भट्ठा मज़दूर ( हम सिर्फ लिख कर ही अपना फर्ज़ पूरा कर रहें हैं )
ऐ-री सखी
सुन तो
आज मेरी मुलाकात हुई
भट्ठा मज़दूरों से
जो अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ
वहाँ मज़दूरी कर रहें थे
बस उन्ही को सोचकर
मैं यहाँ तेरे संग
अपने मन की बात को बाँटना चाहती हूँ ...
ऐ-री सखी
हर महल को बनाने में
लगी है ना जाने कितनी ही
कच्ची पक्की ईटें
और ईटों को पकाने में ना जाने
उस भट्ठे पर
कितने ही मज़दूरों उपस्थिति थे,
पर उनके मलिन चेहरों पर थी
कभी ना खत्म होने वाली चिंता |
शिकन दर शिकन वो
सेंकते रहे भट्ठे पे ईंटों के साथ
अपने अरमान,
आज मेरी मुलाकात हुई
भट्ठा मज़दूरों से
जो अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ
वहाँ मज़दूरी कर रहें थे
बस उन्ही को सोचकर
मैं यहाँ तेरे संग
अपने मन की बात को बाँटना चाहती हूँ ...
ऐ-री सखी
हर महल को बनाने में
लगी है ना जाने कितनी ही
कच्ची पक्की ईटें
और ईटों को पकाने में ना जाने
उस भट्ठे पर
कितने ही मज़दूरों उपस्थिति थे,
पर उनके मलिन चेहरों पर थी
कभी ना खत्म होने वाली चिंता |
शिकन दर शिकन वो
सेंकते रहे भट्ठे पे ईंटों के साथ
अपने अरमान,
अपने परिवार की जरूरतें
सबसे ज्यादा खुद को और
सबसे ज्यादा खुद को और
अपनी आत्मा को|
ऐ-री सखी सलाम करती हूँ
उनकी इस हिम्मत को,
कि,एक एक ईंट की भांति उन्होंने
अपने बच्चों की आशाओं का निर्माण किया
अपने दूध मुंहे बच्चों के साथ भी
हर वक्त बस काम किया
ताकि दे सके उन्हें ये बेहतर भविष्य |
कच्ची पक्की ईटों
से
मज़बूत है इन मज़दूरों के इरादे
ये दिहाड़ी मज़दूर
कभी अपनी गति को शिथिल
नहीं पड़ने देते
दर प्रतिदर मज़दूरी कर
खुद पर बोझ बढ़ाते रहे |
पर,अपने बच्चों को हर प्रकार के क्षोभ
से बचाने के लिए
अपनी मेहनत से हर मुश्किल को
निरंतर जर्जर करते हुए,
निर्धनता के साथ अपने विश्वास की
डोर थामे आगे बढ़ते रहे
ताकि गढ़ सके वो
मज़बूत है इन मज़दूरों के इरादे
ये दिहाड़ी मज़दूर
कभी अपनी गति को शिथिल
नहीं पड़ने देते
दर प्रतिदर मज़दूरी कर
खुद पर बोझ बढ़ाते रहे |
पर,अपने बच्चों को हर प्रकार के क्षोभ
से बचाने के लिए
अपनी मेहनत से हर मुश्किल को
निरंतर जर्जर करते हुए,
निर्धनता के साथ अपने विश्वास की
डोर थामे आगे बढ़ते रहे
ताकि गढ़ सके वो
अपने ननिहालों के लिए
जीवन की सुडौल कृति और
जीवन की सुडौल कृति और
एक सुनहरा भविष्य|
ऐ-री सखी मैंने देखा है
इन भट्ठा मज़दूर के लिए
ना कोई झूला है,
इन भट्ठा मज़दूर के लिए
ना कोई झूला है,
ना ही कोई पलंग
और ना कोई चमचमाते खिलौने हैं|
ये पलते हैं,कच्ची ईंटों के ढांचों पर
एक मैली पतली सी चादर
और उस कड़ी धूप में |
उसी पे खेलते ,सोते ये बच्चे
जिंदगी की इन्ही क्रूर सच्चाई और
एक निर्मम मौन के साथ
बड़े होते हैं
कुछ पल गए,
और ना कोई चमचमाते खिलौने हैं|
ये पलते हैं,कच्ची ईंटों के ढांचों पर
एक मैली पतली सी चादर
और उस कड़ी धूप में |
उसी पे खेलते ,सोते ये बच्चे
जिंदगी की इन्ही क्रूर सच्चाई और
एक निर्मम मौन के साथ
बड़े होते हैं
कुछ पल गए,
कुछ पाल दिए गए
कुछ पढ़ गए तो कुछ
नए मज़दूर तैयार हो गए
कुछ पढ़ गए तो कुछ
नए मज़दूर तैयार हो गए
इन्ही के बीच से
एक नई पौध
एक नई पौध
भट्ठा मज़दूरों के रूप में
एक अंतहीन जीवन यात्रा
की ओर अग्रसर ये भट्ठा मज़दूर ||
एक अंतहीन जीवन यात्रा
की ओर अग्रसर ये भट्ठा मज़दूर ||
अंजु (अनु)