(एक सोच १५ साल के बच्चे की ...जिसको बस शब्द देने भर की कोशिश की है )
दादा जी का चश्मा .....एक उपहार उनके जन्मदिन का
दादा जी का चश्मा .....एक उपहार उनके जन्मदिन का
आज मेरे दादा जी का ७५ वां जन्मदिन है ....पर दादा जी आज बहुत उदास है ....मै जानता हूँ की मेरे दादू ...आज दादी को बहुत मिस कर रहे है क्यूंकि दादी हम सबको छोड़ कर भगवान जी के पास चली गई है मेरा नाम आर्य है ...मै क्लास दस (१०) में पढता हूँ ... ...तब से दादा जी बहुत अकेले हो गए है ....पापा उनको अपने साथ काम पर लेके जाते है पर वहां भी उनका मन नहीं लगता ...तो वो रोज़ जल्दी आ कर ..अपने कमरे में बैठे रहते है ...मै और मेरा छोटा भाई ...दिवाकर ...बहुत कोशिश करते है की दादू का मन घर पर लगा रहे ...वैसे तो दादू का नेचर (व्यवहार ) बहुत अच्छा है ...सबसे हँसते बोलते है ...हम लोगो के साथ खाली वक़्त में खेलते भी है....पर आज कल नहीं ...
दादी जी के जाने से पहले दादू को कुछ कुछ भूलने की बीमारी हुई थी ...जिसकी वजह से वो भी कभी कभी परेशान हो जाती थी ...पर हम सब मिल कर इस बात को संभाल लेते थे ...पर यहाँ कुछ वक़्त से ये बीमारी कुछ ज्यादा हो गई है ....खा कर भूल जाएंगे ...अपना कोई भी सामना रख कर भूल जाएंगे .....दादा जी की इस आदत से हम सभी परेशान तो थे...पर वक़्त वक़्त पर उनको प्यार से समझाते भी थे ...कभी कभी मम्मी ...झुंझलाहट में कह भी देती थी की ...मै २ नहीं ३ बच्चे संभाल रही हूँ ...तब मै और दिवाकर खूब हँसते थे ...मम्मी की इस बात पर ...कुछ कुछ बाते जो मम्मी और पापा किया करते थे वो हम लोगो को समझ नहीं आती थी ...और ना ही हमने कभी उनको समझने की कोशिश की
मै और दिवाकर दादू के लिए ..उनके जन्मदिन पर गिफ्ट देने के लिए उनकी नज़र के २ चश्मे बनवा के लाये थे ...अपनी जेब खर्ची से ...मम्मी पापा दोनों ही ये बात नहीं जानते थे ...और आज जब दादू को सरप्राइज़ देने का वक़्त आया तो वो दोनों चश्मे मिलने का नाम ही नहीं ले रहे थे ....हम दोनों ढूंढ़ ढूंढ़ के परेशान हो गए ..पर वो चश्मे नहीं मिले .....हम दोनों ही उदास हो कर बैठ गए ...उम्मीद छोड़ दी की अब वो चश्मे हमको मिलेगे .....बार बार हम दादू के कमरे में जाते ..और उनसे बात कर के आ जाते ...पर दादू वैसे ही अपनी कुर्सी पर बैठे वही अपने वक़्त के पुराने संगीत को सुन रहे थे पापा भी वक़्त पर आ गए ...और सीधा दादू के कमरे में जा कर उनके पाँव छू कर उन्हें ...जन्मदिन की शुभकामनायें दी ..दादू ने आस भरी नज़रो से देखा तो जैसे कहें रहे हो की कहाँ है मेरा गिफ्ट .....पापा ने तो मम्मी और अपनी तरफ से गिफ्ट निकाल कर उनको दे दिया जो वो अपने साथ लेके आये थे ....अब बारी हम दोनों भाइयों की थी ...हम क्या करते...हम तो अपना गिफ्ट कहीं रख कर भूल गए थे .....इस से पहले हम दोनों कुछ बोलते ..दादू हँसते हुए बोले " बच्चों ...तुम्हारा गिफ्ट मेरे ही पास है ...तुम निराश नहीं हो ...वो चश्मे मैंने ही तुम्हारी अलमारी से निकले है ....मैंने कल ही तुम्हे छिपाते हुए देख लिया था ....मुझे से रहा नहीं गया ...तो एक ये छोटा सा मजाक मैंने भी किया तुम दोनों के साथ "' इतना कहते ही दादू ने हम दोनों को खूब सारा....... प्यार किया ....और पता नहीं कौन कौन सा आशीर्वाद दे दिया ...उनकी आँखे नाम थी ...वो बोले ...आज तुम दोनों ने मुझे मेरी नई आँखे (चश्मा ) देकर ..मुझे एक नई ख़ुशी दी है बच्चों...जिसको मै ता उम्र नहीं भूलूंगा " दादी के जाने के बाद आज पहली बार दादू को खुश ..और माँ..पापा के चहेरे पर एक अजीब से तसल्ली देखी ....वो अपने दिए संस्कारो से खुश थे ...और हम दोनों भाई ....दादू और पापा मम्मी को खुश देकर कर ही खुश थे
(अनु)
दादी जी के जाने से पहले दादू को कुछ कुछ भूलने की बीमारी हुई थी ...जिसकी वजह से वो भी कभी कभी परेशान हो जाती थी ...पर हम सब मिल कर इस बात को संभाल लेते थे ...पर यहाँ कुछ वक़्त से ये बीमारी कुछ ज्यादा हो गई है ....खा कर भूल जाएंगे ...अपना कोई भी सामना रख कर भूल जाएंगे .....दादा जी की इस आदत से हम सभी परेशान तो थे...पर वक़्त वक़्त पर उनको प्यार से समझाते भी थे ...कभी कभी मम्मी ...झुंझलाहट में कह भी देती थी की ...मै २ नहीं ३ बच्चे संभाल रही हूँ ...तब मै और दिवाकर खूब हँसते थे ...मम्मी की इस बात पर ...कुछ कुछ बाते जो मम्मी और पापा किया करते थे वो हम लोगो को समझ नहीं आती थी ...और ना ही हमने कभी उनको समझने की कोशिश की
मै और दिवाकर दादू के लिए ..उनके जन्मदिन पर गिफ्ट देने के लिए उनकी नज़र के २ चश्मे बनवा के लाये थे ...अपनी जेब खर्ची से ...मम्मी पापा दोनों ही ये बात नहीं जानते थे ...और आज जब दादू को सरप्राइज़ देने का वक़्त आया तो वो दोनों चश्मे मिलने का नाम ही नहीं ले रहे थे ....हम दोनों ढूंढ़ ढूंढ़ के परेशान हो गए ..पर वो चश्मे नहीं मिले .....हम दोनों ही उदास हो कर बैठ गए ...उम्मीद छोड़ दी की अब वो चश्मे हमको मिलेगे .....बार बार हम दादू के कमरे में जाते ..और उनसे बात कर के आ जाते ...पर दादू वैसे ही अपनी कुर्सी पर बैठे वही अपने वक़्त के पुराने संगीत को सुन रहे थे पापा भी वक़्त पर आ गए ...और सीधा दादू के कमरे में जा कर उनके पाँव छू कर उन्हें ...जन्मदिन की शुभकामनायें दी ..दादू ने आस भरी नज़रो से देखा तो जैसे कहें रहे हो की कहाँ है मेरा गिफ्ट .....पापा ने तो मम्मी और अपनी तरफ से गिफ्ट निकाल कर उनको दे दिया जो वो अपने साथ लेके आये थे ....अब बारी हम दोनों भाइयों की थी ...हम क्या करते...हम तो अपना गिफ्ट कहीं रख कर भूल गए थे .....इस से पहले हम दोनों कुछ बोलते ..दादू हँसते हुए बोले " बच्चों ...तुम्हारा गिफ्ट मेरे ही पास है ...तुम निराश नहीं हो ...वो चश्मे मैंने ही तुम्हारी अलमारी से निकले है ....मैंने कल ही तुम्हे छिपाते हुए देख लिया था ....मुझे से रहा नहीं गया ...तो एक ये छोटा सा मजाक मैंने भी किया तुम दोनों के साथ "' इतना कहते ही दादू ने हम दोनों को खूब सारा....... प्यार किया ....और पता नहीं कौन कौन सा आशीर्वाद दे दिया ...उनकी आँखे नाम थी ...वो बोले ...आज तुम दोनों ने मुझे मेरी नई आँखे (चश्मा ) देकर ..मुझे एक नई ख़ुशी दी है बच्चों...जिसको मै ता उम्र नहीं भूलूंगा " दादी के जाने के बाद आज पहली बार दादू को खुश ..और माँ..पापा के चहेरे पर एक अजीब से तसल्ली देखी ....वो अपने दिए संस्कारो से खुश थे ...और हम दोनों भाई ....दादू और पापा मम्मी को खुश देकर कर ही खुश थे
(अनु)
31 comments:
सच में, यह खुशी अनोखी खुशी थी।
दादु का प्यार किस्मत वालों को ही मिलता है।
यह खुशी बरकरार रहे ... अच्छी प्रस्तुति
कुछ कोमल जज़्बात इन छोटी छोटी बातों से दुख मे भी खुशी की एक किरण दे जाते हैं। आपके दादा जी को जन्म दिन पर बहुत बहुत बधाई।
दादा जी का ७५ वां जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई भोले मन से लिखा मासूम सा लेख ...सुन्दर..
