Friday, September 17, 2010
जिंदगी भर तुम माने नहीं और हम तुम्हे मनाते ही रहे
किताबें बंद हैं यादों की जब सारी मेरे मन में
ये किस्से जेह्न से रह-रह कौन पढ़ता है
वो बचपन में कभी जो तितलियाँ पकड़ी थीं बागों में
बरस बीते, न अब तक रंग हाथों से उतरता है
वो खेले थे खेल हम बाग़ में सब के संग
आज हम संग ये कौन आँख मिचौली खेलता है
जिंदगी भर मै चलती रही राह दर राह
पर मंजिल से परे अब कौन है जो धकेलता है
मुस्कुराते रहे दिल लुभाते रहे बात कुछ और थी, तुम छुपाते रहे
दर्द जैसे ग़ज़ल हो कोई मै सदियों से गुनगुनाती रही
धड़क उठा जो ये दिल उनके देखने भर से
कहो तो इसमें भला कहाँ मेरी कोई गलतियां है
तुम्हारी सोच के बिना दुनिया तो हमने देखी ही नहीं
हाँ, मगर एक नई सपनो की दुनिया जरुर बनाते रहे
आज जिंदगी से रूठ जाने की हद हो गयी
जिंदगी भर तुम माने नहीं और हम तुम्हे मनाते ही रहे
((((अंजु ....(अनु)))))
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8 comments:
sach mei.......shabdo mei jadu hai
bahut khub likha hai tumne....keep it up
jindagi bhar tum maane nahi..........ham manate hi rah gaye.......:)
tum mane nahi, aur hamari jindagi manane me beet gayee......:)
pyari gajal!!
shukriya mukesh....bahut dino mei aaye ho blog pe
"tumhari soch ke bina duniyan to hamne dekhi hi nahi,haan, magar aik nai sapnonki duniyan jaroor banate rahe."
kisi ke prati samarpan aur uske sath-sath apni umangon ko pankh dene ka prayas adbhut hai.aksar aisa hota hai jeevan mein ki ham doosron ka sath dil se dete hain,magar apni aakankshaon ko bhi sath liye badhte rahte hain.behad anubhutipurn rachna.
""दर्द जैसे गजल हो कोई मैं सदियों से गुनगुनाती रही""
ये कह देना भर ही काफी हैं
जिंदगी से रूठ जाने की
जिद न करो
अभी वक्त बांकी हैं
bahut accha likhte hain
बहुत सुंदर !
जिंदगी भर तुम माने ही नहीं , हम मनाते रह गए ...रूठने की उम्र अनंत हो गयी!
बहुत खूब !
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