Monday, November 26, 2012

एड्स (एक सच्ची घटना )

एक दिसंबर ......एड्स दिवस के उपलक्ष्य में




कितनी अजीब बात है कि जिस विषय को बहुत दिन से सोच कर लिखने की सोच मेरे भीतर मुझे परेशां कर रही थी ,नहीं जानती थी कि वही विषय मुझे कहानी ,लेख या कवि़ता के रूप में लिखने को इतनी जल्दी मिल जाएगी | ‘’एड्स ‘ एक ऐसा विषय है जिस पर आज भी हम लोगों के समाज में सबके सामने बात करना गुनाह समझा जाता है,जैसे गोरे और काले का भेद आज भी हमारे समाज में बहुत गहरे तक अपनी जड़ समेट समाया हुआ है वैसे ही है एड्स  |कुछ ऐसा ही एक किस्सा मुझे भी याद आ गया ,ये ना कहानी है ना ही कोई कविता . ये एक घर का और उनकी जिंदगी का सच है (अगर मानो तो ) इस से एक घर तबाह होने को है या ये कहना अधिक सही होगा कि हो ही चुका है. एड्स के बारे में मैं सिर्फ लिख सकती हूँ पर जो जिंदगी का अनुभव वो लोग साथ रहकर ,कर रहे हैं ये वो ही बहुत अच्छे से जानते हैं और उनकी जिंदगी से जुड़े लोग मूक दर्शक बने बस तमाशा देख रहे है एक दम बेबस से .
बात है अहमदाबाद के एक दोस्त की ,जिसने मुझे ये सच्चाई बताई कि दो साल पहले मुम्बई में पोस्टिंग  होने की वजह से वो अकेला ही वहाँ एक साल तक रहा अपने घर से दूर ,वहीँ उसके कुछ दोस्त बने और दोस्ती में घूमना और साथ साथ मौज मस्ती भी शुरू हो गई ,इसी मस्ती के चलते वो सब लोग एक रात थियेटर में फिल्म देखने गए . उन दोस्तों में से एक दोस्त की पत्नी जैसे ही अपनी सीट पर बैठी  तो उसी पल वो उईईईईईइ करती हुई एक दम से खड़ी हो गई ,पर तब तक हांल में अँधेरा हो चुका था ,उसने सीट के नीचे हाथ मार कर कुछ निकला तो कुछ सुई टाईप का निकला तो उसने वो हाथ में पकड़ लिया और मध्यांतर (इंटरवल) में लाइट होने पर जब उसने अपने हाथ में आई सुई को देखा तो उसके साथ एक पर्ची भी थी जिस पर लिखा था ‘’ वेलकम टू द वर्ल्ड ऑफ एड्स ‘’ उस वक्त इस पर्ची पर लिखे इस वाक्य ने सबके दिलों को दहला कर रख दिया और उन्ही दिनों मित्रों द्वारा मेल ये न्यूज़ हमको मिल रही थी कि आज कल सिनेमा हाल्स में कुछ इस तरह की वारदाते हुई है ,कृपया आप लोग सावधान रहे ,पर मैंने कभी इस तरह की मेल को गंभीरता से नहीं लिया था और उसी दौरान उस दोस्त ने इस तरह की घटना पर सच्चाई की मोहर लगा दी | हाल में सभी दोस्त अपनी अपनी राय दे रहे थे ,पर जो होना तय था वो हो चुका था ,वहाँ उस हाल में एक पल गवाए बिना वो सब हाल से बाहर आ गए और सीधा ब्लड टेस्ट करवाने के लिए लेब में गए और दो दिन के इंतज़ार के बाद रिपोर्ट आई और ये दो दिन उन सबके लिए दो सदियों से भी बढ़ कर निकले .पर उस वक्त रिपोर्ट नेगिटिव आई यानी की तब तक सब नोर्मल था,तो सबकी जान में जान आई .पर कुदरत को तो कुछ ओर ही मंज़ूर था . तीन महीने बाद उनके ही परिवार में किसी बुज़ुर्ग को खून की जरुरत पड़ी जो कि उन दोस्ती की पत्नी से मैच करता था ,वो खून देने अस्पताल गई ,खून दे भी दिया गया पर दो दिन के पश्चात अस्पताल से फोन आ गया कि उनके द्वारा दिया गया खून एड्स ग्रस्त है इस लिए उनका खून नहीं दिया जा सकता | वो फोन और वो रिपोर्ट उस घर पर कहर बन का टूटी ,वो हँसता खेलता  परिवार एक ही पल में बिखर गया ,सबके चहरे की मुस्कराहट गायब हो गई . पूरे घर भर में मौत जैसा मौहोल बन चुका था ,बच्चे तो अभी छोटे थे वो नहीं समझ पाए कि कुछ दिनों से पापा मम्मी इतने परेशां क्यों है और बात बात में मम्मी क्यों रोने लगती है ,घर की बेटी जो की उस वक्त ११ साल की थी फिर भी कुछ कुछ समझ रही थी ,घर में हर वक्त बीमारी और डॉ की बाते अब बहुत आम हो गई थी | आज दो साल के बाद उस घर का बेटा ७ साल और बेटी १३ साल की है ,दिनों दिन बीमारी ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया है और पैसा पानी की तरह बहा कर भी एड्स जैसी बीमारी पर काबू नहीं पाया जा रहा | एक घर जो उन लोगों का रहने का बसेरा था और अभी भी उस फ्लैट का emi चल रही है ,इस बीमारी के चलते वो बेच कर उसका सारा पैसा इस बीमारी में लग चुका है .हर किसी ने उन्हें अपने जीवन और आपने आस पास से खदेड़ दिया है ,वो लोग अछूतों सी जिंदगी जीने को मजबूर हैं .एक महीने की दवाई लगभग दो से ढाई लाख के बीच में आती है जो एक आम इंसान के बूते के बाहर की बात है . घर के हर सदस्य के खून की जांच महीने दर महीने होती है ये देखने के लिए कि कहीं उन्हें भी तो साथ रहते रहते एड्स तो नहीं हो गया है जिस डॉ से भी पूछा जाता है वो उक्त मरीज को जीवन मात्र दो से तीन साल बताते हैं उस दोस्त की दोस्त को इस एड्स नामक बीमारी ने पूरी तरह से मरने से पहले ही मार दिया है . वो अपनी मौत पल दर पल अपने घर वालो की आँखों में रोज़ देखती है ,उसके बाल झड़ने शुरू हो गए है ,वजन मात्र ३८ किलो रह गया है और रंग एक दम स्याह काला हो चुका है ,एक हँसता खेलता परिवार एक दिमागी तौर पर बीमार इंसान की वजह से तबाह हो गया है . कितना मुश्किल है इस वक्त ये सब लिखना जब कि मैं जानती हूँ कि मैं बस लिख ,पढ़ सकती हूँ पर मेरी वो अनजानी दोस्त अपनी जिंदगी को किस तरह काट रही होगी मैं समझ तो सकती हूँ पर उसके उस दर्द का अंश मात्र महसूस भी नहीं कर सकती | क्या ऐसी ही होती है किसी भी एड्स ग्रस्त मरीज की जिंदगी ?

