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Tuesday, August 27, 2013

प्रेम और जुदाई (एक कृष्ण लीला ...उस लीलाधारी की)



 राधा  और कृष्ण का प्रेम ...जहाँ एक ओर राधा अपने प्रेम भावनाओं में बह रही है ...अपने मन के भाव को कृष्ण के साथ बाँट रही है...वहीँ दूसरी ओर वो अपने मन और कृष्ण को ये समझाने में असमर्थ है कि वो उनके जाने पर कितनी दुखी है ...प्रेम और जुदाई के भाव को लेकर लिखी गई रचना .......
 

मंद मंद समीर की
सूर्योदय बेला में
शीतल स्पर्श से तुम्हारे
पुलकित है मन मेरा |

उमस भरी रजनी की
अलसायी आँखों में
सुरभित झोंकों से
गुंजित है 
बांसुरी वादन तुम्हार |

वायु के मृदु अंक में
खिली हर कली कली
मधुर संगीत की धुन पर
भ्रमर, ये अंग अंग मेरा |

खुले आकाश तले
तुम्हारी ,हथेलियों पर रख कर
शीश अपना
झूमती हूँ मैं,पल पल  ||

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कैसे कहूँ अब तुम से 
जाने से तुम्हारे ,विचलित हूँ
झुलस जाऊँगी ,विरह में तुम्हारे

कुछ किरण ,कुछ धूप 
कुछ पकड़ में आने लायक
तुम्हारा ये छलिया रूप
कुछ मंद,कुछ तेज
यह संगम किसको समझाऊँ  मैं
तुम्हारे प्रेम की अग्नि में
तप गई ये प्रेम दीवानी
किसको अब दिखलाऊँ मैं
भस्म हुई फिरती हूँ ,

कैसे तुम्हें समझाऊँ मैं
हे प्रभु ! क्यों इतना स्नेह बरसाते हो
कि मन भ्रमित हो जाता है और
फिर,रिमझिम नैना बरसते हैं |

माना,मैंने
एक दृष्टि तुम्हारी
सारी पीड़ा हर लेती है
क्यों अब इन नैंनो को
उम्र भर...राह तकने की
सज़ा दिए जाते हो
जितनी भीगी प्रेम में तुम्हारी
उतनी ही अब अपनी प्यास दिए जाते हो
होठों पर कैसे लाऊँ 
करुण पुकार मैं अपनी
उम्र भर का इंतज़ार,तुम्हारा
क्यों मुझे दिए जाते हो
कैसे बतलाऊँ तुम्हें ,
न दिन,न रात 
हे!केशव 
साँझ की बेला में घटी ये बात
तुम्हारी ये निशब्द सी लीला

और अब उम्र भर का 
वियोग तुम्हारा
मुझे असहनीय पीड़ा दिए जाता है
 
मुझे  असहनीय पीड़ा दिए जाता है ||

अंजु (अनु)