Saturday, August 4, 2012

त्रासदी ...(बादल फटने की )


त्रासदी ...(बादल फटने की )

आज फिर बादल फटा

आज फिर किसी की
दुनिया उजड गई होगी
आज भी कई मासूम अनाथ
हों गए होंगे ..
और कई माँ बाप ...इस दुनिया में
अकेले रह गए होंगे ...

किसी का घर बह गया

तो किसी की दुकान...
कोई राह चलता नहीं
पहुँच सका घर अपने ..
हँसती खेलती ...बगिया
हर बार उजड जाती हैं
इस कुदरत के कहर से
आँखों के आँसूं अभी सूखते भी नहीं हैं
और हर साल एक नयी
त्रासदी चली आती हैं
लोगो को रुलाने के लिए
हर बार ,ये मानव लड़ता हैं
उस ईश्वरीय ..विपदा से
एक नयी ताकत से
बार बार हारने को ...

हर बार दर्द उभरता हैं

उनके ,अपनों की खोज में
हर दर्द बोलता हैं
एक नयी जगह की
तलाश में
हर दर्द ,प्रतिबिम्ब बन कर
रहा गया ,आने वाले कल का
हर दर्द ,एक प्यास जगा गया
उनके अपने जीवन के प्रति
हर दर्द ,दर्शाता हैं
विवशता उनकी आँखों में
दिखती जो नहीं अब कोई बची आस
इस बादल से गिरते पानी में
आ गई ये मौत
बेवक्त की रवानी में
अमीर गुज़रा,गरीब गुज़रा
ये नहीं देखा ,उस बादल से
गिरते पानी ने .....
वो तो बस सब कुछ
बहा ले गया अपने साथ
सबको कच्ची मिट्टी के घड़े समान
बिखर गई जिन्दगियाँ,
बिखर गए सबके अरमान
जो नहीं बिखरा ...
बस वही हैं इस कुदरत का चमत्कार ||

अंजु (अनु)

27 comments:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

मन को छू लेने वाली

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

रेखा श्रीवास्तव said...

ये प्रकृति का कहर वाकई हर वर्ष कितने जीवन यूं ही तबाह करके चला जाता है, ऐसे संकट के क्षणों में ईश्वर से प्रार्थना है कि उनको धैर्य दे. बहुत ही सुंदर शब्दों में ये वेदना व्यक्त की है.

ANULATA RAJ NAIR said...

जो नहीं बिखरा वो शायद तसल्ली है..
मन को छूने वाली पोस्ट...घटना ने तो व्यथित किया ही है.

सस्नेह
अनु

अरुण चन्द्र रॉय said...

अदभुद...मन को छूने वाली रचना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

कुदरत की त्रासदी में, कोई न देता साथ
कितने घर है उजड़ते,कई हो जाते अनाथ,,,,

व्यथित करती घटना,,,,,

RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,

amit kumar srivastava said...

उत्तरकाशी में अपनी तैनाती के दौरान वर्ष ९४ /९५ में भी ऐसी ही घटना , बादल फटने की , मैंने स्वयं देखी थी | भयावह लगता है | जहां एक दिन पहले पूरा गाँव था , वहां एक नाला सा बहता देखा था | पहाड़ों में इसे पण गोला फटना कहते हैं |

Unknown said...

parkriti ke kahr par sunder bhaw liye ,dill ko choo lene wali umda rachna.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

त्रासदी की हृदयस्पर्शी प्रस्तुति...
सादर.

मेरा मन पंछी सा said...

त्रासदी से पीड़ित व्यक्ति के दर्द को
बखूबी व्यक्त किया है....
मन व्यथित करती रचना...

संध्या शर्मा said...

जो नहीं बिखरा ...
बस वही हैं इस कुदरत का चमत्कार ||
सच है कुदरत के साथ खिलवाड़ का नतीजा हर किसी को भुगतना होता है बिन भेदभाव के कहर ढाती है और दुलारती है तो एक माँ की तरह जिसे अपना हर बच्चा एक जैसे प्यारा होता है...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कुदरत अपना संतुलन खुद कर लेती है ... यही चमत्कार है । सुंदर और मार्मिक रचना

Ramakant Singh said...

हर बार ,ये मानव लड़ता हैं
उस ईश्वरीय ..विपदा से
एक नयी ताकत से
बार बार हारने को ...

हर बार ,ये मानव लड़ता हैं
उस ईश्वरीय ..विपदा से
एक नयी ताकत से
बार बार जीतने को

आपसे जीतने की आशा में घृष्टता के लिए क्षमा प्रार्थी

रचना दीक्षित said...

प्राकृतिक त्रासदी कहीं भी कहर बन कर टूट जाती है और छोड जाती है दृवित करते अनुभव.

सुधाकल्प said...

दिल को छू गई कविता की हर पंक्ति |

सुधाकल्प said...

दिल को छू गई कविता की हर पंक्ति |

दिगम्बर नासवा said...

प्राकृति के इस कहर को शब्दों में उतारा है आपने ... दिल को छू गयी ...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

dukhad ghatna...sundar prastuti..!!

रश्मि प्रभा... said...

हर बार दर्द उभरता हैं
उनके ,अपनों की खोज में
हर दर्द बोलता हैं
एक नयी जगह की
तलाश में
हर दर्द ,प्रतिबिम्ब बन कर
रहा गया ,आने वाले कल का .... पल पल को जीते हुए एहसास

सदा said...

ये अहसास मन को झकझोर देते हैं ... भावमय करती प्रस्‍तुति।

Anonymous said...

समसामयिक दुर्घटना पर सटीक लेख ।

Kailash Sharma said...

हर बार दर्द उभरता हैं
उनके ,अपनों की खोज में
हर दर्द बोलता हैं
एक नयी जगह की
तलाश में
हर दर्द ,प्रतिबिम्ब बन कर
रहा गया ,आने वाले कल का

....बहुत मर्मस्पर्शी...भाव अंतस को छू गये..

मन के - मनके said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति,प्रकृति की मार किसी को नहीं छोडती.

Anita said...

बहुत भावप्रवण रचना..प्रकृति जब कहर ढाती है तो आदमी बेबस हो जाता है

Sarika Mukesh said...

प्रकृति भी कैसे-कैसे विनाश लाती है!! एक जिज्ञासा है: क्या आप बादल फटने का वैज्ञानिक कारण बताएंगी? बहुत ही ह्रदय-विदारक अभिव्यक्ति है आपकी! सच, कितनों को बरबाद कर देती हैं ऐसी आपदाएं!!
सारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.com/

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट कल 9/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें

चर्चा - 966 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

निवेदिता श्रीवास्तव said...

प्रकृति ऐसी त्रासद घटनाओं के द्वारा अपनी सामर्थ्य जतला देती है .........

विवेक दुबे"निश्चल" said...

Prakrti se chhed chhad ka parinam kuchh is tarah hi hoga....
Sundar rachna....