Wednesday, September 19, 2012

दरवाज़े की ओट से ...



बहुत बार ध्यान से देखा है तुम्हें
दरवाज़े  की ओट से ...
तुम रोती हो ,चुपचाप आँसू बहाती हो
बिन किसी शोर के....पर क्यों?
क्या दुःख है तुम्हें ?
अभिव्यक्ति ,प्रकृति व जीवनक्रम
के साथ अंतरद्वंद में डूबी,
जिसे तुम बाँट नहीं सकती
क्या बात है दिल में तुम्हारे,
जिसे तुम ,बतला नहीं सकती
सिसकती हैं धड़कने तुम्हारी ,
पर कभी कोई आवाज़
क्यों नहीं आती ....
इन खुली आँखों से बहते हैं अश्रु ,
बन का अविरल धारा से
पर इनका कोई निशां क्यों नहीं है ?
घूमती फिरती हो घर भर में
पर एक दम चुपचाप सी ...शांत
हथेलियों से पौंछती हो खुद के आँसू ,
कोई प्रतिरोध क्यों नहीं |
साबुन की तरह हाथ से
फिसलते हैं रिश्ते ,तुम्हारे हाथों से
फिर भी ,कोई क्रोध क्यों नहीं है
चहरे पर तुम्हारे |
बहुत मजबूर हो तुम हकीकत में
जानती हूँ मैं
कि अकेली सी तिलमिलाती हो
खुद के बिछौने पर रात भर ,
उलझी हुई डगर है ,
हर कदम बहकता है ,उसका
पर कोई प्रतिकार ,क्यों नहीं इस व्यवहार पर |
तुम तिल-तिल मरती हो रोज़
पता नहीं ,कब बदलेगा तुम्हारी ये ,
मजबूरी का दौर ?

हां! देखा है मैंने तुम्हें दरवाज़े की ओट से
बार बार रोते हुए ||

अंजु (अनु )

Friday, September 14, 2012

परी ...( ममतामयी माँ )


एक  परी आएगी

जो तुझे सुलाएगी
लेगी आँचल में वो अपने
तुझे पलकों के पालने में
         झुलाएगी ||
झूठ मूठ करना आँखे बंद
और करवटे बदलना
वो थपकी देगी
तुम सोने का नाटक करना
जब
वो कान्हा करके बुलाए 
तो .. जा  कर छिप जाना 
वो घर भर में शोर मचाएगी 
उसके सामने आते ही
तुम बुद्धू बन जाना
ऐसे ही वो तुझे लाड़ लड़ाएगी
इस ममता के आगे
तेरी कोई चालाकी काम
नहीं आएगी
तेरी इस अदा पर
वो रोम रोम से
पुलकित हो जाएगी
ज्यादा नहीं वो ,
पास बिठा तुझे
अपने ही हाथों से
फिर खाना खिलाएगी
हाँ ...झाँकना उसकी आँखों में
एक प्यार का निश्छल
सागर पाओगे  ||

हो तेरे जीवन में
काँटों सी उलझने  ,
पतझड़ से रूखे में
पानी के लहरों
सी जिंदगी में
परिचय की टहनी पर
टूटे सन्दर्भों के
जुड़ आयें छोरों पर
मन के भरीपन में
ममतामयी के कान्हा
तुम हर वक्त उसे अपने ही करीब पायोगे
जब हो मन में
मकड़ी से जालो का उलझाव
तो देना उसे बस ...एक हल्की सी आवाज़
वो कान्हा कान्हा कर
दौड़ी चली आएगी ........कि

एक  परी आएगी
जो रख कर सर तेरा
अपनी गोद में
बड़े प्यार से ...फिर से
जो तुझे सुलाएगी
लेगी आँचल में वो अपने
तुझे पलकों के पालने में
झुलाएगी ||




अंजु (अनु)

Sunday, September 9, 2012

अमर्यादित शब्द और वाक्य .........


अमर्यादित शब्द और वाक्य ...पढ़ते वक्त चुभते हैं ...उनके शब्दों और चरित्र से अहंकार की बू आती है ...जो इंसान ,इंसान में फर्क करना सीखती है | हमें जो सिखाया जाता है कि प्यार से बोलो ...प्यार से बोले गए शब्द दुश्मन का दिल भी बदल देते हैं ...पर वो कैसे इंसान हैं जो अपने शब्दों की मर्यादा लांघ कर किसी के दिल को चोट पहुंचाते हैं ...ये सोंचे बिना कि इस में नुकसान किसका है ...कमान सी निकला हुआ तीर और मुँह से निकले हुए शब्द कभी वापिस नहीं किए जा सकते | आज कल बहुत जगह पर शब्द अपनी मर्यादा पार करते हुए नज़र आ रहे हैं...स्त्री ..पुरुष का भेद खत्म होने की कगार पर है | बोलने वाले ये क्यों भूल जाता हैं कि जो उनके  लिए सही है वो किसी और के लिए गलत भी हो सकता है ...और हम जैसे दिल से सोचने वाले और पढ़ने वाले जब इन शब्दों से खिन्न होते हैं तो ...पढ़ने ,लिखने और समझने की स्थिति से भी दूर होने लगते हैं |
एक अभिमानी इंसान के अहम् में ...उसके इर्द गिर्द वाले कितने ही बेकसूर लोग उसकी अमर्यादा के तहत आते हैं ,ये वो बात कभी नहीं समझ सकता ...अहंकारी इंसान ये क्यों भूल जाता है की वो कोई सरोवर नहीं है कि उसके कह शब्दों से किसी की भी प्यास बूझ जाएगी
...या उस सरोवर में भी कोई निर्मल कमल खिल पाएगा ,वो अपने ही भीतर एक अलग तरह की भ्रान्तियाँ पालते है खुद को बेहतर समझने की और दूसरों को मूर्ख बोलने की |हर इंसान की समझ अलग है ,व्यक्तित्व अलग है, उनके भीतर का गुर और गुण अलग है और उनके अंदर की खोज ...किसी ना किसी चीज़ की तलाश वो भी अलग है...तो हम कौन होते हैं किसी को भी अपने से कम और कमतर आंकने वाले ...|अगर हम लोग अपने घर में एक मर्यादा के तहत चलते हैं ,कुछ नियमों का पालन करते हैं तो ...वो ही नियम घर की दहलीज़ लांघने के बाद क्यों खत्म कर देते हैं ...कुछ रिश्ते घर के है और कुछ रिश्ते इस दुनिया के दिए हुए हैं ...जिसे हमने खुद से स्वीकार किया है ....फिर क्यों हम अपनी उस सीमा में रह कर उनका पालन नहीं कर सकते ||

आप ,जहाँ जाते हो जाओ
आप लोगों को,रोकने वाला कौन है
हमारा तो बना सबसे
एक रिश्ता दर्द का ..
पर आपसे, निभाने वाला कौन है
कभी सोचा है,कि शब्दों के बाणों से
कितनो के हृदय को आप लोगों ने छलनी किया
आदरणीय
हमने ,सबके के मन को पढ़ा हैं
जिसे आप लोगों ने
अपने घमंड की नागफणी के तहत 
खंडित किया
आप ,हमारे मंच ...ध्वस्त करते गए
और हम ,अपनी राह खुद बना कर
आगे बढ़ते रहे  
आहत मन से ही सही ...एक नई राह पर
रखा है अब कदम ,एक प्रतिनिधि की भांति
कहना या चिल्लाना नहीं ,हमें
ना ही भगोड़ा बन ,भागना हैं
हम तो एक शमा जला कर
अपनी खुद की राहें ,खुद से ही रोशन
करने चले ||

अंजु (अनु)