अंजु (अनु)

Thursday, November 15, 2012

मेरी हिंदी , मेरा लेखन और मेरा संपादन .......गर्व है मुझे की मैं हिंदी में लिखती हूँ

 क्षितिजा ...मेरी बाल्यावस्था
 कस्तूरी ... लेखन का यौवन रूप रंग लिए
 अरुणिमा ...एक परिपक्व सोच ...


बहुत दुःख होता है जब एक पढ़ा लिखा इंसान ...किसी भी भाषा पर  कोई टिप्पणी करता है और उसके लेखन पर उँगलियाँ उठायी जाती हैं .बहुत दिनों से इस बारे में लिखने के लिए सोच रही थी ,बहुत से लोगों को देखा और पढ़ा कि जिसका मन आता है वो लेखन के कार्य या लेखन से जुड़े संपादन को अपनी मर्ज़ी के मुताबिक कुछ भी कह देता है पर अभी यहाँ पहले मैं बात करुँगी ....भाषा की .हर भाषा का अपना सम्मान है ये बात हम सबको समझनी होगी ....हिन्दुस्तान एक ऐसा मुल्क है जहाँ हर कुछ km के बाद भाषा बदल जाती है इसका मतलब ये नहीं कि आपको जिस भाषा में महारत हासिल है उसके अतिरिक्त आप दूसरों की भाषा को अपने भद्दे शब्दों से नवाज़ देंगे .....अपनी भाषा को महान और दूसरे हो हीन समझने वालो से मेरा बस एक ही प्रश्न है ...कि क्या आप अपनी सभ्य भाषा सीख कर पैदा हुए थे और कैसे पढ़े लिखे इंसान है आप लोग ...जो दूसरों की भाषा को ,उनकी बातों को और उनके द्वारा किए गए कार्यों की सरहना नहीं कर सकते ...आप का बड़प्पन तब होता जब आप अपने से कमतर को अपने साथ लेकर चलते ...उन्हें अपनी भाषा और अपने जितना ही सम्मान देते ...चलिए सम्मान ना सही ...पर अपने शब्दों से उन्हें और उनके आत्मविश्वास को खंडित ना करते ...ये कैसी पढ़ाई है ...ये कैसा  भाषा का फर्क है जो हम इंसानों को ही बांटने पर तुली है | मुझे यहाँ कहने पर ज़रा भी अफ़सोस नहीं है कि ...हमारे यहाँ के पढ़े लिखे तबके से अच्छे बाहर के मुल्क के अनपढ़ लोग है ...जो भाषा ना समझ आने पर भी ईशारो से आपको बात समझा देते है और आपकी बात समझ लेते हैं | यहाँ एक बात उदारहण दे कर जरुर कहूँगी ...कि कुछ साल पहले मैं और मेरे पति ..सिंगापुर ...स्टार क्रूज (ship)पर घूमने गए थे ..वहाँ हर काम कार्ड से होता था ...कमरे से लेकर ...खाना पीना और शौपिंग भी ,अगर कार्ड नहीं तो आप वापिस बिना कार्ड के उस शिप से सिंगापुर शहर भी नहीं जा सकते थे ...और वो ही कीमती कार्ड मेरे पति से कहीं खो गया ...हम दोनों के अलावा वहाँ के अन्य लोग भी परेशां हो गए ....सबने मिल कर कार्ड ढूंढा पर वो नहीं मिला ...तो किसी की सलाह पर हमने फिर से कार्ड बनवाने की कोशिश की ...अब इस में अड़चन ये थी कि ...सिंगापुर ...स्टार  क्रूज शिप पर काम करने वाले वर्करों को इंग्लिश नहीं आती थी और हमको वहाँ की भाषा थाई समझ नहीं आ रही थी | टूटी फूटी हिंदी और ईशारो से हमने उन्हें अपनी बात समझा दी ...