Saturday, August 11, 2012

स्वंत्रता दिवस ....१५ अगस्त

अपनी आज़ादी पर अपने ही कुछ विचार ....(मन का मंथन )
क्या ये है अपनी सच्ची आज़ादी ??



कैसी आज़ादी है ये ...कैसा है इसका स्वाभिमान ...जहाँ मान सम्मान का ही कोई अता-पता नहीं है
हमारे देश के स्वतंत्रता सैनानियों ने देश की स्वतंत्रता के लिए आज़ादी की लड़ाई लड़ी ताकि अपने देश से ..विदेशी हुकूमत यहाँ से चली जाए और सामाजिक क्रांति के द्वारा देश का  आर्थिक ,सामाजिक और राजनैतिक विकास हों |उनकी मंशा थी ,देश का अंतिम व्यक्ति की भी देश के विकास की मुख्यधारा में उसकी सांझेदारी हो ..पर आज़ादी के ६५ साल के बाद ..आज जो इस  देश की हालात हैं वो किसी से भी नहीं छिपा है ...जहाँ एक और विकास हुआ है वही दूसरी और सरकार की  मनमानी दिनोदिन बढ़ी है ...वक्त दर वक्त प्रशासन और प्रजा में दूरी बढती जा रही है |झूठ ,अन्याय ,अनीति व भ्रष्टाचार राष्ट्रीय व्यक्तित्व के ही अंग बन गए हैं .....कहने को तो हम आज से ६५ साल पहले आज़ाद हो गए ....अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान तो छोड़ दिया ....पर वो हम को गुलामी का पाढ़ पढ़ा कर चले गए ...आज देश के किसी भी हिस्से पे नज़र डालो वो ..हिंसा ,अराजकता ,तनाव और खुद में स्वार्थपरता लिए जी रहा है आज का आम इंसान इसी के दबाब में अपनी जिंदगी गुज़ार रहा है |सामान्यतःआम आदमी स्वैच्छा से भ्रष्टाचार करना नहीं चाहता ,न  ही वह झूठ फरेब में पड़ना चाहता है पर सरकार की नीतियों से परेशां या लाचार होकर अनीति और असत्य की दलदल में फंसता हैं |आज जहाँ एक और विकास बहुत तेज़ी से हो रहा है ...वही दूसरी और आम जनता पर टैक्स का बोझ दिनों दिन बढ़ रहा है ...विकास दर महंगी होती जा रही है ...आम इंसान की जरुरत का सामान और उसका मूल्य आसमां छूने लगे हैं ...क्या ये ही हैं हम लोगो की सच्ची आज़ादी ...जिसके लिए हम लोगो के स्वतंत्रता सैनानियों ने एक लड़ाई लड़ी थी ....हर राज्य और उसके शहर ,हर सड़क आज की औरत के लिए असुरक्षित है ,कन्याभूर्ण हत्या जोरो पर हैं ...हर राज्य जातिवाद और आरक्षण की आग में जल रहा है ...हिंसा का तांडव खुलेआम हो रहा है ...वैश्विकरण की आड़ में खुले आम गाँव के गाँव खत्म हो रहे है और आधुनिकता के नाम पर  नंगापन परोसा जा रहा है..........आज जब भी कोई आवाज़ उठती है तो वो ये ही होती है ........
''हाय रे ..ये महंगाई डायन खाय जात है ''..कहने को तो सब ये कहते है की ये बापू का भारत हैं ...पर क्या ये अब वैसा ही है जैसा कि वो छोड़ के गए थे ?????
हे बापू !ये भारत तेरा प्यारा घर ,
आज चारो ओर से टूट फूट रहा है
और अपनी आभागी किस्मत पर
आँखों में आँसूं भर ,रो रहा है
और बापू ! तेरी सच्चाई ,अहिंसा की तो हत्या हो गई
और इस देश की शांति ना जाना
कहां खो गई ...
तेरी ही सीख को ,तेरे ही पुजारियों ने
भीख समझ कर फेंक दिया
और तेरे ही सिद्धांतों को ,तेरे ही शागिर्दों ने
भ्रष्टाचार की अग्नि में झोंक दिया
अब बोलो ....कि वो भारत अब कहां है
जिसे तुम ...आने वाली पीढ़ी के लिए
छोड़ गए थे ????


