Sunday, July 29, 2012

एक दिन देश के बड़े साहित्यकार ....डॉ नामवर सिंह जी के साथ


 डॉ संदीप अवस्थी द्वारा भेजा गया निमंत्रण ...जिस की वजह से हम डॉ नामवर सिंह जी से मिल सके ...
 डॉ नामवर सिंह जी को अपना पहला काव्य संग्रह क्षितिजा भेंट किया ...जिसे उन्होंने सप्रेम स्वीकार किया ....आभार उनका और  डॉ संदीप अवस्थी जी का ...जिनकी वजह से ये मौका मिला ...


 डॉ शाम सखा जी शाम ...जो की हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक हैं ...फिर नामवर जी और डॉ अनामिका जी ....
 डॉ शाम सखा जी ....डॉ अनामिका जी और चेतना जी ...हम सब मिल कर नामवर जी को सुन रहे थे ....
 डॉ संदीप अवस्थी जी नामवर जी बातचीत करते हुए और डॉ अनामिका जी हल्के से मुस्कुराते हुए
 डॉ संजय डूबे जी (अपर महानिदेशक प्रसार भारती,,दिल्ली ) फिर डॉ नामवर सिंह जी और डॉ शाम सखा जी
 डॉ संदीप अवस्थी ...मंच पर कविता पाढ़ करते हुए
 
 शैलेश भारतवासी (हिंदी युग्म से )द्वारा खिंचा गया हम सब का एक ग्रुप फोटो ..जिसमें ..(दांये से बांए ) चेतना जी ,अपर्णा मनोज जी ,लीना मल्होत्रा रॉय ,फिर हम ,आनंद द्विवेदी जी ,डॉ संदीप अवस्थी ..(.जिनके बुलावे पर हम गुड़गावं हरियाणा साहित्य के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने गए थे) ..गुरु जी और प्रांजलधर जी ......एक दिन जो यादगार बन गया इन सबसे मुलाकात के बाद ....आभार आपका डॉ संदीप अवस्थी जी||

कभी सोचा नहीं था कि मैं यूँ इस तरह आदरणीय डॉ नामवर जी मिलूँगी...ये मुलाकात यादगार बन गई और बहुत कुछ सिखने को भी मिला ...हम जैसे लेखक जो अभी अभी इस साहित्य की दुनिया से जुड़ रहे हैं ...उनके लिए एक दम से डॉ नामवर जी मिलना ....किसी खूबसूरत सपने का सच होने के बराबर हैं ...डॉ संदीप अवस्थी जी ने कुछ प्रश्न डॉ नामवर जी किए जिनका उन्होंने बहुत आदर और प्यार से उत्तर दिया ...इसके लिए उनका जितना भी शुक्रिया किया जाए वो कम हैं ...
प्र..पसंदीदा समकालीन लेखक
उ...मुक्तिबोध
नामवर जी को कविता सुननी अच्छी  लगती हैं जब कि लोग उन्हें आलोचक के रूप में जानते हैं
आज तक के फ़िल्मी हीरो में उन्हें स्वर्गीय अशोक कुमार जी पसंद हैं
गीत सुनना पसंद हैं क्यों कि वो इंसान के दुःख कम करते हैं
भोजन में वो सादा भोजन पसंद करते हैं और.. पहनावे में उन्हें कुर्ता पाज़ाम पसंद हैं
प्रिय तात् और बच्चुवा बोलना वो अधिक पसंद करते हैं
इसी तरह की खूब सारी बाते करते हुए २२ जुलाई २०१२ ...को दोपहर के दो घंटे कैसे व्यतीत हों गए ...ये हम में से किसी को पता नहीं चला ||

डॉ नामवर जी की आवाज़ इतनी धीमी थी कि मोबाईल की  रिकॉर्डिंग में भी नहीं रिकोर्ड हों पा रही थी ...ये वो प्रश्न थे जिसे हमने रिकॉर्डिंग में साफ़ साफ़ सुना तभी यहाँ लिखा ....अगर कुछ गलत लिखा गया हों तो ...आप सबसे क्षमा मांगती हूँ  ....आभार आप सबका

अंजु (अनु) चौधरी

Saturday, July 28, 2012

सुबह की चाय और अखबार



सुबह की चाय
और अखबार की ताज़ा खबर
दोनों साथ हों तो इसका
अलग ही मज़ा हैं (कड़वा सा )|