मज़े की बात तो देखिए ...वो हिंदी ...भले ही टूटी-फूटी ही सही , समझ गए ...जब कि मैं उस वक्त लगातार उन्हें इंग्लिश में बात समझाने की बहुत कोशिश कर रही थी ...वही ...मेरे पति जिनका  इंग्लिश को लेकर ज्ञान ...बहुत कम है ...उन्होंने उस वर्कर को अपने इशारों और टूटी-फूटी हिंदी में इतने अच्छे से बात समझा दी कि मुझे उस वक्त अपने पति पे गर्व महसूस हो रहा था ...और उन्हें इंग्लिश ना आने का मलाल उस वक्त रत्तीभर भी नहीं था ....उस वक्त ये बात हमने बहुत हल्के से ली थी ....पर आज जब भी इस बात को याद करती हूँ तो मन में सोचती हूँ कि ...उफ़ पढ़े लिखे अनपढ़ अगर ये हिंदी ना होती तो ...तुम इंग्लिश बोलने वालो को आज कौन पहचानता ? इंग्लिश इंग्लिश कहने वाले ये क्यों भूल जाते है कि इंग्लिश को हिन्दुस्तान ई ज़मीन पर हिंदी ने ही जन्म दिया है तो हिंदी माँ हुई इस इंग्लिश की ,और आज बेटा ही अपनी माँ को बुरा कहता है ,गालियाँ देता है ...कैसा वक्त आ गया है कि सच में बहुत अफ़सोस होता है कि जब अपने ही देश में हिंदी और क्षेत्रीय भाषा को हीनभावना से देखा जाता है ...हम ये क्यों भूल जाते है कि जब भी हम अपने देश के किसी भी पाँच सितारा होटल में जाते हैं तो वहाँ दरबान से लेकर स्वागत करने वाले हमको नमस्ते करते है ...और हिंदी में ही कहते और पूछते है कि ''स्वागत है आपका ...हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं ?''......बाकि इंग्लिश बाद में आती है .....इसके बाद मुझे नहीं लगता की हम हिंदी को निम्न स्तरीय भाषा का स्तर दे ||  संस्कृत ,उर्दू ,पंजाबी, कश्मीरी ,गुजरती ,उड़िया ,असमिया ,भोजपुरी आदि ...हर क्षेत्र की अपनी भाषा से ही पहचान है ....फिर सिर्फ हिंदी को ही निशाना क्यों बनाया जाता है .....क्या ये सच में इतनी खराब है कि हम सब इस से बचते है ....फिर क्यों एक बच्चा सबके पहले माँ...बुआ .तातातातातात ..दादी या दादू ...क्यों बोलता है ...वो mom(मोम)...आंटी या अंकल क्यों नहीं बोलता ???????और सबसे बडी बात ...हिंदी को निम्न बताने वाले हमेशा गालीगलौच हिंदी में या अपनी क्षेत्रीय भाषा में क्यों देते है ? इंग्लिश में गाली  देना बर्जित है क्या ...या इंग्लिश में गाली ,गाली नहीं लगती ?
जैसे चप्पल अब विरोध का प्रतीक बन गई है. बुश, चिदंबरम और कई दूसरी नामी हस्तियों को  चप्पल मारी गई उसी तरह इंग्लिश जानने वाले और बोलने वालो ने हिंदी को गाली देने का बीड़ा भी उठा लिया है ....फिर भी मैं ये ही कहूँगी कि ये हिंदी मेरी है.....गर्व है मुझे की मैं हिंदी में लिखती हूँ......और हिंदी से ही मेरी पहचान है |

