एक दिसंबर ......एड्स दिवस के उपलक्ष्य में
कितनी अजीब बात है कि जिस विषय को बहुत दिन से सोच कर लिखने की सोच मेरे भीतर मुझे परेशां कर रही थी ,नहीं जानती थी कि वही विषय मुझे
कहानी ,लेख या कवि़ता के रूप में लिखने को इतनी जल्दी मिल जाएगी | ‘’एड्स ‘’
एक ऐसा
विषय है जिस पर आज भी हम लोगों के समाज में सबके सामने बात करना गुनाह समझा
जाता है,जैसे गोरे और काले का भेद आज भी हमारे समाज में बहुत गहरे तक अपनी
जड़ समेट समाया हुआ है वैसे ही है एड्स |कुछ ऐसा ही
एक किस्सा मुझे भी याद आ गया ,ये ना कहानी है ना ही कोई कविता . ये एक घर का और उनकी जिंदगी का सच है
(अगर मानो तो ) इस से एक घर तबाह होने को है या ये कहना अधिक सही होगा कि हो ही चुका है. एड्स के बारे में मैं सिर्फ लिख
सकती हूँ पर जो जिंदगी का अनुभव वो लोग साथ रहकर ,कर रहे हैं ये वो ही बहुत अच्छे से जानते हैं और उनकी
जिंदगी से जुड़े लोग मूक दर्शक बने बस तमाशा देख रहे है एक दम बेबस से .
बात है अहमदाबाद के एक
दोस्त की ,जिसने मुझे ये सच्चाई बताई कि दो साल पहले मुम्बई में पोस्टिंग होने की वजह से वो अकेला ही वहाँ एक साल तक रहा
अपने घर से दूर ,वहीँ उसके कुछ दोस्त बने और दोस्ती में घूमना और साथ साथ मौज
मस्ती भी शुरू हो गई ,इसी मस्ती के चलते वो सब लोग एक रात थियेटर में फिल्म देखने
गए . उन दोस्तों में से एक दोस्त की पत्नी जैसे ही अपनी सीट पर बैठी तो उसी पल वो उईईईईईइ करती हुई एक दम से खड़ी हो
गई ,पर तब तक हांल में अँधेरा हो चुका था ,उसने सीट के नीचे हाथ मार कर कुछ निकला
तो कुछ सुई टाईप का निकला तो उसने वो हाथ में पकड़ लिया और मध्यांतर (इंटरवल) में लाइट होने पर
जब उसने अपने हाथ में आई सुई को देखा तो उसके साथ एक पर्ची भी थी जिस पर लिखा था ‘’ वेलकम टू द वर्ल्ड ऑफ एड्स ‘’
उस वक्त इस पर्ची पर लिखे इस वाक्य ने सबके दिलों को दहला कर रख दिया और
उन्ही दिनों मित्रों द्वारा मेल ये न्यूज़ हमको मिल रही थी कि आज कल
सिनेमा हाल्स में कुछ इस तरह की वारदाते हुई है ,कृपया आप लोग सावधान रहे
,पर मैंने कभी इस तरह की मेल को गंभीरता से नहीं लिया था और उसी दौरान उस दोस्त ने इस तरह की घटना पर सच्चाई की मोहर लगा दी | हाल में सभी दोस्त अपनी अपनी राय दे रहे थे ,पर जो होना तय था वो हो चुका था ,वहाँ उस हाल में एक पल गवाए बिना वो सब
हाल से बाहर आ गए और सीधा ब्लड टेस्ट करवाने के लिए लेब में गए और दो दिन के
इंतज़ार के बाद रिपोर्ट आई और ये दो दिन उन सबके लिए दो सदियों से भी बढ़ कर निकले
.पर उस वक्त रिपोर्ट नेगिटिव आई यानी की तब तक सब नोर्मल था,तो सबकी जान में जान आई .पर कुदरत को तो कुछ ओर ही मंज़ूर था .
तीन महीने बाद उनके ही परिवार में किसी बुज़ुर्ग को खून की जरुरत पड़ी जो कि उन
दोस्ती की पत्नी से मैच करता था ,वो खून देने अस्पताल गई ,खून दे भी दिया गया पर
दो दिन के पश्चात अस्पताल से फोन आ गया कि उनके द्वारा दिया गया खून एड्स ग्रस्त
है इस लिए उनका खून नहीं दिया जा सकता | वो फोन और वो रिपोर्ट उस घर पर कहर बन का
टूटी ,वो हँसता खेलता परिवार एक ही पल में
बिखर गया ,सबके चहरे की मुस्कराहट गायब हो गई . पूरे घर भर में मौत जैसा मौहोल बन चुका था ,बच्चे तो अभी छोटे थे वो नहीं समझ
पाए कि कुछ दिनों से पापा मम्मी इतने परेशां क्यों है और बात बात में मम्मी क्यों
रोने लगती है ,घर की बेटी जो की उस वक्त ११ साल की थी फिर भी कुछ कुछ समझ रही थी
,घर में हर वक्त बीमारी और डॉ की बाते अब बहुत आम हो गई थी | आज दो साल के बाद उस
घर का बेटा ७ साल और बेटी १३ साल की है ,दिनों दिन बीमारी ने अपना विकराल रूप धारण
कर लिया है और पैसा पानी की तरह बहा कर भी एड्स जैसी बीमारी पर काबू नहीं पाया जा रहा | एक घर जो उन लोगों का रहने का बसेरा था और अभी भी उस फ्लैट का emi चल
रही है ,इस बीमारी के चलते वो
बेच कर उसका सारा पैसा इस बीमारी में लग चुका है .हर किसी ने उन्हें अपने
जीवन और आपने आस पास से खदेड़ दिया है ,वो लोग अछूतों सी जिंदगी जीने को
मजबूर हैं .एक महीने की दवाई लगभग दो से
ढाई लाख के बीच में आती है जो एक आम इंसान के बूते के बाहर की बात है . घर के हर
सदस्य के खून की जांच महीने दर महीने होती है ये देखने के लिए कि कहीं उन्हें भी
तो साथ रहते रहते एड्स तो नहीं हो गया है जिस डॉ से भी पूछा जाता है वो उक्त मरीज
को जीवन मात्र दो से तीन साल बताते हैं उस दोस्त की दोस्त को इस एड्स नामक बीमारी
ने पूरी तरह से मरने से पहले ही मार दिया है . वो अपनी मौत पल दर पल अपने घर
वालो की आँखों में रोज़ देखती है ,उसके बाल झड़ने शुरू हो गए है ,वजन मात्र ३८ किलो
रह गया है और रंग एक दम स्याह काला हो चुका है ,एक हँसता खेलता परिवार एक दिमागी तौर पर बीमार इंसान की वजह से तबाह हो
गया है . कितना मुश्किल है इस वक्त ये सब लिखना जब कि मैं जानती हूँ कि मैं बस
लिख ,पढ़ सकती हूँ पर मेरी वो अनजानी दोस्त अपनी जिंदगी को किस तरह काट रही होगी
मैं समझ तो सकती हूँ पर उसके उस दर्द का अंश मात्र महसूस भी नहीं कर सकती | क्या
ऐसी ही होती है किसी भी एड्स
ग्रस्त मरीज की जिंदगी ?
अंजु (अनु)