खुद से अखबार उठा कर लाना
और चाय बनाना
दोनों काम साथ ही होते हैं
रोज़
चाय का पानी उबलता हैं
और साथ ही साथ हमारे विचार भी
उस अखबार की खबरों को
पढ़ के ....(सिर्फ करते हैं मंथन )
कहीं लूटपाट ...कभी किसी की
अस्मत से हुआ खिलवाड़
किसी पार्टी के नेता बागी तो
किसी नेता का ८४ की उम्र में
बाप बनने की खबर
कहीं छाया हैं जातिवाद
तो कहीं जल रहा हैं कोई राज्य
कहीं भूकंप के झटके ,तो कहीं
झटकों से हिल रही हैं किस राज्य की सरकार
तो कहीं  हैं फ़िल्मी दुनिया की
एक अंधी और चकाचौंध वाली दौड़ ...जो
करती  हैं मूड खराब ...
यहाँ खबर तेज़
और वहाँ चाय  में पत्ती तेज़ से
ज़ायका खराब
और फिर ...हर रोज़ की तरह
गुस्से में पटक मारते हैं हम
अखबार .....

पन्ने पर पन्ने पलट मारे
पर एक भी काम की खबर
पढ़ने को ना मिली
बस वही ..कि कहीं हत्या तो कहीं
आत्महत्या ने आत्मा  पर 

और बोझ बड़ा डाला 
अखबार वालो ने तो लिख कर
अपना फर्ज़ पूरा किया
पर हम लोग????
अपनी ही दुनिया में मस्त हों
भूल जाते हैं सब कुछ
एक नयी सी चाय बनाने को ,
बस पढ़ते हैं ,कुलबुलाते हैं
कुड-कुड करते हुए
अपने अपने काम में व्यस्त हों जाते हैं
अगले दिन की चाय
बनाने तक ....||

अंजु (अनु)

Monday, July 16, 2012

जिंदगी कुछ इस तरह भी .....

रेल का एक सफर ....जो बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता हैं ......सफर तय हैं ..और मंजिल भी ...पर राह में मिलने वाले लोग अनजान ही रहते हैं हमेशा ....सोच का क्या हैं ...कुछ भी देखो ...वो दिमाग में घूमती हैं ...और शब्द विचार बन जाते हैं .....कुछ सोच ...जो लिखने के बाद कुछ इस तरह शब्दों के रूप में ... सबके सामने हैं ||

कच्चे मकान
सूखी धरती
सूनी राहें
बस एक छोटी सी उम्मीद
उस खुदा से |

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सरपट दौड़ती रेल
पटरी को काटती पटरी
जैसे जिंदगी से
जीत का जश्न मनाती मौत |
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जब कभी दो प्यार करने वाले साथ होते हैं ....और फिर भी वो साथ नहीं होते (जिस्म साथ हैं ,पर आत्मा नहीं ) इसे क्या कहेंगे  ...इस अधूरे से साथ की क्या कोई परिभाषा हैं ..सोचने और समझने की भी बहुत कोशिश की ...पर उन दोनों की मूक भाषा को पढ़ने में नाकामयाब रही ....एक ही मंजिल  ,एक ही सफर ...दोनों का साथ ..फिर भी कितने दूर थे वो दोनों ...बातों में उनकी प्यार की  महक तो थी ..पर एक अंजना सा डर था ...वो डर कैसा था ?क्या था वो डर ?इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला मुझे  ..उस रेल के सफर में ...बहुत से मुसाफिर आए और चले गए ...पर बोगी में लास्ट की सीट पर बैठे वो दोनों बस एक मूक भाषा में एक दूसरे को देखते और मुस्कुरा देते थे ...बहुत चाह कि उन दोनों को ना देखूं  ...फिर भी ना जाने क्यों बार बार उन दोनों को देखने के लिए  ये मन  बेताबी दिखाने लगा था ....पूरे सफर में ..बस इतना ही पढ़ पाई उस प्यारी सी ...अदाकारा में ...जिसकी आँखे बहुत कुछ कहती थी .....
 
उन दोनों के मध्य 
कुछ पल गुज़रे ,
यूँ ही चुप चाप से
पर ....चेहरे पर अजीब सा ही नूर था 
फिर भी ..
जाने क्यूँ आज उसकी आँखों में ,
अजीब सा खालीपन था
बातो में उसकी ,
अजीब सा खोखलापन
जाने क्या वो क्या देखती रही 
उसकी उन वीरान सी  आँखों में
जबकि उसने नज़र भर कर 
एक  पल को भी निहारा ही नहीं ||
 
अनु  ...