Wednesday, December 26, 2012

मैं एक नारी हूँ

                                             Artist....Ameeta Verma
 

हे!सखा कृष्ण
मैं एक नारी हूँ ,
आत्मा हूँ हर युग की
मैं एक चुनौती-एक आवाहन हूँ
झंझोरती हूँ तुम्हें कि
जैसे मैं मिटती आई हूँ 
किसी  भी युग की स्थापना हेतु
क्या वैसे ही कोई पुरुष मिटा पाएगा खुद को ?
हे! सखा कृष्ण
मेरे लिए,मेरा रक्त बहाना
कोई नयी बात नहीं है
पर हर युग में
पुरुष ने मुझे श्रेष्ठ संगनी की जगह
श्रेष्ठ भोगिनी बना दिया
काश, किसी ने तो समझी होती
नारी मन की पीड़ा को |

हे!सखा कृष्ण
नारी की सबसे बडी बदकिस्मती कि
क्यों तुमने ही मुझे पंच-पुरुष की(द्रोपदी के मन की बात )
नायिका बना,
द्वंद और लज्जा में है डाला
ग्लानि,संकोच और विरह की ओर
बढते हुए, तब भी मेरे  पाँव 
पत्थर हो जाते थे  
हे! कृष्ण
उनके पौरुष की गरिमा बनाए रखने के लिए
तुमने मेरी अस्मिता को ही
दाव पे लगा दिया
मैं तब भी क्रोध से जर्ज़र हो गई थी 
घोर अपमान लगा था मुझे
एक औरत के मन का, देह का
कि, एक से अधिक पति ?
तुम ये कैसे भूल गए कि
मैं एक स्त्री हूँ
अग्नि को साक्षी रख
क्या सबको पति बना, सिर्फ एक के साथ
स्त्री  का कर्तव्य पालन कर पाऊँगी ?
एक स्त्री होने के नाते मैं
सदियों-सदियों तक
तुम्हारी गलती और अपने क्षोभ
को लेकर अंदर ही अंदर
अपनी ही आग में जलती रही
वो भी बस इसलिए कि
मैं एक नारी हूँ 
हे!सखा कृष्ण 
पर अब कब तक ?
अंजु (अनु)


( ये कविता मात्र एक सोच है, किसी को आहत करने के विचार से नहीं लिखी गई | मानती हूँ हर किसी के विचार अपने हैं अगर किसी को मेरी कविता के भाव,शब्द ठीक ना लगे हों तो क्षमा मांगती हूँ )

48 comments:

Nidhi said...

क्षमा की कोई आवश्यकता तो नहीं थी

Unknown said...

उम्दा रचना | बहुत सुंदर भाव प्रस्तुत किए हैं आपने |
कहीं कहीं टंकण में कुछ अशुद्धियाँ हैं | निवेदन है कि एक बार स्वयं पढ़के सुधार कर लें |

Anju (Anu) Chaudhary said...

प्रदीप जी ...आप बेझिझक यहाँ बता सकते है ...सादर

रंजू भाटिया said...

आखिर कब तक ..वाकई यह सवाल बहुत सलता है दिल दिमाग को ..सुन्दर भाव दिए हैं आपने इन शब्दों को ..बेहतरीन बहुत

Unknown said...

sundar abhivykti

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत ख़ूब वाह!

आप शायद इसे पसन्द करें-
कवि तुम बाज़ी मार ले गये!

Anju (Anu) Chaudhary said...

शुक्रिया रंजू दी

Unknown said...

मैं एक नारी हूँ
हे!सखा कृष्ण
पर अब कब तक ?Har naari kabhi na kabhi ishwar se yeh kahti hogi kisi na kisi sandarbh mei ..... sundar abhivyakti

अशोक सलूजा said...

नारी के मन की व्यथा को बखूबी अपनी रचना में
आपने दर्शाया है .....बधाई!

उपेन्द्र नाथ said...

bahut hi umda aur behatarin abhivayakti

उपेन्द्र नाथ said...

bahut hi umda aur behatarin abhivayakti

Sadhana Vaid said...

नारी मन की व्यथा को बड़ी सटीक अभिव्यक्ति दी है ! बहुत सुन्दर रचना !

मदन शर्मा said...

एक ज्वलंत प्रश्न ...द्रौपदी की मनोदशा ...सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने ..कब तक नारी रूढ़ीगत परम्परा में जकड़ी रहेगी ....प्राचीन काल से लेकर आज तक हमारे देश में औरतों को उपभोग की वस्तु समझा जाता रहा है... भले ही हम इक्कीसवीं सदी में रहने का दंभ भरते हैं, लेकिन औरतों के प्रति हमारी सोच आज भी अमानुषिक, बर्बर एवं दकियानुसी है.....साथ ही, इस समाज में स्त्री को देवी मानकर पूजा करने का ढकोसला भी किया जा रहा है... विडम्बना एवं दुर्भाग्य है कि भारतीय नारी एक दोगले तथा बीमार समाज में सांस ले रही हैं.....































sushila said...

नारी मन की पीर सहज और निर्बाध मुखरित हुई है। मर्म को छू गई आपकी कविता।
बधाई !

Pallavi saxena said...

