Sunday, December 21, 2008

जब भी खुद को आईने मे देखा..............


जब भी खुद को आईने मे देखा
उसे भी मुझ पे हँसते पाया ...
वक़्त के हाथो खुद को लुटा पाया ..
मै तो अंधेरो मे खो जाती ....
इस दुनिया की  भीड़ मे ..
अगर ..वो
मेरा हाथ न थामता.....
खीँच लाया वो मुझे अंधेरो से बाहर .....
उसकी निगाहों ने तराशा है मुझे ..
उसकी  बातो से मिला है ..
जीवन मे नया रूप मुझे ..
मै तो खो चुकी थी ..
आत्मविश्वास अपना ...
पर उसकी बदौलत ..
जी ली मैने भी ...
अपने सपनो की  दुनिया ..
मिला प्यार इतना ....कि
मैंने खुद को उसके लिए बदल डाला..
समय पे साथ चलके उसे ने ...
मुझे नयी ताकत से रूबरू ..
करवा डाला ...
मेरी जीने की  इच्छा को
फिर से उसने ..जीवंत कर डाला ............
अब जब भी खुद को आईने मे देखा
अपना नया सा रूप है मैंने पाया |
(.........कृति.......अनु......)

7 comments:

pawan arora said...

bahut badiya ek ek shabd moti ki mala ki trah mai piroya hai aapne sach ati uttam

डॉ. मोनिका शर्मा said...

अपने आप से नई मुलाकात ....सुंदर रचना

अनुपमा पाठक said...

नया रूप समृद्ध ही होता रहे!
सुन्दर!

shikha varshney said...

यह अहसास ही बहुत खूबसूरत है.

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही गहरे अहसास
और सुन्दर भाव लिए रचना...
सुन्दर प्रस्तुति..
ये चित्र भी बहुत सुन्दर लग रहा है .....
:-)

अनामिका की सदायें ...... said...

kash aisa aiyina dikhane wala sabko mile.

प्रतिभा सक्सेना said...

सुन्दर !