अमर्यादित शब्द और वाक्य ...पढ़ते वक्त चुभते हैं ...उनके शब्दों और चरित्र से अहंकार की बू आती है ...जो इंसान ,इंसान में फर्क करना सीखती है | हमें जो सिखाया जाता है कि प्यार से बोलो ...प्यार से बोले गए शब्द दुश्मन का दिल भी बदल देते हैं ...पर वो कैसे इंसान हैं जो अपने शब्दों की मर्यादा लांघ कर किसी के दिल को चोट पहुंचाते हैं ...ये सोंचे बिना कि इस में नुकसान किसका है ...कमान सी निकला हुआ तीर और मुँह से निकले हुए शब्द कभी वापिस नहीं किए जा सकते | आज कल बहुत जगह पर शब्द अपनी मर्यादा पार करते हुए नज़र आ रहे हैं...स्त्री ..पुरुष का भेद खत्म होने की कगार पर है | बोलने वाले ये क्यों भूल जाता हैं कि जो उनके लिए सही है वो किसी और के लिए गलत भी हो सकता है ...और हम जैसे दिल से सोचने वाले और पढ़ने वाले जब इन शब्दों से खिन्न होते हैं तो ...पढ़ने ,लिखने और समझने की स्थिति से भी दूर होने लगते हैं |
एक अभिमानी इंसान के अहम् में ...उसके इर्द गिर्द वाले कितने ही बेकसूर लोग उसकी अमर्यादा के तहत आते हैं ,ये वो बात कभी नहीं समझ सकता ...अहंकारी इंसान ये क्यों भूल जाता है की वो कोई सरोवर नहीं है कि उसके कह शब्दों से किसी की भी प्यास बूझ जाएगी ...या उस सरोवर में भी कोई निर्मल कमल खिल पाएगा ,वो अपने ही भीतर एक अलग तरह की भ्रान्तियाँ पालते है खुद को बेहतर समझने की और दूसरों को मूर्ख बोलने की |हर इंसान की समझ अलग है ,व्यक्तित्व अलग है, उनके भीतर का गुर और गुण अलग है और उनके अंदर की खोज ...किसी ना किसी चीज़ की तलाश वो भी अलग है...तो हम कौन होते हैं किसी को भी अपने से कम और कमतर आंकने वाले ...|अगर हम लोग अपने घर में एक मर्यादा के तहत चलते हैं ,कुछ नियमों का पालन करते हैं तो ...वो ही नियम घर की दहलीज़ लांघने के बाद क्यों खत्म कर देते हैं ...कुछ रिश्ते घर के है और कुछ रिश्ते इस दुनिया के दिए हुए हैं ...जिसे हमने खुद से स्वीकार किया है ....फिर क्यों हम अपनी उस सीमा में रह कर उनका पालन नहीं कर सकते ||
आप ,जहाँ जाते हो जाओ
आप लोगों को,रोकने वाला कौन है
हमारा तो बना सबसे
एक रिश्ता दर्द का ..
पर आपसे, निभाने वाला कौन है
कभी सोचा है,कि शब्दों के बाणों से
कितनो के हृदय को आप लोगों ने छलनी किया
आदरणीय
हमने ,सबके के मन को पढ़ा हैं
जिसे आप लोगों ने
अपने घमंड की नागफणी के तहत
खंडित किया
आप ,हमारे मंच ...ध्वस्त करते गए
और हम ,अपनी राह खुद बना कर
आगे बढ़ते रहे
आहत मन से ही सही ...एक नई राह पर
रखा है अब कदम ,एक प्रतिनिधि की भांति
कहना या चिल्लाना नहीं ,हमें
ना ही भगोड़ा बन ,भागना हैं
हम तो एक शमा जला कर
अपनी खुद की राहें ,खुद से ही रोशन
करने चले ||
अंजु (अनु)