क्यों उदास है मेरी ये जिन्दगी
खाली खाली सी क्यों लगती है मुझे
गर जिन्दगी रूठ जाये तो
बहारो का अब कोई इंतज़ार भी नहीं है
गर जिन्दगी रूठ जाये तो
ख़ुशी दूर हो गई मन से
बहुत वीरानियो से गुज़री है ये जिन्दगीबहारो का अब कोई इंतज़ार भी नहीं है
रास्तो पे चलती भटकती है ये जिन्दगी ......
होगी कोई मंजली इसका भी पता नहीं है
दिल के दरवाज़े खिडकियों को यू किया बंद .......
दिल के दरवाज़े खिडकियों को यू किया बंद .......
पर मन की तुफ्फा से झूझती है ये जिन्दगी
आंधियो से कभी डर नहीं लगा हमहे ..... पर खुद के वजूद से ही डरती क्यों है ये जिन्दगी
मान अभिमान में डोलती ये जिन्दगी
मान अभिमान में डोलती ये जिन्दगी
अपने ही स्वाभिमान को तोडती ये जिन्दगी
((((((अंजु.....(अनु))))
((((((अंजु.....(अनु))))
12 comments:
मन के खिड़कियाँ दरवाजे कब बंद हुए हैं , कलम ले कर सब बह जाएगा , अच्छा प्रयास ।
अंजू जी आपकी कविता मन के भावो को स्पष्ट कर रही है !
बहुत सुंदर, बधाई !
धन्यवाद शारदा जी और संतोष ......आपको मेरा लिखा पसंद आया
बहुत ही खूबसूरत भाव हैं..... ऐसे ही लिखती रहें.... शुभकामनायेँ.....
मन अभिमान में डोलती यह जिंदगी
अपने ही स्वाभिमान को तोडती यह ज़िन्दगी
बहुत सुन्दर
क्या बात कही आप ने
dil ko chu lene wali rachna. shubhkamnaye
udas jindagi ko apne kalmo se khushiya bhar den...:)
bahut khub!!
kabhi samay mile to hamare blog pe tasreef layen...
ऐसी निराशा क़ि बात कहे ...... जीवन बहुत लम्बा है .... अच्छा लिखा है ...
जीवन के एक पक्ष को शब्द देने का अच्छा प्रयास
Manobhavon ka achha chitran laga...
Likhte rahiye... man ko bahut sukun milta hai.. tanhayee sab door hone lagegi... achha likhti hai aap! Meri Shubhkamnayen aapke saath...
bahot sunder.
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