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Thursday, December 13, 2012

आईना

ये कैसी कशमकश है कल दिन भर उस से बात नहीं हुई और मैं बार बार उसे ही सोचती रही कि अभी फ्री होगा अब मुझे उसका फोन आएगा, मेरे मोबिल पर अभी उसका कोई sms आएगा, पर पूरा दिन निकल गया | आज एक नया दिन है पर अभी तक कोई सम्पर्क नहीं, उसका कोई अता पता नहीं मन की हलचल है जो थमने का नाम नहीं ले रही उसके लिए क्या सोचूं और क्या नहीं, मन की सोच बस गलत ओर ही जा रही है कि उसे कुछ हुआ ना हो, ये ही सोच एक ही जगह स्थिर हो चुकी है खुद से बाते करने की ये स्थिति मुझे मेरे से ही  हर बार ये ही प्रश्न करने के लिए खड़ा कर देती है कि क्यों किसी का भी इंतज़ार इतना तकलीफ़देह होता है और कुछ ही देर में मैं खुद को आईने के सामने देखती हूँ और खुद को देखते हुए बस ये ही सोचती हूँ कि मैं सुन्दर क्यों नहीं हूँ,काश मैं भी सुन्दर होती तो वो एक नज़र भर मुझे देखता, उसकी आँखे भी मुझ से कुछ कहती और मैं शरमा कर अपनी आँखे नीची कर लेती और पैर के अंगूठे से ज़मीन पर यूँ ही कुछ खरोंचने का दिखावा करती, पर मैं कभी उस से अपने दिल की बात कह ही नहीं पाई और आज बरसों बाद उसका यूँ मेरी जिंदगी में आना, एक नयी कशमकश को जन्म दे गया है |  ये बात मुझे अब बार बार कचोटती रही है कि आखिर ऐसा अब इस वक्त क्यों,वक्त की चादर में ऐसा क्या छिपा है जो मुझे नहीं दिख रहा ?खुद को फिर से आईने में देखती हूँ तो दो आँसू गिरते हैं  और फिर जिन्दगी की आवाज़ आती है और मैं आँसू  पोंछती हुई अपने वर्तमान में लौट आती हूँ एक नया दिन जीने के लिए सबके साथ, सबके लिए | कोई बुरा सा ख्याब देखते हुए में आज जागती हूँ और खो जाती हूँ अपनी इस दुनिया में, सबके लिए |
वक्त बीतने लगा, मैं फिर से एक अनचाही नींद से जागती हूँ और सोचती हूँ खुद और तुम्हें कि  हम लोगों की दोस्ती ने (हो सकता है ये प्यार भी हो ) नए आयाम तय कि थे हम दूर होते हुए भी करीब रहें पर अब जबकि मैं ये जान गई हूँ कि अब तुम नहीं हो ये जानते हुए भी तुम्हें सोच कर लिख रही हूँ अब तुम कभी नहीं आओगे ना ही हम दोनों के बीच कोई बात होगी और दोनों के एक होने का कोई भी अहसास आज से आएगा | ये वक़्त ऐसा है कि हम दोनों ही इस वक़्त खूब बातें हुआ करती थी  कि कुछ पल पूरे दिन के बाद हम दोनों साथ रहते थे, साथ बैठे, साथ बातें की पर आज से वो भी नहीं होगा, ना मैं तुम्हारे करीब आ पाऊँगी और ना तुम्हारी गोद में सर रख के सुकून के वो पल मुझे नसीब होंगे और अब मुझे तुम्हारे ही बिना रहने की आदत डालनी होगी, कुछ दिन के लिए मन बहुत तड़पेगा, बहुत याद आएगी तुम्हारी, पर इसके बाद मुझे तुम्हारे ख्याल के बिना रहने की भी आदत हो जाएगी |तुम जानते हो ना मैं तुम्हारी गोद में सर रख कर अपने दिन भर की बातों को तुम्हें बताती हूँ और तुम अपनी उँगलियों से मेरे बालो में हाथ फेरते हो तो ऐसा महसूस होता था कि हम दोनों ही इस जाहन से नहीं हैं हम दोनों दूर किसी देश से भटक कर इस दुनिय में आ गए है और मुझे हर वक्त ये अहसास होता था कि आस पास के लोग विचित्र नज़रों से हमको देखते भी हैं,फिर भी हम दोनों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता हम अपनी ही दुनिया में मस्त रहते थे तुम मुझे निराहते हुए खुद के करीब करते थे और मैं तुम्हारे ही निहारने में खुद को ले कर खो जाती थी ये कैसा अहसास था, क्या तुम जानते थे  ?
ताकती हूँ उस खाली से आसमां को, जहाँ आज तारों की चमक भी फीकी सी लगती है और पूछती हूँ उस खुदा से अपनी सूनी आँखों से कि क्यों छीन लिया मेरा हर अहसास उसके साथ ही,जिसने मुझे इस जहान में सबसे सुन्दर बना दिया था कुछ ही दिनों में, पर तुमने उसे वक्त से पहले अपने पास बुला लिया है अब मैं इस अहसास का क्या करुँगी, जो मुझे अब नहीं मिलेगा उसे  और मुझे अब ऐसे ही अलग अलग जीना होगा, मुझे मेरी और उसे तुम्हारी दुनिया मुबारक हो कि अब के बाद से उसका कोई भी ख्याल मुझे आ कर परेशां नहीं करेगा, पर ऐसा कैसे होगा ये मैं भी नहीं जानती |ऐसा क्यों है ? इस बात का जवाब तो मेरी सूजी आँखों और मेरे आईने के पास भी नहीं है |
 
अंजु (अनु)