
कुछ दिल की बातें
इस दुनिया की रीत में इतनी ,तपिश सी क्यूँ है|
दिल की गहराइयों में इतना दर्द सा क्यूँ है
बेबसी ,बेताबी और बेचैनी का आलम क्यूँ है ||
अपना सा हर शख्स ,परछाईं सा पराया क्यूँ है
जिसको भी माना अपना,वही इतना बेगाना सा क्यूँ है ||
हर कोई अपने ही वास्ते ,इस रिश्ते को जीता क्यूँ है ||
आज हर घर में रिश्तो का गुलशन सा ,क्यूँ नहीं है
जो बांध सके सबको गुलदस्ते में,वो माली क्यूँ नहीं है ||पर हर कोई बाहर की आँधियों से , लिपटा सा क्यूँ है ||
अपने घर के आँगन में मांगी थी ,धूप छावं जीवन की
जिन राहों पर बिछने थे ,गुलशन के फूल कलियाँ
उन राहों से चुन चुन के कांटे ,मै हटा रही क्यूँ हूँ ||
मुश्किल से मैंने खुद को ,मुश्किल से निकला था
आगे की मुश्किलों से .मै दामन बचा रही सी क्यूँ हूँ ||
अनु
अनु