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मेरा व्योम
अर्थ नहीं होता है कोई
अर्थ से टूटी भाषा का
तार तार कर संकू मौन को
केवल इतना शोर तो
सुबह का सुनने दो
भरने दो मुझे को सांसो में
खुशबु उसकी ...
स्वर की हदे बांधने दो
पोर पोर फटती देखूं मै
केवल इतना सा उजियारा
मेरी आँखों में रहने दो
सूरज सुर्ख बताने वालो
अंधियारे बीजा करते है
गीली मिटटी सी पीडाएं
मेरी जो सलती है
रात भर ...
सफ़र नहीं होता हैं कोई
अपना ही आकाश बुनूं मै
भरने दो मुझको पंखो में
मेरी दिशा बांधने वालों
केवल इतनी सी ही
मेरी तलाश है .........
(अनु)
अर्थ नहीं होता है कोई
अर्थ से टूटी भाषा का
तार तार कर संकू मौन को
केवल इतना शोर तो
सुबह का सुनने दो
भरने दो मुझे को सांसो में
खुशबु उसकी ...
स्वर की हदे बांधने दो
पोर पोर फटती देखूं मै
केवल इतना सा उजियारा
मेरी आँखों में रहने दो
सूरज सुर्ख बताने वालो
अंधियारे बीजा करते है
गीली मिटटी सी पीडाएं
मेरी जो सलती है
रात भर ...
सफ़र नहीं होता हैं कोई
अपना ही आकाश बुनूं मै
भरने दो मुझको पंखो में
मेरी दिशा बांधने वालों
केवल इतनी सी ही
मेरी तलाश है .........
(अनु)