मेरा आज का भारत महान ,जहाँ की आज़ादी भी हैं गुलाम ||






( इस बच्चे को देखो ..जिसे आज़ादी का मतलब भी नहीं पता और वो राष्ट्रीय झंडा हाथ में लेकर बेच रहा है ये देखे बिना की सड़क पर कितना ट्रेफिक है )
Online edition of India's National Newspaper


अंजु (अनु)

37 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बेहतरीन लेख अंजू जी....
सोचने पर मजबूर करती पोस्ट.

खैर जो भी हो स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं कबूल करें,एडवांस में..

अनु

संध्या शर्मा said...

सही कह रहे हैं, यही बच्चा भारत का आने वाला कल भी होगा, देखिये अपने भारत का भविष्य... फिर भी आजादी का दिन तो मनाना ही है ...शुभकामनाये

Saras said...

आपका कहना शत प्रतिशत सच है ...लेकिन अगर हम भी हताश हो गए तो कैसे चलेगा ....चलिए हम ही पहल करें .....कुछ करें ..इसे बदलें ...पहल आपने की है ...उसे जताकर ...इसीको थोडा और बढ़ाएं और कोई विकल्प सोचें ...तभी सही मायनों में हम आज़ादी मनाने के हक़दार होंगे ...है न ...यह आज़ादी हमें बहुत मुश्किलों से मिली है ...उसे यूहीं मौका परस्तों के हाथों गंवाना नहीं है .....

Saras said...

आपका कहना शत प्रतिशत सच है ...लेकिन अगर हम भी हताश हो गए तो कैसे चलेगा ....चलिए हम ही पहल करें .....कुछ करें ..इसे बदलें ...पहल आपने की है ...उसे जताकर ...इसीको थोडा और बढ़ाएं और कोई विकल्प सोचें ...तभी सही मायनों में हम आज़ादी मनाने के हक़दार होंगे ...है न ...यह आज़ादी हमें बहुत मुश्किलों से मिली है ...उसे यूहीं मौका परस्तों के हाथों गंवाना नहीं है .....आजादी की ढेरों शुभकामनाएं

Meenakshi Mishra Tiwari said...

"Sahi aazaadi milna baaki hai abhi"

Maheshwari kaneri said...

कहाँ है बापू का वो भारत..शायद सपनों में ही रह गया..विचारणीय लेख..

रेखा श्रीवास्तव said...

हाँ अंजू आजादी तो अब गुलाम हो गयी राजनैतिक चालों की , वे चले गए जिन्होंने ये सपना देखा था और फिर सोने चले गए अच्छा हुआ नहीं तो आज अपने बलिदान की दुर्दशा शायद वे देख न पाते.
बच्चा झंडे बेच रहा है क्योंकि इससे उसके घर में चूल्हा जलाने वाला हो, आजादी का अर्थ उसको क्या पता?

शिवम् मिश्रा said...

जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ है ...


पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और आप सब की ओर से अमर शहीद खुदीराम बोस जी को शत शत नमन करते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन लगाई है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... और धोती पहनने लगे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !

मेरा मन पंछी सा said...

जिस आजादी की आशा से हमारे
देश के वीरो ने जान गवाई
वो शायद आज के भ्रस्ट नेताओ के चलते
असंभव ही प्रतीत होता है..
और लोग भी इतने अमानवीय हो गए है की..
अनैतिक कार्य करने में जरा भी सकुचाते नहीं...
विचारणीय आलेख अंजू दी..

virendra sharma said...

कैसी आज़ादी हैं ये ...कैसा हैं इसका स्वाभिमान ...जहाँ मान सम्मान का ही कोई अता-पता नहीं हैं
अच्छा विचार मंथन है अकाट्य भी है कृपया इस उद्धृत वाक्य में जहां जहां "हैं "अनुनासिक है उसे "है "कर लें,"हों ".के स्थान पर हो है सब जगह और "अंग्रेजों "कर लें "अंग्रेजो" को .बिंदी (अनुस्वार /अनुनासिक के प्रयोग को सुधारें ).कृपया यहाँ भी तवज्जो दें -
शनिवार, 11 अगस्त 2012
कंधों , बाजू और हाथों की तकलीफों के लिए भी है का -इरो -प्रेक्टिक

Ragini said...

bahut umda soch.....

