Saturday, January 19, 2013

एक लम्बा सा मौन



                                                        (फेसबुक से लिया गया चित्र)
 
कब और कैसे,
एक लम्बा सा मौन
पसर चुका है हम दोनों के बीच
ये मौन बहुत शोर करता है
और कर देता है बेचैन इस मन को
तुम्हारी सोच की संकरी गली से
गुज़रने के बाद
मैं देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ 
और सोचती हूँ,ये मौन कहाँ से आता है ?

कब और कैसे,
कभी ना खत्म होने वाला
तेरे और मेरे बीच
बातों और विवादों का ऐसा मकड जाल
जो अब टकराव की सीमा तक
आ कर थम गया है,
और मैं ये भी जानती हूँ
जिस दिन ये टकराव हुआ
उस दिन हम दोनों की दिशाएँ
बदल जाएँगी
तुम  दूर चले जाओगे और बसा लोगे
अपनी एक नयी दुनिया
क्यों कि मैं जानती हूँ कि
खुद के जीवन में
पथराए आँचल से,
पर्वतों के शिखर तक मौन उड़ते है 
जिस से इस जीवन में   
उग आती हैं वीरानियाँ इतनी
जिसे जितना काटो, वो ओर 
फैलने लगती है,नागफणी सी
क्योंकि  
ये जिंदगी की धूप भी
अजीब होती है, नहीं चाहिए तभी
करीब होती है और
रात की चांदनी में जब भी
सोना चाहो
वो तब ओर भी कोसो दूर
महसूस होती है
इस लिए तो,
कब  और कैसे,
मैं,खुद को धकेल कर अलग करती हूँ,
और देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ 
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?

अंजु(अनु)

65 comments:

નીતા કોટેચા said...

jo मौन samje vo hi sachcha sathi hota hai annu.. bahut achchi kavita...

BS Pabla said...

यक्ष प्रश्न

Anju (Anu) Chaudhary said...

पाबला जी ..इस यक्ष प्रश्न का कोई उत्तर है क्या ?

:)

Anju (Anu) Chaudhary said...

शुक्रिया अम्मा (नीता )

रश्मि प्रभा... said...

मन के अँधेरे से तुम भी निकलो तो शायद यह सन्नाटा खत्म हो ....पर, उधेड़बुन सी ज़िन्दगी चुप सी हो जाती है - जाने कब !

Anju (Anu) Chaudhary said...

इस जाने कब का कोई उत्तर नहीं है ....रश्मि दीदी :)

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

परिस्थियां जब बिपरीत हो जाती है,सामने अंधकार सा छा जाता है
तब मेरे ख्याल से मौन रहने की स्थिति बन जाती है,,,

recent post : बस्तर-बाला,,,

रविकर said...

सुन्दर सटीक-
प्रभावी प्रस्तुति |
बधाई आदरेया ||

Satish Saxena said...

किसी कवि की रचना देखूं !
दर्द उभरता , दिखता है !
प्यार, नेह दुर्लभ से लगते ,
क्लेश हर जगह मिलता है !
क्या शिक्षा विद्वानों को दूं ,टिप्पणियों में, रोते गीत !
निज रचनाएं ,दर्पण मन का, दर्द समझते मेरे गीत !

Kailash Sharma said...

भटकती हूँ
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?

....काश इसका उत्तर मिल जाता तो मौन इतना भयावह न होता...अंतस को छू गए रचना के भाव...

Pallavi saxena said...

मौन रहन भी तब तक ही सार्थक होना चाहिये जब तक पानी सर से ऊपर न हो जाये...अन्यथा विपरीत परिस्थियों में ज़िंदगी मौन ही हो जाती है।

nayee dunia said...

bahut sundar kavita anu ....

tips hindi me said...

ये मौन मन को विचलित करता है | सोचने समझने की शक्ति को खत्म कर देता है | ये खालीपन पैदा क्यूँ होता है, मेरे ख्याल से शायद जिसे आप बहुत ज्यादा चाहते हैं वो अनायास आपसे दूर चला जाता है या आपके साथ कुछ ऐसा घटित होता है, जो आपकी सोच से परे होता है | आपके मन को व्यथित कर जाता है तब ऐसा लगता है कि ये जहाँ रूक सा गया है | मन में व्याप्त इस वियोग हावी होने पर सब कुछ बेमानी लगता है, तब ये मौन पैदा होता है | कुछ भी कहने का मन नहीं करता | कुछ ऐसा ही होता है मौन...........

kavita verma said...

moun mukhar ho kar bahut trasdayee ho jata hai...sundar rachna..

Sadhana Vaid said...

मन को विह्वल कर गयी आपकी रचना ! बहुत खूबसूरत एवं मार्मिक !

कालीपद "प्रसाद" said...

यह मौन की स्थिति शायद सब के जिंदगी में आती है , परन्तु मौन किसीका उत्तर नहीं है, शांति पूर्ण संवाद से शायद समाधान मिल जाये

New post : शहीद की मज़ार से
New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत सुंदर ..... मौन की गहराई कौन जान पाया ....

अरुण चन्द्र रॉय said...

मौन हमारे बीच उपजी असहजता का नाम है। सुन्दर कविता

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना
सच तो यही है कि ऐसी रचनाएं कभी कभी
ही पढ़ने को मिलती हैं।
बहुत बढिया

ANULATA RAJ NAIR said...

किसी के पास नहीं इस प्रश्न का उत्तर...
सब मौन हैं...

बहुत अच्छी रचना अंजू जी.
सस्नेह
अनु

suresh swapnil said...

well written, anu ji. somehow i discovered a strange sense of loneliness in all your writings which doesn't match with your personality. wish to see some optimistic writings from you.

