Tuesday, April 29, 2014

उसकी आखिरी रात में



उसकी आखिरी रात में 
साँसों का चलना 
और 
साँसों का रुकना 
इसी के बीच 
रुक-रुक के चलती जिंदगी 

पर वो 
जिंदगी की आखिरी रात 
सो कर नहीं बिताना चाहती 

वो भूल जाना चाहती है  
कि 
वो एक औरत है 
एक स्त्री, एक माँ है 
एक बेटी और एक बहन है 
किसी के घर की  
वो  खुद के लिए एक संसार 
रचना चाहती है 

उसके आँसू, उसकी हँसी
और उसके दर्द की परछाई
जिस में छिपी है उसकी जिंदगी की सच्चाई 
जिस से वो   
बाहर निकलना चाहती है 
जो फर्ज़ और दायित्व के नाम पर 
उसकी पीठ पर लाद दी गयी है 

वो पत्थर तोड़ती,
किसी के घर के धोती बर्तन 
या मजदूरी की कीमत पर 
अस्मत पर वार सहती 
जिसको हर किसी ने कम समझा 
कम ही आँका 

फिर भी वो अपनी 
पथरीली और काँटों की 
राहों को त्याग 
खुद के लिए 
मखमली राह का  
निर्माण करना चाहती है  

अपनी आखिरी रात 
अपने ही अंदर आँसुओं को ओढ़ कर 
नहीं सो जाना चाहती 

एक आत्मविश्वास सी परिपूर्ण 
नए समाज का निर्माण कर  
वो तो नवजात शिशु सी किलकारी के साथ 
विदा लेना चाहती है  

उसे अपने 
विस्तार के लिए 
किसी समुंदर की जरूरत नहीं  
उसकी उन्मुक्त उड़ान ही 
उसकी उपस्थिति है इस जाहन में 

है अब 
उसका खुद का आकाश,
खुद का विस्तार
खुद की जिंदगी की 
आखिरी सांस  
उसकी आखिरी रात में |

अंजु चौधरी (अनु)

Saturday, April 26, 2014

हल्ला बोल


जानती हूँ कि मैं कोई नई बात नहीं लिख रही हूँ ....पर आज जब हल्ला बोल प्रोग्राम देखा तो एक सोच मन में उठी और उसी सोच को बस शब्द देने का प्रयास किया है



टीवी पर आने वाले कार्यक्रम, खासकर सास-बहु टाइप प्रोग्राम से अब ऊब चुकी हूँ | इन बेकार के प्रोग्राम का असल जिंदगी से कोई लेना-देना नहीं है, एक भेड़चाल की तरह सब कुछ सालों चलते रहते हैं | ऐसा एक कार्यक्रम एक चैनल पर जैसे ही हिट होता है उसी टाइप के सीरियल हर चैनल पर शुरू हो जाते हैं |अब झेलों इन्हीं कार्यक्रमों और न्यूज़ चैनल्स का तो ओर भी हाल बुरा है| एक ही न्यूज़ को बार-बार दिखा कर इतना बोर कर देते हैं कि फिर से न्यूज़ देखने की हिम्मत ही नहीं बचती |

जैसे जैसे मैंने आज कल के युवाओं की पसंद के प्रोग्राम देखने शुरू किए हैं वैसे वैसे मैं जान पा रही हूँ की आज कल अपने ही समाज में युवा होती लड़कियों के लिए जीना कितना मुश्किल हो गया है |मेरी अपनी कोई बेटी नहीं है....शायद इसी वजह से मैंने बहुत सी बातों से अंजान रही |

बेटों की माँ होना और एक युवा होती बेटी की माँ होने में बहुत फर्क है ये बात अब मैं बहुत अच्छे से समझ गयी हूँ |पर आजकल की लड़कियाँ भी घर बैठना,घर के कामों में खुद का इन्टरेस्ट बना के रखना पसंद नहीं करती | उनकी भी ये ही इच्छा रहती है कि वो भी किसी ना किसी फील्ड में महारथ हासिल करें |

मैं इसे गलत नहीं मानती पर जिस तरह से लड़कियाँ को बहका कर गलत रास्तों पर आगे बढ़ाया जा रहा है वो हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए ठीक नहीं है |तभी तो झूठे सपने और वादों की बातों में ऑफिस में काम करने वाली लड़की अपने बॉस के हाथों छल ली जाती है....कोचिंग क्लास लेने वाली लड़की को उसका ही टीचर, अच्छे रेंक आने का लालच दे कर, कहीं का नहीं रहने देता |

अपने सपनों को सच करना क्या कोई गुनाह है? अपने लिए कुछ अच्छा सोचना क्या इतनी बड़ी गलती है कि लड़की होने के नाते उसकी कीमत उसे अदा करनी ही है ???