दादा जी का ७५ वां जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई …………बहुत सुन्दर आलेख्।
khoobsoorat!
दादा जी को जन्म दिन पर बहुत बहुत बधाई।
..दादू हँसते हुए बोले " बच्चों ...तुम्हारा गिफ्ट मेरे ही पास है ...तुम निराश नहीं हो ...वो चश्मे मैंने ही तुम्हारी अलमारी से निकाले हैँ ....मैंने कल ही तुम्हे छिपाते हुए देख लिया था ....मुझे से रहा नहीं गया ...तो एक ये छोटा सा मजाक मैंने भी किया तुम दोनों के साथ "' इतना कहते ही दादू ने हम दोनों को खूब सारा....... प्यार किया ....और पता नहीं कौन कौन सा आशीर्वाद दे दिया ...उनकी आँखे नम थी ...वो बोले ...आज तुम दोनों ने मुझे मेरी नई आँखे (चश्मा ) देकर ..मुझे एक नई ख़ुशी दी है
एक बेहतरीन रचना अनु जी...ऐसा ही होता है..ये ही ज़िँदगी है....दादू होना भी एक बचपन जीना है....इसी मेँ ..सब कि खुशी ..छिपी है......साधुवाद कि पात्र हैँ आप...
दादा जी को जन्म दिन पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत ही प्रेरक संस्मरण आपने प्रकाशित किया है!
बहुत ही अच्छा और प्रेरणा दायक लेख हे!
बच्चों के दादू को जन्म दिन मुबारक...आदमी जीवनसाथी से बिछुड़ कर इस उम्र में फिर बच्चा ही हो जाता है...सो देखरेख भी वैसे ही करना होती है...अच्छा लगा बच्चों के द्वारा इतनी केयर देखकर....
कई बार छोटी-छोटी बातें भी बड़ी खुशी दे जाती हैं..
दादाजी को 75 वें जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई
दादा जी, जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई …………
बहुत सुन्दर संस्मरण
बहुत ही बढ़िया आलेख।
सादर
http://pavan-gurjar.blogspot.com/2011/06/blog-post_03.html बहुत सुन्दर दादा दादी का प्यार ही कुछ ऐसा हे
:) pyare se dadu ko shabdo me utar kar ek dum se hame bhi aapne apne baba ki yaad dila di...!
सबको कहाँ नसीब होता है ऐसे सारे घर का प्यार , बहुत अच्छी कहानी . हमें ही हमारे दिए हुए संस्कार का दर्पण दिखाती कहानी.
अच्छी प्रस्तुति.
बहुत सुंदर,
एक सुंदर संदेश देता है ये आलेख
शुभकामनाएं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति लेखक और दादा जी को बधाई और शुभकामनायें
pahli baar pada aaj aapko....
bahut achha laga...
bahut hi umda likha hai aapne.....
mere blog par bhi aapka swaagat hai.....
join kar rha hun aapko...
aadar sahit
dada ji ko unke janmdin ki haardik badhai.....
सुंदर संदेश देता आलेख
दादा जी के जन्म दिन पर हार्दिक शुभ कामनाएं |अच्छी पोस्ट बधाई
आशा
आपके दादा जी को जन्म दिन पर बहुत बहुत बधाई।
Nice post.
दादा जी के जन्म दिन पर हार्दिक शुभ कामनाएं ... खुशियाँ बनी रहें ...
बहुत भावपूर्ण रचना अनु जी , लघुकथा के एक दम निकट आप इसे मुझे ई मेल कर दीजिएगा। कॉपी नहीं हो पा रही है।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
बहुत सुन्दर पोस्ट! दादा जी को जन्मदिन की मुबारकबाद!
sach kha, kismat walo ko hi ye pyar naseeb hota he
sach me, kishmat walo ko hi ye pyar naseeb hota he
Dadu ke janm din ki shubh kamnaye
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