Thursday, January 24, 2013

ये कैसा गणतंत्र,ये कैसी आज़ादी ?


कहर ढहते देखे
इस तूफानी दौर में
सभी चोर हैं 
इस तूफानी दौर में
लहरों से आगे तो निकल गए हैं 
पर खाईयों को दिखा कर डरा रहें
इस तूफानी दौर में |

इस तूफानी दौर में,
मन में छिपा है,
पढ़ा-लिखा सभ्यता का चोर
आसमां को छूने की तमन्ना में
जो कुतर रहा अपने ही घर का कोना-कोना
बूढी हो चुकी व्यवस्था के आईने को
दरारों के हाशिये पर जब भी देखती हूँ,
बस उसे, नम आँखों से ही ताकती हूँ
पीड़ा का घूँट पीकर
नए सृजन का सोचती हूँ
फिर भी, चारों ओर शोषण का जाल ही दिखता है,
चेतना आधारहीन है,
सबलता का कुछ अता पता नहीं,
बलात्कार का है बोलबाला,
हर तरफ मुनाफे की खुली है मधुशाला,
सता के नशे में चूर,
शोषण की चोट से बिलकता हर आम इंसान हैं
ऊपर से महंगाई की दोहरी मार है  |

इस तूफानी दौर में
है चोरों ओर अँधेरे का राज
गाँव,शहरों,गलियों और चौराहों से
बिलख-बिलख कर निकलती है
अब हर किसी की आवाज़
कि, सभी नेता चोर हैं
धृतराष्ट बन धृत पीने लगे हैं
और सभी के चाल-चरित्र,चेहरे आतंकियों के
समान ही सजने लगे हैं
धोखा,साजिश और करोडों का घपला
अब इस देश का हाल
''अंधेर नगरी का चौपट राजा''जैसा है 
जिसने आज़ादी को भी 
अँधेरे में डाला है 
गेहूँ,चावल,दालों की भूखे आदमी के अन्न को भी
खा रहें हैं,सरकारी सफेदपोश चूहे
सरकारी गोदामो में सब-कुछ सड़ाकर फेंक रहें हैं
समुन्दर में देश के दक्षिणी भागो में,
क़र्ज़ में डूबता किसान ,
फांसी पर भी लटकते-मरते देखे हैं |


इस तूफानी दौर में,
आज भी,सीमा पर जवान मारे जाते
यतीम होते बच्चे
विधवा होती भारत की बिटियाँ
सूनी होती माओं की गोदें
बूढ़े बाप ढोते हैं लाशें जवान फौजी बेटों की
और नेता आराम से भाषण बांचते, सोते फिरते हैं |
ये कैसी आज़ादी,कैसा ये गणतंत्रत है
हर बार की तरह
इस बार भी २६ जनवरी को
देश के राष्ट्रपति,इंडिया गेट पे सलामी लेंगे
दो शब्द सहानुभूति के बोलेंगे
कि हम ने इस देश के लिए,
क्या-क्या किया या कर रहें हैं
वो रटारटाया,कागज से देख-देख
भाषण तो दे देंगे,पर
उनके इतने वादों और इरादों के बाद भी
घोर निराशा के जंगल में
इन नेताओं के भेष में
भ्रष्ट लुटेरे डाकू दिखते हैं
ये सभी वोटो के भिखारी  
इस देश पर आज भी भारी हैं
क्यों फिर भी हम,
इतने सालों बाद भी 
अपनी आज़ादी और गणतंत्र को
इस तरह मना रहें हैं?
जबकि आज तक भी,
हमारे देश को इन लुटेरों ने घेर हुआ है 
क्यों,हर बार मेरा मन, मुझे से ये पूछे
उफ़,ये कैसा है गणतंत्र और कैसी है ये जश्न-ए-आज़ादी ?

अंजु(अनु)

41 comments:

मुकेश कुमार सिन्हा said...

wah re jashn-e-ajaadi... !!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वर्तमान का सजीव चित्रण!

Unknown said...

SATIK N SAMSAMYIK

Unknown said...

समसामयिक पोस्ट लाजवाब

Pallavi saxena said...

सरकार ही अकेली इस सब के लिए जिम्मेदार नहीं है क्यूंकि इन भ्रष्ट नेताओं को आखिर वोट भी तो हम हीं देते हैं। रही बात जश्न-ए-आज़ादी की तो वो तो एक सलाम है देश के शहीदों के नाम, वो तो जितने जोशीले तरीके से माना सकें उतना ही अच्छा,दामिनी कांड के बाद देश में जो गुस्सा नज़र आया वो प्रमाण है इस बात का की आज भी हमारे देश में लाख बुराईयों के बावजूद अब भी थोड़ी आमियता,सहानुबूती,बहादुरी नुमा प्राण अब भी बाकी है अब भी देर नहीं हुई है बस इस लौ को जालाए रखने की जरूरत है।

डा श्याम गुप्त said...

"सभी चोर हैं" --- में.... हम सब आप भी सम्मिलित हैं....हमें सोचना होगा ... हम सुधरेंगे तो जग सुधरेगा....

--- ये सचमुच का गणतंत्र है---- गणतंत्र का अर्थ गण...अर्थात विशिष्ट व्यक्तियों का देश ....जन सामान्य का ..जनतंत्र कहाँ रहा ....

Anju (Anu) Chaudhary said...

