Thursday, February 5, 2009

यादे ................


यादो के सफ़ेद परिंदे ....
नीले आकश से है उतरे
सफ़ेद परिंदों कि चादर चारो है फैली ...
कितनी निर्मल ,कितनी पवित्र ,
और मन को शांति प्रदान करने वाली ,
मेरी इन यादो में है बच्चपन बसा ,
यौवन का है प्रेम प्रसंग छिपा ,
अपनी स्मृति में दबे ढके ,
अनेक प्रसंग ले कर यादे आगे बड़ी ,
नदी ,तालाबो के वोह यादे
आ कर रुकी ..खेत खलियानों में ......
मेरी भलाई -बुराई ,उठा पटक .जोड़े -तोड़ ,
जगहसाई ,रुस्वइयो और कमजोरियों ,
का कच्चा चिठा है ये यादे ,
साबुन के बुलबुले समान मेरी ये यादे
जैसे डोर संग बंधी पतंग ...
वैसे मकड़ जाल सी मेरी मानस पे छाई ये यादे ...
कोमल..निर्मल ...स्वछ........सिर्फ और सिर्फ मेरी यादे ...............
(.......कृति.....अनु......)

Wednesday, February 4, 2009

दे अपना सच्चा साथ ........


मै जग में बहुत नाची ,
कभी क्रोध ने नचाया ,
तो कभी कामनायों ने अपना सर उठाया ,
कभी वसनायो ने आके मुझे हिलाया ,
तो कभी लालच ने ललचाया .........
क्या हू मै .......
हर पल ये ही सोचू ........
चली थी तन्हा ..खुद को पाने कि तमन्ना में ,
यहाँ मिले राहो में साथी अनेक .....
कुछ ने सिर्फ अपना कहा ,
कुछ ने माना मुझे सब कुछ अपना ,
पर ......दिल कि राहो पे जो मिला
वोह अपना सा था .....
मन खोला ,पर तन ना खोला अपना
फिर भी पढ़ी उसने ....मेरी मन कि भाषा ..
शालीनता और सज्जनता से दिया साथ मेरा ,
बना वोह केवट मेरा ,
देकर साथ अपना .....
दिल से दिल का मीत है वोह
एह! मेरे मन के साथी ....
यहाँ तू ही धूप और तू ही छाया.....
तुने ही इस दोस्ती को है किनारे लगाया .....
चाहे तो डुबो दे ,या ले चल पार इसे ..
आ सकता है कोई झोंका ......
हवा को किसने रोका है ?
तूफान के डर से .....
पत्ते टूटे जब शाक से ..ले जाये पवन उड़ाए,
जब मै टूटी तो फिर ,क्यों ना पवन आये !
चल चला चल ...बना के मुझे अपना साथी .........
दे अपना सच्चा साथ ........
नहीं पता ये कैसा एह्स्सास है......
चले मेरे साथ अब की टूटी तो बिखर जाउंगी ......
(......कृति.......अनु....

.माँ का मंथन ..... ........


एक माँ कि पीडा ...जो ना तो अपने बच्चो से कुछ कहे
सकती है ......और ना ही अपने बडो को ....
बड़े जो सब कुछ जानते हुए भी कुछ समझना नहीं चाहते,
और .......बच्चे कुछ समझते नहीं है ......बस...ये ही सब
कहने कि चेष्टा..कि है मैंने ..........
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दिल में उठे तूफान को ,कैसे मै शांत करू ....

वजूद पे उठे प्रश्नों का
कैसे मै समाधान करू ......
ये तो हर रात का किस्सा है ,
हर बात में मेरा भी हिस्सा है ,
हर रात कि मौत के बाद ....सुबह के जीने में मेरा भी हिस्सा है ,
फिर भी जीने से कोसो दूर हू मै..
दर्द और तकलीफ लिए चलती चली ....
नयी और पुराणी पीढी ,के विचारो का
कैसे...मै .. मेल करू.....
दो भिन्न धारायो का,
कैसे मै मिलन करवाऊ ,
इन रिश्तो कि भीड़ में ......
दो किनारों के बीच
देखो.......मै सेतु बनी ........
आदान प्रदान ..की प्रक्रिया मे..
फिर एक माँ समंदर बनी ....
दिल मै दफ़न किये हर बात ...
देखो मै जीती चली .........
क्या कहू और किस से कहू ...
कि मै ..चिलचिलाती धूप में भी ........
सिर्फ एक बूंद पसीने .............को भी तरसी .. .......
हर पल ये ही सोचती चली ......कि .....
दिल में उठे तूफान को ,कैसे मै शांत करू ................
(....कृति...अनु....)