त्रासदी ...(बादल फटने की )
आज फिर बादल फटा
आज फिर किसी की
दुनिया उजड गई होगी
आज भी कई मासूम अनाथ
हों गए होंगे ..
और कई माँ बाप ...इस दुनिया में
अकेले रह गए होंगे ...
किसी का घर बह गया
तो किसी की दुकान...
कोई राह चलता नहीं
पहुँच सका घर अपने ..
हँसती खेलती ...बगिया
हर बार उजड जाती हैं
इस कुदरत के कहर से
आँखों के आँसूं अभी सूखते भी नहीं हैं
और हर साल एक नयी
त्रासदी चली आती हैं
लोगो को रुलाने के लिए
हर बार ,ये मानव लड़ता हैं
उस ईश्वरीय ..विपदा से
एक नयी ताकत से
बार बार हारने को ...
हर बार दर्द उभरता हैं
उनके ,अपनों की खोज में
हर दर्द बोलता हैं
एक नयी जगह की
तलाश में
हर दर्द ,प्रतिबिम्ब बन कर
रहा गया ,आने वाले कल का
हर दर्द ,एक प्यास जगा गया
उनके अपने जीवन के प्रति
हर दर्द ,दर्शाता हैं
विवशता उनकी आँखों में
दिखती जो नहीं अब कोई बची आस
इस बादल से गिरते पानी में
आ गई ये मौत
बेवक्त की रवानी में
अमीर गुज़रा,गरीब गुज़रा
ये नहीं देखा ,उस बादल से
गिरते पानी ने .....
वो तो बस सब कुछ
बहा ले गया अपने साथ
सबको कच्ची मिट्टी के घड़े समान
बिखर गई जिन्दगियाँ,
बिखर गए सबके अरमान
जो नहीं बिखरा ...
बस वही हैं इस कुदरत का चमत्कार ||
अंजु (अनु)
27 comments:
मन को छू लेने वाली
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ये प्रकृति का कहर वाकई हर वर्ष कितने जीवन यूं ही तबाह करके चला जाता है, ऐसे संकट के क्षणों में ईश्वर से प्रार्थना है कि उनको धैर्य दे. बहुत ही सुंदर शब्दों में ये वेदना व्यक्त की है.
जो नहीं बिखरा वो शायद तसल्ली है..
मन को छूने वाली पोस्ट...घटना ने तो व्यथित किया ही है.
सस्नेह
अनु
अदभुद...मन को छूने वाली रचना
कुदरत की त्रासदी में, कोई न देता साथ
कितने घर है उजड़ते,कई हो जाते अनाथ,,,,
व्यथित करती घटना,,,,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: रक्षा का बंधन,,,,
उत्तरकाशी में अपनी तैनाती के दौरान वर्ष ९४ /९५ में भी ऐसी ही घटना , बादल फटने की , मैंने स्वयं देखी थी | भयावह लगता है | जहां एक दिन पहले पूरा गाँव था , वहां एक नाला सा बहता देखा था | पहाड़ों में इसे पण गोला फटना कहते हैं |
parkriti ke kahr par sunder bhaw liye ,dill ko choo lene wali umda rachna.
त्रासदी की हृदयस्पर्शी प्रस्तुति...
सादर.
त्रासदी से पीड़ित व्यक्ति के दर्द को
बखूबी व्यक्त किया है....
मन व्यथित करती रचना...
जो नहीं बिखरा ...
बस वही हैं इस कुदरत का चमत्कार ||
सच है कुदरत के साथ खिलवाड़ का नतीजा हर किसी को भुगतना होता है बिन भेदभाव के कहर ढाती है और दुलारती है तो एक माँ की तरह जिसे अपना हर बच्चा एक जैसे प्यारा होता है...
कुदरत अपना संतुलन खुद कर लेती है ... यही चमत्कार है । सुंदर और मार्मिक रचना
हर बार ,ये मानव लड़ता हैं
उस ईश्वरीय ..विपदा से
एक नयी ताकत से
बार बार हारने को ...
हर बार ,ये मानव लड़ता हैं
उस ईश्वरीय ..विपदा से
एक नयी ताकत से
बार बार जीतने को
आपसे जीतने की आशा में घृष्टता के लिए क्षमा प्रार्थी
प्राकृतिक त्रासदी कहीं भी कहर बन कर टूट जाती है और छोड जाती है दृवित करते अनुभव.
दिल को छू गई कविता की हर पंक्ति |
दिल को छू गई कविता की हर पंक्ति |
प्राकृति के इस कहर को शब्दों में उतारा है आपने ... दिल को छू गयी ...
dukhad ghatna...sundar prastuti..!!
हर बार दर्द उभरता हैं
उनके ,अपनों की खोज में
हर दर्द बोलता हैं
एक नयी जगह की
तलाश में
हर दर्द ,प्रतिबिम्ब बन कर
रहा गया ,आने वाले कल का .... पल पल को जीते हुए एहसास
ये अहसास मन को झकझोर देते हैं ... भावमय करती प्रस्तुति।
समसामयिक दुर्घटना पर सटीक लेख ।
हर बार दर्द उभरता हैं
उनके ,अपनों की खोज में
हर दर्द बोलता हैं
एक नयी जगह की
तलाश में
हर दर्द ,प्रतिबिम्ब बन कर
रहा गया ,आने वाले कल का
....बहुत मर्मस्पर्शी...भाव अंतस को छू गये..
भावपूर्ण अभिव्यक्ति,प्रकृति की मार किसी को नहीं छोडती.
बहुत भावप्रवण रचना..प्रकृति जब कहर ढाती है तो आदमी बेबस हो जाता है
प्रकृति भी कैसे-कैसे विनाश लाती है!! एक जिज्ञासा है: क्या आप बादल फटने का वैज्ञानिक कारण बताएंगी? बहुत ही ह्रदय-विदारक अभिव्यक्ति है आपकी! सच, कितनों को बरबाद कर देती हैं ऐसी आपदाएं!!
सारिका मुकेश
http://sarikamukesh.blogspot.com/
आपकी पोस्ट कल 9/8/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा - 966 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
प्रकृति ऐसी त्रासद घटनाओं के द्वारा अपनी सामर्थ्य जतला देती है .........
Prakrti se chhed chhad ka parinam kuchh is tarah hi hoga....
Sundar rachna....
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