Wednesday, May 25, 2011

चित्र आभार .....रोज़ी सचदेवा





इंतज़ार और इंतज़ार

आँखों में आंसू
दिल में दर्द
बातो में उम्मीद
जिन्दगी की सीख
दो पल साथ
जिन्दगी की आस
बूंदे बारिश की
तड़प सूखी धरती की
वही जाने
जिसने किया है कभी
किसी से भी प्यार..
दुलार और इंतज़ार ..............
****************
इंतज़ार अपनों का
कुछ सपनो का
इंतज़ार मीत का
उसकी प्रीत का
इंतज़ार ख़ुशी का
मिल कर उसे
बांटने का
इंतज़ार सागर का
अपनी लहरों के लिए
बस मन की भावनाओं में
इंतज़ार व्याकुलता का
मुलाकात का
इंतज़ार दो घडी
देखने का
करीब बैठ कर
बाते करने का
इंतज़ार ....बस इंतज़ार

.((अनु.))

22 comments:

Amit Chandra said...

वाह वाह। कम शब्दों में सार्थक रचना। आभार।

अजय कुमार झा said...

बहुत सुंदर और सरल , प्रवाहमयी , एकदम दिल से निकली हुई बात

amit kumar srivastava said...

बस इंतज़ार ही तो है जो जीने का सबब बनाए रखता है ।

RAJPUROHITMANURAJ said...
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RAJPUROHITMANURAJ said...

हकीकत मे जीना जब आदत बनजाती है तो खवाबो की दुनिया बेरंग नजर आती है कोई इंतजार करता है जिंदगी के लीये और कीसी की जिंदगी इंतजार मे गुजर जाती है !

रश्मि प्रभा... said...

intzaar...kabhi khatm nahi hota , n koi surat rah jati hai paas karte karte intzaar

मुकेश कुमार सिन्हा said...

wah re intzaar...:)
lekin sach me ye intzaar kabhi khatm nahi hota, jaise aawasyakti khatm nhi hoti...har ek ke pure hone ke baad...kuchh aur ka intzaar...hai na..!!
sundar prastuti dost!

मुकेश कुमार सिन्हा said...

roji sachdeva jee ko bhi badhai...unke khubsurat chitro ke liye..:)

smshindi By Sonu said...

सुंदर कोमल और संवेदनशील भाव

Jyoti Mishra said...

After reading this I realise in our whole life we just wait for some or the other thing..... its like everlasting wait.

Satish Saxena said...

अच्छी रचना ! शुभकामनाये स्वीकारें ....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

अरुण चन्द्र रॉय said...

इन्तजार के दो रूप... अच्छे लगे... वाकई इन्तजार को वही समझ सकता है जिसने किया हो कभी प्यार.. दुलार... दुलार शब्द बड़ा नाज़ुक शब्द है... बेहतरीन कविता... जिसके लिए यह इन्तजार हो रहा है.. बड़ा भाग्यशाली होगा वह.... बना रहे इन्तजार का यह भाव...

virendra sharma said...

सुन्दर मनमोहक प्रस्तुति .दो शैर आपकी नजर इंतज़ार पर -
न कोई वक्त ,न कोई उम्मीद ,न कोई वायदा ,
रहगुज़र पर खड़े थे ,करना था ,तेरा इंतज़ार ।
और ये पंक्तियाँ भी आपकी नजर -
प्रतीक्षा में युग बीत गए सन्देश न कोई मिल पाया ,
सच बतलाऊँ तुम्हें प्राण ,इस जीने से मरना भाया .

महेन्‍द्र वर्मा said...

नए अंदाज में लिखी गई यह कविता बहुत अच्छी लगी।

Kunwar Kusumesh said...

बहुत सुन्दर लिखा है आपने. वैसे इंतज़ार का भी अपना ही मज़ा है.

Anju (Anu) Chaudhary said...

aap sabka bahut bahut shukriya

संजय भास्‍कर said...

कविता बहुत अच्छी लगी।

सदा said...

वाह ...बहुत ही अच्‍छा लिखा है ।

Vikas Nagpal said...
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Vikas Nagpal said...

aur hume intejaar hai aapki aglee kavita ka.........

shaveta said...

nice to see ur blog and pleased to know that u r from my city