tag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post841262364943433016..comments2024-03-25T22:17:54.601+05:30Comments on अपनों का साथ: ये औरत ....Anuhttp://www.blogger.com/profile/06148740562737916297noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-60184625450033131392014-01-22T06:12:24.978+05:302014-01-22T06:12:24.978+05:30उम्दा लेख
जब हर राह पर ये औरत सुनना पड़े तो लगता...उम्दा लेख <br />जब हर राह पर ये औरत सुनना पड़े तो लगता हैं की वाकई में???<br />आशा बिष्टhttps://www.blogger.com/profile/09252016355406381145noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-27970290664968821032014-01-21T19:27:17.400+05:302014-01-21T19:27:17.400+05:30बहुत सुन्दर व सशक्त अभिव्यक्तिबहुत सुन्दर व सशक्त अभिव्यक्तिMukesh Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/13025418427795988888noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-43988502977201265042014-01-18T20:11:12.767+05:302014-01-18T20:11:12.767+05:30प्रभावपूर्ण, मार्मिक कहानी।।।प्रभावपूर्ण, मार्मिक कहानी।।।Ankur Jainhttps://www.blogger.com/profile/17611511124042901695noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-29091025676866108022014-01-15T12:51:20.163+05:302014-01-15T12:51:20.163+05:30ओह ! बदलना होगा सोच को !ओह ! बदलना होगा सोच को !महेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09549481835805681387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-85313243037222857582014-01-13T18:10:42.867+05:302014-01-13T18:10:42.867+05:30This comment has been removed by a blog administrator.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-45799811399895675782014-01-13T15:12:20.535+05:302014-01-13T15:12:20.535+05:30जब भी औरत की बात की जाती है तो वही पुरातन संस्कार ...जब भी औरत की बात की जाती है तो वही पुरातन संस्कार उसको घेरे दीखाई देते है जबकि समाज हर छण बदलता हुआ महसूस होता है फिर भी औरतों के मामले में उसकी सोच रूडीवादिता पर टिकी हुई है.आपने बड़ी खूबसूरती से उसकी मानसिक सोच को उजागर किया है जहां वह त्रस्त होते हुए भी पूरी जिन्दगी अपने परिवार के लिए होम कर देती है.यह एक कडवी सच्चाई भी है और पूरा समाज मूक-दर्शक बना खड़ा दिखाई देता है,सुन्दर आलेख पढवाने के लिए आभार. ashok andreyhttps://www.blogger.com/profile/03418874958756221645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-58762968747524794902014-01-13T13:04:09.671+05:302014-01-13T13:04:09.671+05:30कटु सत्य ... जो सिर्फ खून के रिश्ते को ही रिश्ता स...कटु सत्य ... जो सिर्फ खून के रिश्ते को ही रिश्ता समझते हैं वो इससे आगे सोच भी क्या सकते हैं ... औरत, माँ, बहन, बेटी ... शायद किसी भी रिश्ते को वो समझ नहीं पाते ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-32709774725338854992014-01-13T11:51:31.116+05:302014-01-13T11:51:31.116+05:30समाज की सोच आज भी पुरातन हैसमाज की सोच आज भी पुरातन हैसंजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-13146845039732436462014-01-13T09:17:47.098+05:302014-01-13T09:17:47.098+05:30शब्दों को एक हद तक ही अहमियत दी जानी चाहिए...औरत ...शब्दों को एक हद तक ही अहमियत दी जानी चाहिए...औरत को औरत कहना गलत तो नहीं..क्रोध तो इन्सान को अर्ध पागल कर ही देता है, क्रोध में कही किसी बात को दिल से लगा लेना कोई बुद्धिमानी नहीं कही जाएगी..जीवन ने जो अच्छे पल दिए हैं उन्हें भी तो स्मरण किया जा सकता है...पर अहंकार का भोजन ही दुःख है वह दुःख पर ही पलता है, आत्मा सुख से उपजी है वह हर हाल में सुखी होना जानती है Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-37580566015510600182014-01-13T07:54:40.826+05:302014-01-13T07:54:40.826+05:30सटीक .. यथार्थ सटीक .. यथार्थ M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-5402454516694118612014-01-12T21:47:47.632+05:302014-01-12T21:47:47.632+05:30हर रोल को निभाती हुई औरत के लिए कोई उसका होने का र...हर रोल को निभाती हुई औरत के लिए कोई उसका होने का रोल तभी निभाता है जब उसे खुद उस औरत कि जरूरत होती है ......Dr. sandhya tiwarihttps://www.blogger.com/profile/15507922940991842783noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-15029589301617129112014-01-12T21:17:00.508+05:302014-01-12T21:17:00.508+05:30शानदार,सुंदर आलेख ...!
RECENT POST -: कुसुम-काय क...शानदार,सुंदर आलेख ...! <br /><b>RECENT POST </b><a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2014/01/blog-post_12.html#links" rel="nofollow">-: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,</a>धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-6777842500483716482014-01-12T21:16:43.930+05:302014-01-12T21:16:43.930+05:30शानदार,सुंदर आलेख ...!