नारी मन की व्यथा को बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया है आपने....मगर अब नारी को अपने सम्मान के लिए, अपने स्वाभिमान के लिए, स्वयं संघर्ष करना होगा। तभी कुछ होगा।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

एक नारी के पीड़ा की बहुत ही सुंदर प्रस्तुति,,,,

recent post : नववर्ष की बधाई

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 27 -12 -2012 को यहाँ भी है

....
आज की हलचल में ....मुझे बस खामोशी मिली है ............. संगीता स्वरूप . .

Kulwant Happy said...

मर्मस्‍पर्शी

Kulwant Happy said...

मर्मस्‍पर्शी

खोरेन्द्र said...

हे! कृष्ण
उनके पौरुष की गरिमा बनाए रखने के लिए
तुमने मेरी अस्मिता को ही
दाव पे लगा दिया
बहुत सुन्दर रचना !

मुकेश कुमार सिन्हा said...

man ke andar se aati kondhti hui aawaaaj - kyon dropadi ko paanch paanch logo ki patni ke roop me ek mahakavya me rachit kiya gaya.... kya ye baat purush satta ko jahir karne ke liye????

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

badhia anu ji

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर भाव और अभिव्यक्ति भी .....

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बिल्कुल सही लिखा है आपने.. नारी ह्रदय की व्यथा ...

दिगम्बर नासवा said...

इतिहास कुछ प्रशन शायद इसलिए ही होते हैं की भविष्य की दिशा निर्धारित हो सके ... न की बातों को अन्यथा लें ...
प्रभावी रचना ...

संध्या शर्मा said...

पर अब कब तक ?
गहन प्रश्न है, लगभग अनुत्तरित सा... शायद इस सवाल का जवाब देने स्वयं कृष्ण को ही जन्म लेना होगा... कहते हैं न जब धरती पर पाप अपनी चरम सीमा पर होगा तब श्रीकृष्ण जन्म लेंगे तो आ गया है अब वह वक़्त...

Amrita Tanmay said...

सही तो कहा है..

ashok andrey said...

aapki yeh kavita man ke har kone ko jhinjhorti hai,vakeii yeh sawal jise aapne uthaya hai sadion se anuttarit hee rahaa hai,sundar.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हर नारी की यही व्यथा कथा है .... गहन अभिव्यक्ति

Kailash Sharma said...

नारी मन की व्यथा का बहुत सुन्दर चित्रण...

प्रेम सरोवर said...

आपकी यह कविता मन को आंदोलित कर गई । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

Naveen Mani Tripathi said...

bahut hi prabhavshali rachana mai ap se bilkul sahmat ho gya ....badhai anju ji

Vandana Ramasingh said...

मर्मस्पर्शी ...

Unknown said...

चौथी पंक्ति में "आवहान" के जगह "आवाहन" या "आह्वान" हो सकता है ।
आठवीं पंक्ति के अंत में आप शायद "को" लिखना चाह रही हैं पर गलती से "क" रह गया है ।

सुनील गज्जाणी said...

namaskaar
behad sunder abhivyakti hai . achcha dwand
badhai

अरुण चन्द्र रॉय said...

udwelit karti kavita

रश्मि प्रभा... said...

आपत्ति ? क्यूँ?
क्षमा-क्यूँ?
आग जो जलती आई है वर्षों से ,वह सवाल तो करेगी ही

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत गहन और मार्मिक पीडा अभिव्यक्त हुई है इस रचना में. काश सखा कृष्ण किसी भी रूप में इस कलियुग में भी अवतरित हो जायें. बेहद सटीक.

रामराम.

Unknown said...

भावनाओं की मार्मिक प्रस्तुति, नारी मन मे तो व्यथा सदियों से नहीं आदिकाल से भरी हुई है, रामायण, महाभारत तक मे भी न केवल उसकी अस्मिता और स्वाभिमान का हश्र दर्शाया है, अपितु किसी भी प्रकार से उसको अनुचित भी नहीं ठहराया है॰ उस व्यथा को प्रभावी रूप से उद्भोदित किया है आपकी रचना में॰

Unknown said...
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Rohit Singh said...

काहे को क्षमा.....कृष्ण ने अपना कर्तव्य पथ चुना..राधा ने अपना..इसमें क्षमा जैसे उधार के शब्दों के लिए जगह कहां....जहां प्रेम हो वहां सब रस समान हो जाते हैं.....आपने भी प्रेम में ही अपना मान रखा है।

रचना दीक्षित said...

बहुत ही तार्किक और मार्मिक अभिव्यक्ति.

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति.

संजय भास्‍कर said...

नारी मन की व्यथा को बड़ी सटीक व्यक्त किया है..... अनु दी आपने !

वाणी गीत said...

विभिन्न पौराणिक या ऐतिहासिक पात्रों की मनःस्थिति आंदोलित करती ही है .
कैसे सहा द्रौपदी ने इतना अपमान , एक नारी उस वेदना को समझ सकती है !
वैशाली की नगरवधू पढ़ते भी कई बार ऐसी अनुभूति होती है मुझे !

Arvind kumar said...

सदियों-सदियों तक
तुम्हारी गलती और अपने क्षोभ
को लेकर अंदर ही अंदर
अपनी ही आग में जलती रही
वो भी बस इसलिए कि
मैं एक नारी हूँ

no words...

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की ५५० वीं बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन की 550 वीं पोस्ट = कमाल है न मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Tamasha-E-Zindagi said...

लाजवाब रचना | मार्मिक