डॉ श्याम गुप्त जी ...आपकी बातों से सहमत हूँ ..बदलाव अपने ही भीतर से होगा

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

सटीक , समसामयिक , सुंदर कविता

सुनीता शानू said...

ह्म्म्म सही कहा।

कालीपद "प्रसाद" said...

आक्रोश भरी यह अभिव्यक्ति सटीक और सामयिक है ..इस चोरों के बस्ती में "सामाजी जागरूकता "के रूप एक आशा की किरण दिखाई पड़ी है.
New post कृष्ण तुम मोडर्न बन जाओ !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

आज की सच्चाई का सटीक चित्रण,,,,

गणतंत्र दिबस की हार्दिक शुभकामनाए,,,

recent post: गुलामी का असर,,,

Anonymous said...

हर मंज़िल पर घात लगाए जब अपनों को ही पाना है
प्रथम लड़ाई खुद से ही, इस सच को नहीं झुठलाना है।

रश्मि प्रभा... said...

जिन्हें नाज है हिन्द पर वो कहाँ हैं ....

Maheshwari kaneri said...

बहुत लाजवाब पोस्ट...

मनोज कुमार said...

जो प्रश्न आपने उठाए हैं, वे वाकेई में चिंतनीय हैं।

Rohit Singh said...

इसी आजादी को सुधारने की जंग बाकी है। क्या करें जितना संभव है सिर कटाना और जान तो लड़ानी ही होगी....आखिर करोड़ों ने जान देकर ये थाती हमें सौंपी है।

अरुण चन्द्र रॉय said...

vyavastha par chot karti achi kavita... phir bhi gantantra diwas kee shubhkamna

संध्या शर्मा said...

कैसा गणतंत्र और कैसी जश्न-ए-आज़ादी, आज हर तरफ अपनों से अपनों की जंग है... सटीक अभिव्यक्ति

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हालात सच में विचारणीय हैं अनु जी...... सटीक चित्रण

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हालात सच में विचारणीय हैं अनु जी...... सटीक चित्रण

Pratibha Verma said...

सुंदर कविता...

वाणी गीत said...

जैसा भी यह गणतंत्र है , हमने ही बनाया है ....हम बदलेंगे , जमाना बदलेगा , श्याम जी से सहमत !

Niraj Pal said...

बहुत ही सार्थक प्रस्तुति।

रविकर said...

अच्छी प्रस्तुति |
आभार आदरेया ||

Arvind kumar said...

गणतंत्र और जश्न-ए-आज़ादी...ye habd bhi lagte ajnabi se...

kavita verma said...

sateek abhivyakti..

Kailash Sharma said...

आज के गणतंत्र के हालात पर सटीक प्रश्न उठाती बहुत सार्थक प्रस्तुति...

Anita said...

यथार्थवादी रचना..गहरे आक्रोश से उपजी हुई..आभार!

संजय भास्‍कर said...

गणतंत्र दिबस की सच्चाई का सटीक चित्रण........!!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इसके उत्तर भी हमको ही खोजने हैं .... बहुत सशक्त रचना

Saras said...

एकदम सही है आपका कथन ...जश्न-ए-आज़ादी शायद इसलिए मनाते हैं...की उन वीरों के प्रति कुछ कृतज्ञता प्रकट कर सकें जिन्होंने...इस आजादी को पाने के लिए न जाने कितने ज़ुल्म सहकर अपनी आहुति दी ....बस उस यज्ञ की आग को जिंदा रखना है ...इसलिए जश्ने आज़ादी मनाना है .

Amrita Tanmay said...

पीड़ा का घूँट पीकर भी सृजन होता है और पीड़ा से भर देता है .

Sumit Pratap Singh said...

व्यवस्था में आएगा परिवर्तन कैसे भला
आपका क्रोध तो कुछ पल का क्रोध है.
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ...

हरकीरत ' हीर' said...

आज़ादी को आईना दिखा दिया आपने ...!!

Aruna Kapoor said...

...हम आज भी सिर्फ कहने को आजाद है!...गणतंत्र दिवस तो बस एक त्यौहार बन कर रह गया है!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

अति सुन्दर ,भावपूर्ण रचना ...

Unknown said...

बूढी हो चुकी व्यवस्था के आईने को
दरारों के हाशिये पर जब भी देखती हूँ,
बहुत खूब!
सुन्दर रचना
सादर!
http://voice-brijesh.blogspot.com

Madan Mohan Saxena said...

अपनी आज़ादी और गणतंत्र को
इस तरह मना रहें हैं?
जबकि आज तक भी,
हमारे देश को इन लुटेरों ने घेर हुआ है
क्यों,हर बार मेरा मन, मुझे से ये पूछे
उफ़,ये कैसा है गणतंत्र और कैसी है ये जश्न-ए-आज़ादी ?
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति

Vaanbhatt said...

कुछ बात है की हस्ती...इसी गुमान में मनाये जा रहे हैं ये गणतंत्र...हर क्षण गुलामी को गले लगाते हम...अंग्रेजों से आज़ादी का ही जश्न मना सकते हैं...

Unknown said...

आज के हालात पर सटीक ,सार्थक प्रस्तुति...
http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post.html

Dinesh pareek said...

हर शब्द की अपनी पहचान बना दी क्या खूब लिखा है
मेरी नई रचना

प्रेमविरह

एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