इस लंबी सी ख़ामोशी के बाद....
ऐ-री-सखी ,
बता ना मुझे कि
एक लंबी सी खामोशी के बाद
यूँ तेज़ तूफ़ान का आना
और मेरा यूँ चेतन विहीन हो जाना
और सोचना कि ,
क्यों हर तूफ़ान अपने बाद
बर्बादी का मंज़र छोड़ जाता है
दरख्त टूटे ,मकां *उजड़*
और आँखों से बहते आँसू
किसकी कहानी बयाँ करते हैं |
बता ना मुझे कि
एक लंबी सी खामोशी के बाद
यूँ तेज़ तूफ़ान का आना
और मेरा यूँ चेतन विहीन हो जाना
और सोचना कि ,
क्यों हर तूफ़ान अपने बाद
बर्बादी का मंज़र छोड़ जाता है
दरख्त टूटे ,मकां *उजड़*
और आँखों से बहते आँसू
किसकी कहानी बयाँ करते हैं |
ऐ-री-सखी
हृदय में अनेकों सवाल ,
शब्द शब्द सुनाई पड़ता है
पर रेत से फिसलते,रिश्ते
*मेरे हाथों में क्यों नहीं टिकते ?*
बर्बादी का एक कड़वा अनुभव
खुद को सहेज कर रखूं या अपने वजूद को
दरके दोनों ही है .
पथरीली राहों पर खंड खंड
बिखरने को मजबूर अस्तित्व
एक लड़ाई का विकराल रूप क्यों
धारण करता है
इन आँखों में क्यों अब इतना
शोक भरा है
हृदय में अनेकों सवाल ,
शब्द शब्द सुनाई पड़ता है
पर रेत से फिसलते,रिश्ते
*मेरे हाथों में क्यों नहीं टिकते ?*
बर्बादी का एक कड़वा अनुभव
खुद को सहेज कर रखूं या अपने वजूद को
दरके दोनों ही है .
पथरीली राहों पर खंड खंड
बिखरने को मजबूर अस्तित्व
एक लड़ाई का विकराल रूप क्यों
धारण करता है
इन आँखों में क्यों अब इतना
शोक भरा है
ऐ-री-सखी
तू ही बतला ना ,
मैंने अपना जीवन
किन अर्थो में जीया है ?
निगाहें पाक और दिल भी है साफ़
फिर भी ज़माने भर का दोष
मेरे ही सर *मढ़* दिया गया
अजब सी चुप्पी है ,,,,
*मगर कान फोडने वाली,असहनीय
निंदा और अपमान भी*
फिर भी
आँखे मूंद ,बढ़ते जाना
सर ना झुकना,लड़ते जाना
ये नियम है हम दीवानो का
कुछ ना समझना,
समझना तो
उस से अंजान बन कर जीना ,
ये नियम है आज के मरदानों का
तू ही बतला ना ,
मैंने अपना जीवन
किन अर्थो में जीया है ?
निगाहें पाक और दिल भी है साफ़
फिर भी ज़माने भर का दोष
मेरे ही सर *मढ़* दिया गया
अजब सी चुप्पी है ,,,,
*मगर कान फोडने वाली,असहनीय
निंदा और अपमान भी*
फिर भी
आँखे मूंद ,बढ़ते जाना
सर ना झुकना,लड़ते जाना
ये नियम है हम दीवानो का
कुछ ना समझना,
समझना तो
उस से अंजान बन कर जीना ,
ये नियम है आज के मरदानों का
बता ऐ-री-सखी ,
मैं क्या करूँ ,
अब तो पुरवा डोल गई
आँगन में बरखा भी आ कर
बरस गई
धानी सी चुनर का इस दुनिया ने
बिन सोंचे
मोल लगा दिया
क्यों बिना जाने ,
देखो फिर से इल्ज़ामों का
सिलेवार है ज़लज़ला
एक स्वप्न झूठा झूठा सा
जीने का विश्वास क्यों देता है
बाँध कर पाँव में बेडियाँ
साथ साथ चलने का
आभास क्यों देता है
क्यों पुराने संस्कार मेरे
बाँध देते है मुझे
मेरी मन की बेड़ियों के संग
और कहता है मन मेरा
झर झर ,झरने दो आँसूं अपने
जैसे पतझड़ में पत्ते झडे
तभी ,गीत मेरे बन जाते है
मेरी ही मौन वेदना की
अभिव्यक्ति का रूप
क्यों छाया पथ पर अब भी
अंगार सी लगती है
इस लंबी सी खामोशी के बाद
इस लंबी सी ख़ामोशी के बाद ||
मैं क्या करूँ ,
अब तो पुरवा डोल गई
आँगन में बरखा भी आ कर
बरस गई
धानी सी चुनर का इस दुनिया ने
बिन सोंचे
मोल लगा दिया
क्यों बिना जाने ,
देखो फिर से इल्ज़ामों का
सिलेवार है ज़लज़ला
एक स्वप्न झूठा झूठा सा
जीने का विश्वास क्यों देता है
बाँध कर पाँव में बेडियाँ
साथ साथ चलने का
आभास क्यों देता है
क्यों पुराने संस्कार मेरे
बाँध देते है मुझे
मेरी मन की बेड़ियों के संग
और कहता है मन मेरा
झर झर ,झरने दो आँसूं अपने
जैसे पतझड़ में पत्ते झडे
तभी ,गीत मेरे बन जाते है
मेरी ही मौन वेदना की
अभिव्यक्ति का रूप
क्यों छाया पथ पर अब भी
अंगार सी लगती है
इस लंबी सी खामोशी के बाद
इस लंबी सी ख़ामोशी के बाद ||
अंजु चौधरी 'अनु'