हम दोनों के बीच
भागीरथ बन कर
भिगो गया कोई
खुद के बोल देकर
गुनगुनाने को छोड़ गया कोई.
प्रेम रस की फुहारों से
इस तन की प्यास
बुझा गया कोई.
बुझा गया कोई.
अठखेली करती चंचल मन
सीमाओं में बंधी-कसी ...
मन के तारों को
झुंझना गया कोई
चले हैं मिल कर साथ
छूने को आसमां
अतृप्त आह, आहें कई .. ...
अब भी है
हम दोनों के बीच.
प्यासी धरती के दिल में
प्यार बीज बो गया कोई.
छूने को आसमां
अतृप्त आह, आहें कई .. ...
अब भी है
हम दोनों के बीच.
प्यासी धरती के दिल में
प्यार बीज बो गया कोई.
रीझ रीझ के नाचा है मन मयूर
उसकी प्रेम फुहारों में
मरू की नीरसता टूटी है
तन से नाच ..नचा
गया कोई.
कान, कान वो ही
जिसने तेरी आवाज़ सुनी
आँख, वो आँख वही
जिसने तेरा जलवा देखा
इन्ही सुर्ख नयनो में
सपना सजा गया कोई.
जिसने तेरी आवाज़ सुनी
आँख, वो आँख वही
जिसने तेरा जलवा देखा
इन्ही सुर्ख नयनो में
सपना सजा गया कोई.
भीच लूँ तुझे अपनी
बाहों में
प्यासे थल, जल की
आशा में
एक स्वप्न अब भी बाकी है
हम दोनों के बीच
लो सपने सजा गया कोइ ||
(अनु )