Friday, March 23, 2012

मेरे बचपन की गलियाँ ......(अब कहाँ हैं ??)



मेरे बचपन की गलियाँ  
अब मुझे नहीं पहचानती
वहाँ की धूप -छाँव जो  
थी जीवन मेरा ...
अब भर देती हैं मन के
भीतर क्रंदन ही क्रंदन
बंदिशे जो अब और तब
भी लगती थी
मुझ पर ..
तान कर सीना मैं चलूँ
अपनी पिहिर की गलियों में
वो बात अब भी नज़र नहीं आती |

वहाँ के मेरे अनुपस्थित वर्ष
भर गए मौन मेरे इस सूने
जीवन में ...
और
जानती  हूँ कि मृत्यु तक
मुझे ऐसे ही जीना होगा
सिर्फ ये ही सोच सोच कर
कि काश ......काश
ना रोका जाता मुझे
बाहर जाने से ,
ज्यादा पढ़ने से ,
स्वछंद विचरण से ,
बराबरी करने से ,
मुहँ खोलने से ,
जन्म से अब तक  ,
ना रोका जाता
मुस्कुराने से ,
और बाद में
जीने दिया जाता मुझे
मेरी ही बेटी के संग
बिन गर्भपात के ,
मेरी ख्वाहिशों को
यूँ ना रौंदा जाता
किसी के अहम की खातिर
मुझे दर्द की सूखी नदी ना
दी जाती ...
मेरे अपनों के रहते हुए भी मैं , 
मूक तमाशा बनती रही,
मेरे सपनो का कत्ल हुआ  ,
क्यूँ कि दुनिया के दूसरे छोर पर
समाज उनकी प्रतिक्रिया की
प्रतीक्षा कर रहा था ,
तभी मेरे मौन ने
अपनी ही गलियों से
एक दूरी बना ली
और बन कर अनजान
मैंने अपनी ही सोच की
एक अलग ही दुनिया बसा ली ||


अनु .....

Thursday, March 8, 2012

वुमंस डे ....स्पेशल

वुमंस डे ....स्पेशल


नारी को सिर्फ एक दिन का सम्मान क्यों ?

वर्षों से अग्नि में तपती औरत
क्या साल में एक दिन सम्मान पाने को
क्यों नहीं हैं
हर दिन उसका ,
जिसके इर्द गिर्द घूमती
हर घर की दीवारे हैं
क्यों हम ये नहीं मान लेते
नारी बिन अधूरी
ये दुनिया सारी हैं
कल ,आज और कल
थी ये नारी हर
पुरुष पर भरी ,
नहीं तोड़ी मर्यादा इसने
अपनी सीमायों में
लहराई हैं इसने
अपनी विजय पताका ||


हमारे धर्मशास्त्रों में भी कहा गया हैं कि .............
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ,रमन्ते तत्र देवता ....अर्थात नारी को ज्ञान .सम्पति का स्त्रोत माना गया हैं तथा वह देवताओं के सम्मान पूजनीय हैं |
फिर क्यों  .. साल में एक दिन ही  नारी का दिन यानी वुमंस डे ....क्यों ??? हर दिन नारी (वुमंस ) के लिए नहीं हैं |
                                                         
( साथ के साथ होली ही बहुत बहुत शुभकामनएं ....सभी मित्रों को दिल से रंगों के त्यौहार होली की हार्दिक मुबारकबाद )


अनु

Sunday, March 4, 2012

फिर आई होली

फिर आई होली

वासंती परिवेश में
तन मन खिल गए
गली गली में रंग हैं
फागुनमय हैं ये आकाश
हँसी ठिठौली नाच रही हैं
हर घर के आँगन में
मज़ा ले रहे मधुर मधुर संबंध
चहकते इस होली में
आया है बसंत सज-धज कर
मजा लुटने होली में
बाग़ बगीचे में दिखे
फागुन के नवरंग
मादक शीतल पवन के
अंग अंग में मस्ती भरी
खेल रहा घर आँगन 
बदल गए सब ढंग
 प्यार प्रणय के गूंजते
नाच रहे बृज के राधा माधव
इस होली में सबके संग ||

आई होली झोली भर कर
खुशियाँ आज लुटाने को
रंगने नये ज़माने को
हर होंठो पर मुस्कान रहे
बनी रहे पवित्रता इस त्यौहार की ,
तन मन अपना रंग डालो
इस प्यार भरी रंगोली में
सृष्टि सतरंगी हुई इस
फागुनी मौसम में
प्रियतमा राह ताके
विरह की आग में
मन चंचल हो उठा
नयन ताकते उसके
कब आयंगे उसके ''धीर ''
होली मनाने को ...
आई होली ,झोली भरकर
खुशियाँ लुटाने को ||

अनु






Saturday, March 3, 2012

गोवा की एक शाम अकेले समुन्द्र के किनारे

                                                सूर्य अस्त का वो दृश्य जो बहुत वक्त से मैं अपनी यादो में कैद करना चाहती थी ...उसका मौका मुझे गोवा में मिला.....सुना था कि समुन्द्र किनारे सूर्य अस्त देखते ही देखते हो जाता हैं ..पर इसे पहली बार देखा...मात्र ४५ सेकिण्ड  के अंदर सूरज छिप  गया ...ऐसा लगा जैसे पहाड़ और पानी के बीच ऐसी कोई ताकत छिपी बैठी थी जिसने उसे जोर से पकड़ कर अपनी कैद में ले लिया हो .....

                                                
                                         ये लहरे ..जब चलते हुए कदमो को चूमती हैं तो उसका एक अलग ही एहसास होता हैं ...जो कभी शब्दों में नहीं लिखा जा सकता ...कोई साथ हो या ना हो ...पर मेरा मन हमेशा मेरा साथ देता हैं ..ये मैंने बहुत बार अकेले होने पर शिद्दत से महसूस किया हैं ...मैं रेत और पानी के  बीच खड़ी हो कर ..खुशी से चिल्लाना चाहती थी ...पर ऐसा कर नहीं पाई ...ऐसा दृश्य...फिर कभी मैं देखूंगी या देख पाऊँगी .....ये आने वाले वक्त पर छोडते  हैं  .....

सागर की आती हुई लहरों में 
खोजने लगी थी अपना ही अक्स 
जो मुझे मिला ...मेरी ही ताकत बन कर   
उसने  मुझे समझाया .....मत डर 
ना तू घबरा ...बस निकल पड़ 
अपनी ही मंजिल पर ,बढ़ा कर 
अपने कदम ...
टकरा जा ,अपनी मंजिल को पाने के लिए 
अपनी ही सागर से ,और लुप्त 
हो उसकी  ही आगोश में ,
कुछ भी पाने को |
उठेंगे ज्वारभाटा ,आएँगी सुनामी भी 
टकराएंगी लहरे चट्टानों से भी 
फिर भी लहरों का अपना ही सौम्य 
स्वरुप वैसा ही रहेगा ,
जैसी वो हैं ....|


                            (सभी चित्र मेरे मोबाईल से लिए गए )