गंभीर प्रश्न तो बहुत है,मुद्दे हर कोई उठा देता है पर उसका हल कोई भी नहीं सुझाता |

आज अभी एक प्रोग्राम में देखा कि स्विमिंग सीखने वाली कॉलेज की लड़की को उसका कोच हर 
तरीके से तंग करता हैं और उसकी आँखों में जीतने का सपना इतना सजा देता है कि ताकि वो उस लड़की को अपने साथ सेक्सुयली ईनवॉल्व कर ले पर लड़की को उसके इरादे का पता चल जाता है |इसी के चलते वो कॉलेज के प्रिन्सिपल और सबके सामने उसके सच को अपनी समझदारी से,सभी सुबूतों के साथ ...उसके इरादो का सब के सामने खुलासा कर देती है |

पर हर लड़की ऐसा नहीं कर सकती....सब में इतनी हिम्मत नहीं होती कि वो अपने साथ हो रहे गलत व्यवहार को, हो रहे अन्याय का खुल कर सामना कर सके क्योंकि हमारा समाज कभी आदमी में कोई बुराई नहीं देखता बल्कि उसके हर बुराई लड़की में ही नज़र आती है|तब मन ओर भी दुखता है जब अपने ही अपनें बच्चों की बात को नहीं समझते, वो भी बस दुनिया की कही बातों में आ कर अपने बच्चों का मूल्यांकन उनकी बातों से करने लगते हैं |

बहुत से लोगों के मुँह से हर टीवी के कार्यकर्मों की बुराई ही सुनी है यहाँ तक बहुत बार मैंने भी ऐसा ही कुछ कहा और लिखा भी है |पर आज मैं इस बात से सहमत हूँ कि जिस तरह आजकल वी टीवी (VTV) और बिंदास टीवी (bindas tv)पर दिखाये जा रहे प्रोग्राम हल्ला बोल (halla bol) हीरोस(heroes), सोनी टीवी (sony tv) पर दस्तक(dastak) और लाइफ ओके (life ok) पर सावधान इंडिया(savdhan india) कुछ ऐसे कार्यक्रम हैं जिन्हें देख कर कम से कम हर युवा लड़की या कोई भी कामकाजी महिला अपने आपको को सेक्सुयल हेरस्मेंट होने से बचा सकती हैं | 



एक माँ होने के नाते में इतना जरूर जानती हूँ की आजकल बच्चे बहुत समझदार और प्रेक्टिकल हैं |


-- 
अंजु चौधरी (अनु)

Thursday, April 24, 2014

रोशनियाँ




टिमटिमाती  रोशनियाँ
और जंगल की आग का 
धुआँ 
सड़कों से गुजरती  गाड़ियाँ
और इन सबका शोर 
उसके कानों में 
फुसफुसाता है 
अपने व्यवस्ता की दास्तां 

एक अजीब सा शोर 
एक अजीब सी घुटन 
उसकी आँखों में काँपती है 

और फिर एक ऊँची आवाज़ 
ज़ार-ज़ार 
खड़खड़ाती सी 
उसे भेदती हुई 
आर-पार हो जाती है 
उसे अकेला कर देने के लिए 
बस इतना ही काफी है ||
-- 
अंजु चौधरी (अनु )

Tuesday, April 22, 2014

ऐ-री-सखी (अकेले मन का द्वंद्ध )

(ऐ-री-सखी कविता संग्रह की ही एक कविता )

ऐ-री-सखी
तू ही बता 
मैं कब तक तन्हा रहूँगी  


कब! 
मेरे मन की चौखट पे 
धूप सी इस जिंदगी में 
कोई आएगा 
जिस संग मैं
साजन गीत गाऊँगी 

तब!
बसंत के आने पर  ,
मेरी जिंदगी की भौर में
तभी तो बहार आएगी
जो  मल्हार का रूप धर
उस संग प्यार के नगमे गाएगी
हम दोनों मिल कर खेलेंगे  ,
खेल जीवन-संगीत का
बन जाएँगे अफसाने ,
हम दोनों के
जब दो दिल मिल जाएँगे  

देख कर रूप प्यार का
सूने जीवन में भी
गुलशन भी खिल जाएँगे
जब आँखे कुछ कहेंगी
ख़ामोशी और बढ़ जाएगी
एक संगीत का सुर मिल जाएगा
तब,तन मन गीत सुनाएगा


मोहब्बत में
है ये मादक मदिरा
मद में करे मदहोश जो
प्यार में 
सरस साथ बन साजन
खुद को भी लहराए वो 


कैसा पुनीत अवसर होगा
जब सावन ही मेरे
भीतर होगा
मैं भी छम छम नाचूँगी 
गीत प्यार के गाऊँगी

खुशबू बन महकुंगी और
सखियाँ चुपके से आएँगी
मुझे छेड़-छेड़ कर जाएँगी


तब,मैं भी दूर खड़ी मुस्कुराऊँगी 
जब बढ्ने लगेगी मेरे दिल की ये धड़कनें
तो,उस संग प्यार को ओर बढ़ाऊँगी   



पर, आने पे उसके !
वो कब तक रहेगा पास मेरे
कब तक रोकेगी उसे
मेरी ये आस रे ,

मेरी शोख अदाएँ
कब तक उसके नैनों से
बातें कर पाएँगी 


मैं,शरमायीं अलसाई आँखों को ,
कब तक नीचे रख पाऊँगी
कब तक मोहिनी बन 
मैं,मोहब्बत में उसे रिझा पाऊँगी 


बोल ना! ऐ-री-सखी,
मैं कब तक ,
अपने ही प्यार के ,
यूँ ही सपने सजा
गीत अकेले-अकेले गाऊँगी ||