अब बात आती है लेखन की ...लेखन और
संपादन को ना समझने वालो से मैं बस इतना ही कहूँगी कि लिखना यानी कि खुद को खुद में खो देना ,शब्दों से खेलना ,उन्हें सोचना और फिर मन के भाव बना कर एक कागज़ पर उतार देना ...मन के भाव और शब्द मिल कर एक कविता या एक कहानी को जन्म देते है और जन्म लेना वाला अपनी हर अवस्था से गुज़रता है ...पैदा होते ही कोई भी बच्चा भागने नहीं लगता ,उसे भागने के लिए एक साल तक का इंतज़ार करना होता है ...फिर हम ये कैसे सोच लेते है कि लिखने वाला लिखना शुरू करते ही सबका गुरु बनके हम सबके बीच आएगा ...अरे भाई ...उसे भी अपने आप को निखारने में वक्त तो लगेगा ना |
और हर लिखने वाले को मैं ये जरुर कहूँगी कि......लिखने वाला / वाली ..कभी अपने विचारों को दबाएँ नहीं उसे निरंतर लिखते रहे ,लिखना मंजिल नहीं ..कोई गंतव्य नहीं वो तो एक साधना है ,एक अनंत यात्रा जिस पर कदम दर कदम हमको आगे बढ़ना है |लिखना बुद्धूपन जरुर है पर पाप नहीं ...पर लेखन और संपादन पर  कटाक्ष करने वाले इसे पाप घोषित करने में लगे हुए हैं ,जो शब्द गीत बनने की ताकत रखते हैं ,उन्हें गाली बना का पेश किया जा रहा है ...ठीक है हम ये बुद्धूपन में ही खुश है ,कम से कम इस में एक आत्मा  को खुशी देने का गुर तो है ,इसमें किसी के लिए जीवनभर की खुशी तो छिपी है ,एक ताजगी का अहसास है जो जीवन में आगे बढ़ने का हौंसला देता है | इस क्षेत्र में सबकी अपनी अपनी ज़मी है जिस पर कभी कविता तो कभी लेख ...तो कभी कभी कहानी जन्म लेती है.....सबके रंग रूप अलग अलग है पर विचारों की प्रभुता वही है जो मेरे मन में ...जो आपके मन में है ..फर्क बस सोच का है |मेरी कहानी (कमला दास ),एक नौकरानी की डायरी (कृष्ण बलदेव वैद),द्रौपदी (प्रतिभा राय )नौकर की कमीज (विनोद कुमार शुक्ल )स्पाउस शादी का सच (शोभा डे ) ये कुछ नाम है जिन्होंने ये सोच कर नहीं लिखा था कि वो लिखते ही हिट हो जाएंगे ...बस उन्होंने अपने मन की बातों को लिख दिया और ना ही ये पैदा होते ही लिखने लगे थे ....वक्त के साथ साथ इनके लेखन ने गति पकड़ी और ये लोग स्थापित होते चले गए |इसी विश्वास के साथ कि ...''एक मुट्ठी आसमां मेरा भी ''....अपने लेखन को कायम रखे ||

जल उठे नयन में स्वप्न
जीवन मेरा निष्कंप 

लौं से मिल गई लौं 
चमक उठी बिजलियां
पथ के रथ चक्रों से
लपटों को ओढ़
निशा भी अब है मुस्काई  ||

अंजु (अनु)

Saturday, November 10, 2012

दीवाली और धनतेरस का त्यौहार .....सबके लिए शुभ हो






मेरे  आँगन की रंगोली



अरे सुनो तो
आज ...कोई बात शुरू करने से पहले ..
बात करे दीवाली की
यारो बताओ ,कैसे बात करे दीवाली की |
 

घर ,गली की या हो
बाज़ार और शहर की
पर भूलने वाली कभी ना हो ये मुलाकात
दीवाली की ...
बच्चों संग बाज़ार गए तो
क्या क्या लाए और क्या क्या देखा
ये तो बतलाओ ...
ये तो रूहानी रात है 

दीवाली की ...
कहीं ज़ब्त ना हो ज़ज्बात दीवाली के
जब भी कहीं बात हो
दीवाली की ....
भूलने वाली कभी ना को
किसी से वो मुलाकात
दीवाली की ....
तभी तो ,
अच्छी लगती जीत ,दीवाली की
सुना है बुरी होती है मात
वो भी दीवाली की ...
खूब छूटेंगे पटाखे ,फूलझड़ी
और जब लाइन सजेगी अनारों की
तो यूँ लगे जैसे कोई
बरात निकल रही हो आज रात
तारों की ...
लाखों खुशियों की सौगात
लेकर आई ,ये रात
दीवाली की...
कुछ तो तुम भी बोलो यार मेरे
बच्चों संग ,या दोस्तों की
सजेगी महफ़िल  तुम्हारी ...
बोलो किसके साथ
फिर कैसे गुज़रेगी ये रात तुम्हारी
दीवाली की ...

पर भूलने वाली कभी ना हो ये मुलाकात
दीवाली की ....|



अंजु  (अनु)

Wednesday, November 7, 2012

कुछ कम कम सा ....



कभी कभी पूरी बरसात से ,
पड़ने वाली कम कम सी बूंदे
इस तन और मन को
अधिक शांत करती है
वैसे  ही ...
कम बोलने वाले शब्द
कम बाते ,और छोटे वाक्य
जो किताब के पन्नों से होकर ,
इस जिंदगी में
खुद की जगह बना लेते हैं
अपनों के बीच ,
खुद की रोशनी लिए हुए ...
मुझे पसंद है,
बहता हुआ दरिया
नित नए पानी सी
नए ख्यालों और
उमंग से भरी जिंदगी
जो अपने साथ
एक गहरी चुप्पी रखती हो
साथ ही साथ ,
आँखों की भाषा ..
और एक लंबा सा मौन ....
जो इस रुकी हुई जिंदगी को
नया सा अर्थ देता है 
और  देता है...कुछ अपनों में
एक नयी सी पहचान  लिए ,
सिर्फ ,अपने  लिए ||
अंजु (अनु)




आज अजब सी शरारत मेरे साथ हुई,
मेरे घर को छोड़ पूरे शहर में बरसात हुई||
(गोपालदास नीरज जी )