RECENT POST -: कुसुम-काय क...शानदार,सुंदर आलेख ...! <br /><b>RECENT POST </b><a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2014/01/blog-post_12.html#links" rel="nofollow">-: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,</a>धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-34597975621706813622014-01-12T20:58:56.727+05:302014-01-12T20:58:56.727+05:30ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन स्वामी विवेकानन्द...ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन <a href="http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/01/blog-post_12.html" rel="nofollow"> स्वामी विवेकानन्द जी की १५० वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन </a> मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !ब्लॉग बुलेटिनhttps://www.blogger.com/profile/03051559793800406796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-31794805009493096412014-01-12T20:51:27.581+05:302014-01-12T20:51:27.581+05:30kadva hai par sach tho yahi hai....sadiyan gujar g...kadva hai par sach tho yahi hai....sadiyan gujar gayi...bahut kuch badla hai...fir bhi sach yahi hai Rewa Tibrewalhttps://www.blogger.com/profile/06289019678581015004noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-25390114090813224352014-01-12T20:49:57.119+05:302014-01-12T20:49:57.119+05:30kadva hai par sach tho yahi hai....sadi gujar gayi...kadva hai par sach tho yahi hai....sadi gujar gayi....kuch badlav aye hain par fir bhi....yahin sach hai Rewa Tibrewalhttps://www.blogger.com/profile/06289019678581015004noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-89099168659800654332014-01-12T10:52:53.918+05:302014-01-12T10:52:53.918+05:30यही विडंबना है हमारे समाज की सोच की जो आज भी पुरात...यही विडंबना है हमारे समाज की सोच की जो आज भी पुरातन है , आज भी औरत को महज वस्तु ही समझती है इंसान नहीं , एक ऐसा इंसान जिसे सबके बराबर मान सम्मान और स्वाभिमान की जरूरत होती है ………… काहे के रिश्ते मन बहलाव के खिलौने भर हैं , समाज में रहने के साधन भर क्योंकि असलियत में तो सबसे कमज़ोर कडी होते हैं एक ठेस और सारे रेत के महल धराशायी , एक ठोकर में अर्श से फ़र्श पर आखिरी साँस लेते दिखते हैं क्या ये रिश्ते होते हैं ? क्या इन्हें ही रिश्ते कहा जाता है जहाँ सिर्फ़ स्वार्थ ही स्वार्थ भरा होता है , सिर्फ़ अपनी मैं को ही स्थान दिया जाता है दूसरे के स्वाभिमान को भी कुचल कर …… क्योंकि स्त्री है वो मानो स्त्री होकर गुनाह किया हो , जिन्हें जन्म दिया , तालीम दी , साथ जीये हर सुख दुख में उनके लिये भी महज एक औरत जिसकी अपनी कोई पहचान नहीं तो इसे क्या कहेंगे , एक धोखा , एक ढकोसला भर ना ……… कहना आसान है कैसी औरत है ये मगर औरत बनना बहुत मुश्किल खुद को नकारती है तब बनती है एक सम्पूर्ण औरत , खुद को मारती है तब बनती है एक सम्पूर्ण औरत , खुद से लडती है तब बनती है एक सम्पूर्ण औरत और यदि वो ही औरत गर गलती से उफ़ कर दे तो कहलाने लगती है बदचलन , बेगैरत , बेहया औरत और हो जाती है उसकी सम्पूर्ण तपस्या धूमिल , उम्र भर का स्नेह , वात्सल्य ,प्रेम हो जाता है चकनाचूर ……… जानते हो क्यों क्योंकि कहीं ना कहीं भावनात्मक स्तर से ऊपर नहीं उठ पाती है औरत , वक्त के मुताबिक नहीं ढल पाती है औरत , सबसे बडी बात प्रैक्टिकल नही बन पाती है औरत और उन संस्कारों को नही बीज पाती है आने वाली पीढी मे औरत ……… त्याग तपस्या और वात्सल्य के आवरण से निकलने पर ही औरत लिख सकेगी एक नया औरतनामा और तभी सुधरेगी उसकी स्थिति और समाज की मानसिकता ।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-36707505769678121462014-01-12T08:02:28.966+05:302014-01-12T08:02:28.966+05:30.
जब भी कोई कलम उठाये
अपनी व्यथा,सामने लाये ,
खू.... <br />जब भी कोई कलम उठाये <br />अपनी व्यथा,सामने लाये ,<br />खूब छिपायें, जितना चाहें <br />फिरभी दर्द नज़र आ जाये<br />मुरझाई यह हँसी, गा रही, चीख चीख, दर्दीले गीत !<br />अश्रु पोंछने तेरे,जग में, कहाँ मिलेंगे निश्छल गीत ?<br />Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-22908578617919996632014-01-12T07:23:54.794+05:302014-01-12T07:23:54.794+05:30उसने कभी अपने रिश्ते या बाहर के रिश्तो में दिल से ...उसने कभी अपने रिश्ते या बाहर के रिश्तो में दिल से फर्क नहीं किया फिर क्यों उसे बार बार इस बात का अहसास करवाया जाता रहा है कि ''वो औरत है''....उसे अपनी मर्यादा में रहना ही होगा। … <br />यही तो एक औरत के जीवन का कटु सत्य है अंजु जी। बहुत सुन्दर और सशक्त कहानी। Aparna Bosehttps://www.blogger.com/profile/04096135756564696287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468501579776357892.post-41330829676383771242014-01-11T23:09:27.136+05:302014-01-11T23:09:27.136+05:30यही विडंबना है... मर्मस्पर्शी कहानी यही विडंबना है... मर्मस्पर्शी कहानी संध्या शर्माhttps://www.blogger.com/profile/06398860525249236121noreply@blogger.com