Saturday, December 22, 2012

फरमान



कुछ सपनों को तोड़ती-मोड़ती हूँ
कुछ अपने-आप से ही बाते करती हूँ
जिंदगी को बना के महबूब अपना
महबूबा बन,रोज़ उस से
मुलाकात करती हूँ |

सूरज का आना और फिर छिप जाना
अपने मन की नैतिकता से
रोज़ इस खेल का दीदार
करती हूँ
विश्वास के आदर के साथ
बनाई हर तस्वीर का
भीतर की टूटन के साथ
कुछ नए होने का
हर बार इंतज़ार करती हूँ
जिंदगी के रंगों 
और आर्ट ऑफ लिविंग की
सोच से
खुद को ढाल लेने का
बार-बार प्रयास करती हूँ |


कुदरत के ब्रुश से अपने ही
सपनों में रंग भरती हूँ
देखती हूँ उन छोटी छोटी
चिड़ियों को, जो
अपनी इच्छा से चहकती
फुदकती हैं
और उनमें मैं अपना अक्स
देखने की कोशिश करती हूँ
पर हर बार की तरह
मेरे पंख क़तर दिए जाते हैं  |


अपने ही मसीहाओं पर आश्रित हो
ताकती हूँ खुद की सीमाओं के अंदर
अपने ही जीवन के प्रति,मुझे में ही
सच्ची श्रद्धा नहीं है
तभी तो ज़ज्बात ज़ब्त हो जाते है
और मेरा तटस्थ होना भी तो किसी को
गवारा नहीं 
खुद से कोई निर्णय लूँ
उस से पहले ही हिटलरी फरमान की
चिट्ठियाँ थमा दी जाती हैं |

ना कुछ कहने को छोड़ा जाता है 
ना कुछ करने को
फरियादी होने पे भी
खटखटाते दरवाज़े नहीं खुलते
माँगने पे इन्साफ नहीं
मिलता
हाँ !ये ही हाल लगभग सभी का है
आज़ाद होने पर भी
बेड़ियों के ताले जड़ दिए जाते हैं
हर रोज़ एक घटना घटती है 
साधारण सी ही घटती है, पर
अपने आप में गहरे अर्थ,
ढेर सारा विमर्श और
ढेर सारी करुपता लिए हुए
और अंत में, मेरे हिस्से आती है
सिर्फ एक सोच, कि
क्या अब इस जीवन में
कोई संभावना है,मेरे लिए ?
करुणा,करुणा और करुणा
क्या अब इसके अतिरिक्त भी
मेरा कोई जीवन होगा ?

अंजु(अनु)

43 comments:

रश्मि प्रभा... said...

सच्ची श्रद्धा जब खुद के लिए पूर्णता लेती है तो व्यक्तित्व की आंच अलौकिक होती है

रंजू भाटिया said...

खुद से कोई निर्णय लूँ
उस से पहले ही हिटलरी फरमान की
चिट्ठियाँ थमा दी जाती हैं |.........SAHI ABHIWYAKTI

Pawan Jindal, General Secretary said...

iske atirikt nahi, balki aapke jeewan mein hogi sirf...khushi khushi aur khushi

Dr. sandhya tiwari said...

ham itne majbut hai ki jo bhi dard milta hai use akele hi sah lete hain

Anita said...

और अंत में, मेरे हिस्से आती है
सिर्फ एक सोच, कि
क्या अब इस जीवन में
कोई संभावना है,मेरे लिए ?
यह सोच ही आगे ले जायेगी..जिंदगी राह दिखाएगी..

Arvind kumar said...

ना कुछ कहने को छोड़ा जाता है
ना कुछ करने को
फरियादी होने पे भी
खटखटाते दरवाज़े नहीं खुलते
माँगने पे इन्साफ नहीं
मिलता

badhiya...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
सूचनार्थ!

Arun sathi said...

करुणा,करुणा और करुणा
yahi sach he...shashwat kabita...

SANDEEP PANWAR said...

बेहतरीन शब्द, आज के हालात पर

Dr. Vandana Singh said...

मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति....

विभूति" said...

भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

मेरा मन पंछी सा said...

मार्मिक अभिव्यक्ति...
पर अब खुद से सवाल करना बंद....
अब तो सवालो का करारा जवाब देने का वक्त है..
वरना करुणा,करुणा और करुणा यही शेष रह जायेगा....

Amrita Tanmay said...

कोई संभावना दिखती तो नहीं है..

Asha Joglekar said...

मेरे इस जीवन में असीम संभावनाए हैं और हर सुबह एक नया दिन लेकर आती है ।

vandana gupta said...

करुणा नहीं अब आवाज़ बुलन्द करने का वक्त आ गया है।

Pallavi saxena said...

