Saturday, October 19, 2013

डायरी के पन्नों की एक सोच …




हमारे बुज़ुर्ग लोग कहते हैं कि बेटी धान की खेती की तरह होती है |वह परायाधन या किसी दूसरे की अमानत भी कहलाती है |अपने हिस्से की धूप और छाँव को सहती हुई ये बच्चियाँ ना जाने कब बडी हो कर किसी ओर घर की शोभा बन कर अपने माँ-बाबा की दहलीज़ को छोड़ , दूसरे घर को कितनी सरलता से अपना मान लेती हैं |
आँगन में बचपन की डगमग चाल, ना जाने कब सीढियों और बंद कमरों की यादों में विदा ले कर गुम हो जाती हैं |कुंवारे सपनों ने करवट ली, पिया के द्वार से बुलावा आया नहीं कि बाबा की दुलारी और माँ की लाडो कितने ही हसीन सपनों के साथ एक नए घर में प्रवेश करने को तैयार हो जाती है |

 (पूरा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ......http://kshitijaa.com/http://kshitijaa.com/storys/%E0%A4%A1%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%9A )

Saturday, October 5, 2013

राम तेरे देश में



राम तेरे देश में.......(पूरी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे)
राम तेरे देश में
क्यों मची हुई है लूट ?
सत्य अहिंसा छोड़कर,
डाल रहे हैं सब फूट

हर जगह लुट रही है नारी,
हो रही अस्मतों की लूट......