मेरा मन पंछी सा said...

हमारी इच्छा के विपरीत परिस्थितियां ही मौन ले आती है।।
बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण रचना।।।

Saras said...



मैं,खुद को धकेल कर अलग करती हूँ,
और देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?

यही तो वह प्रश्न है जो आज तक अधर में लटका है ...उत्तर किसी के पास नहीं ......

Saras said...



मैं,खुद को धकेल कर अलग करती हूँ,
और देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?

यही तो वह प्रश्न है जो आज तक अधर में लटका है ...उत्तर किसी के पास नहीं ......

उड़ता पंछी said...

बहुत ही भावुक रचना ....


post
Gift- Every Second of My life.

Sumit Pratap Singh said...

अब क्या बोलूँ? अब मैं भी मौन हूँ...

yashoda Agrawal said...

आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 23/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

vijay kumar sappatti said...

अंजू इसे मैंने कल भी पढ़ा था और आज भी , कई बार पढ़ा , बहुत दिनों के बाद तुमने इतनी शशक्त कविता लिखी . एक एक शब्द जैसे कुछ और कह रहा हो .. मैं चाहूँगा की तुम और इसी तरह से लिखो . बधाई जी .

रचना दीक्षित said...

मौन अंतर्मंथन का अवसार प्रदान करता है और सही निर्णय पर पहुँचाने में मददगार भी.

सुंदर भावप्रवण प्रस्तुति.

Anju (Anu) Chaudhary said...

यशोदा जी आभार ..नयी-पुरानी हलचल का

विभूति" said...

कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

Arun sathi said...

jindagi ki hakikat......aabhar

दिगम्बर नासवा said...

ये मौन अंधेरे के उस तन्हा पंछी की तरह होता है जो दिशा के ज्ञान बिना बस पंख फैलाता है ... मर्म को छूती है आपने रचना ... उमदा प्रस्तुति ...

janta ki khoj said...

aap ki rchnaye ati sundar

janta ki khoj said...

bhut sundar

janta ki khoj said...

sundar

मुकेश कुमार सिन्हा said...

khubsurat maun :)

Asha Lata Saxena said...

गहन भाव छपे हैं इस कविता में |
आशा

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह!
आपकी यह पोस्ट कल दिनांक 21-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

वाह!
आपकी यह पोस्ट कल दिनांक 21-01-2013 के चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

Anju (Anu) Chaudhary said...

aabhar aapka

Arvind Mishra said...

हो गयी है पीर पर्वत अब पिघलनी चाहिए की तर्ज पर अब बर्फ पिघल जानी चाहिए

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मौन मेरा प्रिय विषय है ..... जितना मौन मुखरित होता है उतने शब्द नहीं होते ....

रंजू भाटिया said...

BAHUT BAHUT SUNDAR

संध्या शर्मा said...

मौन बाहर से जितना शांत अन्दर से उतना ही उथल - पुथल भरा एक तीव्र शोर है... गंभीर रचना... शुभकामनायें

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही गंभीर भावपूर्ण रचना अंजू जी

Ramakant Singh said...

भटकती हूँ
और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?

हम बो जाते हैं रिश्तों के बीच अपना अहम् और यही बिना बोये रक्त बीज सा फिर उग आता है .तब कहाँ नींद और चैन बस बैचैनी ...आपने बहुत ही सुन्दर ढंग से मनोभावों को प्रस्तुत किया अद्भुत अनोखा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक रचना!

Niraj Pal said...

मैं देर तक खुद के अन्धकार में
भटकती हूँ
और सोचती हूँ,ये मौन कहाँ से आता है ?
सुन्दर!!! बधाई स्वीकारें।

Niraj Pal said...

सुन्दर!!! बधाई स्वीकारें।

Madan Mohan Saxena said...

बहुत सुन्दर .सार्थक रचना.

धीरेन्द्र अस्थाना said...

मौन का अस्तित्व जीवन में सिर प्रश्नों को जन्म देता रहता है !

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

Naveen Mani Tripathi said...

bahut sundar prastuti ke liye aabhar anu ji

Rohit Singh said...

अनुजी ये ऐसा मौन होता है जिसके अंदर काफी कोलाहल होता है.....जो मुखर होने नहीं देता पर अंदर ही अंदर इतना शोर का ऐसा विस्फोट होता है जो कई बार सबकुछ तहस-नहस कर देता है...इंसान को पत्थर बना देता है। बाहर से मौन पर अंदर से भीषण शोर...ये ऐसा ही मौन है।

इमरान अंसारी said...

जब भीतर का शोर बंद हो जाये तभी सच्चा मौन फलित होता है ।

Unknown said...

इस गंभीर प्रश्न का उत्तर किसी के पास है क्या ... शायद ही हो .. मन को झाझोरने वाली कविता .. बधाई

डॉ. जेन्नी शबनम said...

मन में मौन को उतरते हुए महसूस किया. कहाँ मिलेगा इसका जवाब; ताकि मौन से मुक्ति हो...

और सोचती हूँ,
कब और कैसे,
ये मौन कहाँ से आता है ?

शुभकामनाएँ.

shaashi said...

very beautiful .

Vaanbhatt said...

मौन की गहन परिभाषा...

Dr. Shorya said...

बहुत सुंदर .शुभकामनायें

janta ki khoj said...

बहतरीन कोशिश बधाइयाँ

janta ki khoj said...

शुभकामनाये

ब्लॉग बुलेटिन said...

पिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन के इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (17) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !