Monday, June 27, 2011







मेरा व्योम


अर्थ नहीं होता है कोई
अर्थ से टूटी भाषा का
तार तार कर संकू मौन को
केवल इतना शोर तो
सुबह का सुनने दो
भरने दो मुझे को सांसो में
खुशबु उसकी ...
स्वर की हदे बांधने दो

पोर पोर फटती देखूं मै
केवल इतना सा उजियारा
मेरी आँखों में रहने दो
सूरज सुर्ख बताने वालो
अंधियारे बीजा करते है
गीली मिटटी सी पीडाएं
मेरी जो सलती है
रात भर ...
सफ़र नहीं होता हैं कोई
अपना ही आकाश बुनूं मै
भरने दो मुझको पंखो में
मेरी दिशा बांधने वालों
केवल इतनी सी ही
मेरी तलाश है .........
(अनु)

Saturday, June 18, 2011

प्रेम दीवानी



प्रेम दीवानी



सूरज की गरमी ,चन्दा की ठंडक
इसमें छिपे अनंत बसंत
अपनी बानी प्रेम की बानी
इसकी सियाई आँखों का पानी

जिसको ना घर समझे
ना समझे गली दीवानी
जिसकी हर अदा पर
मर गई ये
मीरा दीवानी ....

मै तो हूँ एक पिंजरे के मैना
जात अजानी ,नाम अनजाना
कहीं ना उसका ठौर ठिकाना ,
दिल है शोला ,आँखों में शबनम
कुछ चोट लगी बाहर थी
कुछ चोट लगी भीतर थी
शबनम की बूंदों तक पर
निर्दयी धूप की कड़ी नज़र थी
कोई था बदहाल धूप में
कोई था ग़मगीन छावं में
जिसको अपनाया उसकी
याद संजोई मन में ऐसे
जो दीवा जले तुलसी-पूजन में
आज भले ही तुम कुछ भी
कहें लो ....
मै उसकी हो गई जी
जो थाम के जिगर उठा ,
जो मिला के नज़र
इस प्रेम द्वारे झुका जी
--
((anu))
anu

Saturday, June 11, 2011

इश्क चला है हुस्न से मिलने.........

चित्र आभार ....रोज़ी सचदेवा





इश्क चला है हुस्न से मिलने.........

चांदनी रात के साये में
चाँद की भीगी चांदनी में
इश्क बोला हुस्न से
ले कर हाथो में हाथ चलो
यूँ ही चलते चलते
उम्र भर साथ चलो
मेरी आस से बंधी है
आशा की डोर और
उमंगो की पतंग
रात की शीतलता में
डूब जायेगे हम तुझ संग
एहसास की नगरी में
लिए यूँ ही शर्मीली मुस्कान
तुम चलो मेरे द्वार..
संग लिए फूलों का हार चलो ..............
चांदनी रात के साये में ............

बढते चले जाएगें
उभरते चले जाएगें
ये मन गा रहा है
प्रेम गीत ...वो यूँ ही
गाते चले जाएगें
क्यों हम डोलने लगे है
आशा और अभिलाषा
की बोली में
हम तो यूँ ही
गलबहियां डाले मिलेगे
अपनी ही नई नई
देहलीज़ पर
खुशियों का एक
आशियाना बनायेगे
चाँद की ज़मी पर
डूब जायेगे हम ...
धड़कने खलेंगी हमारी ..
जुबा चुप हो जाएगी
दिल का राग सुनेगे हम
नयनो की भाषा की
होगी जीत
जो भरेगी हमारी
ख़ामोशी में भी संगीत
मै सितारों से तेरी
मांग भरूँगा
दूंगा हुकुम चाँद को
कि नाम बदल
ले वो अपना
ये खामोश निगाहें
इशारो से तुझे बुलाएंगी
अंजुमन महक उठेगा अपना
जब ..
इश्क चलेगा अपने हुस्न से मिलने
चांदनी रात के साये में ........

(अनु..)

Sunday, June 5, 2011

सिर्फ तुम.........

चित्र आभार .....रोज़ी सचदेवा







सिर्फ तुम.........








पैगामे--बसंत आया
अपनी मर्यादा के भीतर
वो प्यार लाया ...
देखो फिर उसने एक बार
आस का दीप जलाया
सुबह की हवा ,रात चांदनी
की शीतलता का एहसास करवाया.....

जब नाम लिया तुम्हारा तो
एक ग़ज़ल बन गए

जब भी कुछ कहना चाहा...
एक पैगाम बन गए
सूरज आग सा दहक रहा
उदासी से भरे भरे सुने सब
पर तुम्हारे प्यार की बदली में
भीग गई हूँ मै
सर से नख तक .......

मेरे जीवन पथ के
पथिक..... हो तुम
अब जो फिर से मिले हो तो
साथ निभाना तुम
तुमने देखा नहीं राह चलते
कभी तुम आगाज़ बने
कभी-- अंजाम बन गए ..
अपनी ही तमन्नायो के
दीप जला गए तुम
झलकी है आँखे जब भी
तुम्हारी याद में
इन आँखों में
ख़ुशी के अश्क
बन गए तुम

कहने को ...
हजारो हसरते अब भी है
जो रोके नहीं रूकती
बहुत अरमान ऐसे है
जो दिल ही दिल में
तूफां-खेज़ बन गए
गर नहीं अंजाम से
वाकिफ हो .. तो
मेरी दस्ताने इश्क का
सार हो तुम ....
मेरी बची जिंदगी का
आधार हो ...... सिर्फ तुम
सिर्फ तुम .............

(अनु..)