Anju (Anu) Chaudhary said...

veerubhai.........गलती सुधार करवाने के लिए शुक्रिया

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

देश के दुर्भाग्य का चित्रण करती पोस्ट

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,

बेहतरीन आलेख,,,,अंजू जी ,,,

RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

देश की दुर्दशा का सही चित्र प्रस्तुत करता लेख और साथ मेन गंभीर प्रश्न करती कविता .... सटीक प्रस्तुति

Ramakant Singh said...

आपने मुह की बात छीन ली मेरे मन की बात जिसे मैं स्वरुप देता अपने पोस्ट पर आपने लिख दिया ...सच उतना ही जितना होना चाहिए ...

विभूति" said...

ajaadi ke sahi mayne btati prabhaavshali post......

vandana gupta said...

देश की इस दुर्दशा पर मन बहुत खिन्न है ……सटीक आलेख

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

आपकी बात में दम है....

हर आदमी परेशान हव
हर आदमी पस्त हव
मार ओके पटक के
जे कहै 15 अगस्त हव।

रश्मि प्रभा... said...

मेरा आज का भारत महान ,जहाँ की आज़ादी भी हैं गुलाम ... सच कहा

Udan Tashtari said...

सटीक लेखन- उम्दा चिन्तन!!

Rohit Singh said...

बात आपने जरुर दुरुस्त कही है अंजू जी...पर जरा उस बच्चे की चेहरे की हंसी देखिए....अभाव में भी किस तरह से जीवन जिया जाता है ये हम भूल गए हैं..ये हमें वो साहस दिखाता है कि बढ़ते रहो..क्योंकि देश अपना है....तो जहां हो सके जितना हो सके उतना तो करना ही होगा..निराश होती है..पर करगिल में बहा खून भूलता नहीं हूं..और न ही नौजवान भूले हैं....अपने में मस्त भले ही रहते हैं पर जरा आशा होती है जहां इमानदारी की वो वहां उमड़ पड़ते हैं....इसलिए निराशा तो होती है पर आशा का दामन पकड़ बढ़ना तो होगा ही न हम लोगो को..जनमाष्टमी की दो दिन देरी से हार्दिक शुभकामानाएं

Asha Lata Saxena said...

बहुत सही बयान करती रचना है अनु जी |
आशा

Dr. sandhya tiwari said...

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं..........देश की दुर्दशा का सही चित्र प्रस्तुत करता लेख .........अनु जी |

Shikha Kaushik said...

sateek likha hai .well written .congr8s JOIN THIS-WORLD WOMEN BLOGGERS ASSOCIATION [REAL EMPOWERMENT OF WOMAN

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

स्‍वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

............
कितनी बदल रही है हिन्‍दी !

Rewa Tibrewal said...

sach bayan kiya hai apne anu ji...behtarin lekh

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और विचारोत्तेजक आलेख..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर आलेख के लिए बधाई...

Pawan Jindal, General Secretary said...

AAPKI RACHNA HRIDAY SE NIKLI HUI AAWAAZ LAGTI HAI JI.....NAMAN !!!!!

Pawan Jindal, General Secretary said...

AAPKI RACHNA HRIDAY SE NIKLI HUI AAWAAZ LAGTI HAI........SIR JI.....NAMAN !!!!!

KRISHNA KANT CHANDRA said...

*बहुत सही लिखा आपने वाकई हालात कुछ ऐसी ही है, बड़ी पीड़ा होती है .

* अंदर संकट, बाहर संकट, संकट चारों ओर
जीभ कटी है, भारतमाता मचा न पाती शोर
देखो धंसी-धंसी ये आंखें, पिचके-पिचके गाल
कौन कहेगा, आज़ादी के बीते इतने साल ?
* स्‍वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
कृष्ण कान्त चंद्रा
संपादक : सार्थक मीडिया
www.sarthakmedia.com

संजय भास्‍कर said...

अब बोलो ....कि वो भारत अब कहां है
जिसे तुम ...आने वाली पीढ़ी के लिए
छोड़ गए थे ????
...सच्चाई बयान करती रचना है अनु दी

Naveen Mani Tripathi said...

shashkt chintan ke sath sargarbhit bhi ....badhai sweekaren

Naveen Mani Tripathi said...

bahut hi sundar sadar abhar.

Sarika Mukesh said...

विचारणीय लेख: आजादी के यथार्थ को दर्शाता....साधुवाद!

विवेक दुबे"निश्चल" said...

aazad to neta huye he apni man mani karne ke liye....
Ek gulami se nikal kar dusri gilami ke dal dal me ja fase he aam log....