हमारी
फिर भी हम उनके लिए
ही दुआ मांगते है
ना चाहते हुए भी
बिखर चुकी है इच्छाएं सारी
जो ज़माने के सितम है
वो ज़माना जाने
तुने दिए दिल पर
ज़ख्म इतने कि
हम अभी तक उसे ही
सिल रहे है ....

देते रहे वो अपनी
इच्छानुसार इलज़ाम यहाँ
और कबूल करने वाले
आज़ार (दुःख) भी नहीं दे सकते उन्हें

मुजरिम बुतों सी अब भी हूँ ....
तरसती है आँखे नम सी
अपने प्यार के दीदार के लिए
माना है हमने कि
गुज़र गए कारवां
अपनी मंजिल के लिए
पर तेरे इंतज़ार में
वो ..राहें आज भी है
वो...राहें आज भी है
(अंजु....(अनु)))

इस कविता को दो दिन पहले पोस्ट किया गया था ....ब्लॉग कि समस्या के कारण पोस्ट पे लिखी गई सभी टिपण्णी यहाँ से गायब हो चुकी है....दोस्तों से अनुरोध कि हो सके तो १ बार फिर से टिपण्णी देने में सहयोग करे

Sunday, May 8, 2011



हुस्न-ए यार

प्रेम के सागर में
हुस्न-ए यार का
दीदार करके आया हूँ
क्या हाले दिल कहूँ
इन लबे-इज़हार के लिए

देखो तो ज़रा उसकी
निगाहों की शोखी तो
मन करता है कि
रख लूँ उनको
सिर्फ अपने ही दीदार के लिए

झलकता है उसके अंग अंग से
आशा और भय का मिला जुला
सा नज़ारा यहाँ
कुछ तो अब भी बचा है
मेरी मोहब्बते-इज़हार के लिए

उसकी आँखों की मौन स्वीकृति ने
मुझे उस खुदा का मुजरिम बना डाला
क्यूकि उसकी इबादत से पहले
मैंने सजदा अपने प्यार का ......
अपने हुस्न-ए-यार का.. कर डाला

(अंजु....(अनु..)