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माँ
शब्द एक
पर,खुद में सम्पूर्ण
माँ
कैसे जान लेती है
दिल की हर बात
हर जज़्बात को
जीवन चक्र
शैशव से यौवन तक के
सफर को
और आँखों में
झलकते किसी के प्यार को
माँ
शांत, सौम्य
पर दिल से धरती सी मजबूत
उसकी फुलवारी में महकते
हर फूल की
महक को वो कभी
खोने नहीं देती और
अपने मौन को टूटने नहीं देती
उसकी आँखों के पानी को
जब तक समझो
वो भाप बन कर उड़ चुके होते हैं
वो,हर दुख को झाड लेती है
जीवन जीने के लिए
माँ
जो पल-पल अहसास करवाती है
अपने होने का
अपनी चुप्पी और बोलती हुई आँखों से
उसके कमरे का वो कोना
उसके अपने पलंग की
वो ही साइड
और साइड टेबल पर रखा हुआ
उसकी दवाइयों का डिब्बा
जो बरसों पुराना है
उसकी अपनी यादों की तरह
और उसी जगह पे
वो बरसों से बैठ कर
अपनी आँखों के चश्मे को
थोड़ा नीचे कर
देखती है
हर आने जाने वाले को
माँ, झट से जान लेती है
हमारी हर कमजोरी को
तभी तो बिन बोले भी
हम दोनों के बीच निरंतर
मीठे पानी की एक शांत
झील बहती है
हर बार उसके इस वात्सल्य से
हम सब चकित रह जाते हैं
और सोचते रहते थे कि
माँ कैसे जान लेती है दिल की हर बात
अंधेरी दलहीज हो या रोशनी आपार
पीढ़ा हो या प्यार का मिलाजुला प्रवाह
अब मुझ से भी हो कर गुज़र रहा है
हम दोनों के बीच की
प्रवाहित नदी से ही तो
मैंने जाना
माँ और बच्चो के बीच का अटूट रिश्ता
और इस लिए अब मैं भी कह सकती हूँ
कि
हाँ! माँ जान लेती है दिल की हर बात ||
अंजु चौधरी (अनु)
(नितीश मिश्र की कविता से प्रेरित )