होता है कभी-कभी ज़िंदगी में ऐसा भी, शायद इसी का नाम ज़िंदगी है। भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

Saras said...

वाकई ऐसी स्तिथि से अक्सर दो चार होना पड़ता है ...खीज भी होती है ....लेकिन फिर हमेशा की तरह
और अंत में, मेरे हिस्से आती है
सिर्फ एक सोच, कि
क्या अब इस जीवन में
कोई संभावना है,मेरे लिए ?
....शायद समाज की कंडीशनिंग जब तक नहीं होगी ......यह स्तिथि बनी रहेगी ....सोचने पर मजबूर करती रचना

Anupama Tripathi said...

कल की तरह आज भी सूरज ऊगेगा ....होगी प्रदक्षिणा नभ के पथ पर प्रभामयी ....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

करुणा,करुणा और करुणा
क्या अब इसके अतिरिक्त भी
मेरा कोई जीवन होगा ?,,,,,बहुत उत्कृष्ट मार्मिक प्रस्तुति,,,,

recent post : समाधान समस्याओं का,

Arvind Mishra said...

अन्तर्द्वन्द्व

संध्या शर्मा said...

ताज़ा हालत भी कुछ ऐसे ही हैं...संभावनाएं दम तोड़ रही हैं... मार्मिक अभिव्यक्ति

ओंकारनाथ मिश्र said...

बहुत गहरे भाव लिए हुए है आपकी यह कृति. सुन्दर कृति.

Ramakant Singh said...

और अंत में, मेरे हिस्से आती है
सिर्फ एक सोच, कि
क्या अब इस जीवन में
कोई संभावना है,मेरे लिए ?
करुणा,करुणा और करुणा
क्या अब इसके अतिरिक्त भी
मेरा कोई जीवन होगा ?

संभावनाओं को नई दिशा देती रचना जिसमें भावी नए संसार का स्वरुप

रचना दीक्षित said...

महिलाओं का सारा जीवन इसी मनोभावना और कुंठा में ग्रस्त रहता है. इस तरह डरे सहमे कब तक. आपने अपने विचार बहुत वेबाकी से रखे है इसके लिये बधाई.

दिगम्बर नासवा said...

कुदरत के ब्रुश से अपने ही
सपनों में रंग भरती हूँ
देखती हूँ उन छोटी छोटी
चिड़ियों को, जो
अपनी इच्छा से चहकती
फुदकती हैं ...

पंछी भेड़ नहीं जानते ... संयम से रहते हैं ...
बहुत ही संवेदनशील भावों से बुनी रचना ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अब कोई करुणा , दया नहीं ... जिजीविषा चाहिए ...

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सोच सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य है

मुकेश कुमार सिन्हा said...

irada majboot ho to pura aasmaaa hai:)

Madan Mohan Saxena said...

वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति .

Kailash Sharma said...

नारी व्यथा की बहुत सशक्त अभिव्यक्ति..

खोरेन्द्र said...

achchhi rachna ..bahut khub

Randhir Singh Suman said...

nice

Unknown said...

Bahut umda....
और उनमें मैं अपना अक्स
देखने की कोशिश करती हूँ
पर हर बार की तरह
मेरे पंख क़तर दिए जाते हैं |
http://ehsaasmere.blogspot.in/

Unknown said...

bahut umda Rachna...
http://ehsaasmere.blogspot.in/

Milap Singh Bharmouri said...

nari ki vedna ko bhut khoobsurti se vyakt kiya hai.

मन के - मनके said...

मन की कशमकश को बखूबी उकेरा है

मन के - मनके said...

मन की कशमकश को बखूबी उकेरा है

मन के - मनके said...

मन की कशमकश को बखूबी उकेरा है

ताऊ रामपुरिया said...

अत्यंत संवेदनशील और गहन भाव अभिव्यक्त करती रचना.

रामराम

Udan Tashtari said...

मार्मिक भाव....भरोसा रखिये...बेहतर होगा भविष्य....हिम्मत से आगे बढ़ना होगा...

उम्दा रचना.

वीना श्रीवास्तव said...

बहुत मार्मिक रचना....

सुज्ञ said...

कुदरत के ब्रुश से अपने ही
सपनों में रंग भरती हूँ
देखती हूँ उन छोटी छोटी
चिड़ियों को, जो
अपनी इच्छा से चहकती
फुदकती हैं
और उनमें मैं अपना अक्स
देखने की कोशिश करती हूँ
पर हर बार की तरह
मेरे पंख क़तर दिए जाते हैं |

बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति!!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

क्या नारी के हिस्से में सिर्फ करुणा है ..व्यथा है ...पीड़ा है