Friday, August 6, 2010

मेरे मालिक........


मन क्यों अशांत सा है
संतुष्टि का भान क्यों नहीं है
जल रहा दीया
फिर पतंगा ही परेशान सा क्यों है
भागा था वो अँधेरे से डर कर
पर क्या मिला रोशनी में आ कर उसे

क्यों आँखे सूज रही है
रोते रोते आज
क्यों हो रही है
किरणे मैली सी आज
क्यों शब्दों में है अपमान की भाषा
विचारो कि शुद्दता कहाँ खो सी गई है

आज तो सब वाकया ही बदल गया
क्यों आज अपनी ही बेटियां
एक बाप के लिए बोझ हो गई
क्यों एक मकान घर मे बदल गया
क्यों सारे शहर का मिजाज़ बदल गया
सुना था घर के चिराग से घर जल गया
पर यहाँ तो बड़ो की खुदगर्जी का साया
हम बेटियों पर भी पड़ गया

मेरे मालिक........
तुझ से है इति सी बिनती मेरी
मुझे इंसान बना रहने दो
बनी रहे मेरे दिल में ममता की मूरत
तेरे जहाँ को प्यार कर सकूं
बस इतनी रहमत करना ।

कृति अंजु..(.अनु )

7 comments:

Ra said...

अत्यंत सुन्दर रचना ,,एक खूबसूरत अंत के साथ ....शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है ...शायद सफ़र कुछ आसान हो ,,,!!!! इस रचना के लिए बधाई आपको

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Rajendra jee ne sach kaha.........!!bahut khubsurat rachna........:)

mere malik
meri bhi vinti sun lo
mujhe bhi ek insaaan hi bane rahne do....:)

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

आमीन!

HBMedia said...

bahut sundar rachna ....
very nice blog

Pawan:www.gaurtalab.blogspot.com

उपेन्द्र नाथ said...

anu ji
bilkul sahi farmaya aapne

bilkul satik

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

आज से हम भी आपके साथ है

Anju (Anu) Chaudhary said...

aap sab ka aabhar ki aapko meri rachna pasand aayi