(आज मैं अपनी एक पुरानी पोस्ट आप सबके साथ साँझा कर रही हूँ ....इसे मैंने २४ फरवरी २०१० में लिखा था ....शब्दों के बदलाव के बिना और बिना किसी एड्टिंग के आप सबके सामने लाई हूँ )
मेरी तन्हाई में ,
किनते आंसू थे
कि तुझे से दूर होकर भी
तेरे पास थी मैं
चांदनी थी अपने चाँद के साथ
फिर भी बहुत उदास थी मैं |
मेरे चाँद को छिपा लिया बादलों ने
जो मेरे मन की
चांदनी की आखिरी आस था
सिमट गए मेरे सब सपने
उस अधूरी रात में
अब,टूट गए सब सपने
तुम्हारे आने की आस में |
क्यों किसी ने ना सुनी
मेरे बचपन और जवानियाँ
तनहा मैं जी गई
कितनी ही जिन्दगानियाँ
कमज़ोर हूँ..अकेली हूँ ...
फिर भी कि आँखों के बिन रोए
अश्क सी हूँ
मै वक़्त का वो भूला बिसरा लम्हा हूँ
या
तेरी निगाहों में खटका वो तिनका हूँ
जो,वो कहते है बोझ मुझे ,
पर,अब मैं तो खुद के ही
बोझ से भी हल्की हूँ |
ये मन अब किसी रिश्ते में ना बंध पाएगा
फिर भी ,
आज भी है इस दिल में
हजारों आरजुएँ
जो कभी नहीं होंगी
रहनुमाई सी
भटकन बडी है इस
प्यार की राहों में
जिस पर अब मुझे ही चलना है
क्यों
मेरी तन्हाई में ,इतने आंसू थे ||
अंजु (अनु)