Saturday, April 23, 2011



खामोशी

रात की गहन खामोशी में
नींद आँखों से कोसो दूर
अचानक यादो का एक रेला
इन आँखों में चलचित्र
सा घुमा ......

वो आतंकी मौहोल
वो पिता कि गोलियों से
उधड़ा शरीर ..
मौत के तीन दिन बाद
भी रिसते घाव
मेरे मन को विचलित
कर गया
आँखों से ना बही
अश्रु की धारा
पर ये
मन कढोर हो गया ...
एक हादसे से छीन गया
मेरा सारा बचपन
स्कूल बंद ..दुकाने बंद
घर में कैद हो गया बचपन
माँ के ना थमने वाले आंसू
छोटे भाई को बस एक बार बचा
लेने की तम्मना
अहम हो गई ....
रिश्तेदारों का यूँ
मुह मोड़ लेना
मेरे विश्वास की
धज्जियां उडा गया....
सुना है कि ...
मोर नाचते हुए भी रोता है
हँस मरते हुए भी गाता है
ये ही इस जिन्दगी का
फलसफा है
दुखो वाली रात नींद
नहीं आती
फिर भी ..
मैंने करवट बदली ...
रात अभी भी गहन थी
और ना जाने कितनी लम्बी
मेरी ये यादो की किताब है
हर रात एक नई याद लेके
आती है
हर याद से एक
कहानी बन जाती है
.((अनु..)))

Thursday, April 21, 2011


कहते हैं राधा ब्याहता थीं ... फिर कृष्ण प्रेम , कृष्ण से पूर्व उनका नाम कसौटी पर खरा है ?
मीरा ने भी माँ के द्वारा कृष्ण को पति माना पर विवाह किसी और से हुआ ... पर वे कृष्ण दीवानी रहीं
व्याख्या करें ................रश्मि जी द्वारा पूछा गया प्रश्न ....और
ये मेरा उत्तर .............

प्यार का मार्ग बड़ा ही आकर्षण और चकाचौंध वाला होता है .....इस प्यार की भाषा और परिभाषा एक दम अलग और हट के है...तू ही सगा ...तू ही प्यारा ...इस जग में नहीं कोई तुझ से न्यारा ..पर इसके लिए अपनी अटूट निष्ठां ...श्रद्धा और अपनी तमाम वफादारी देनी पड़ती है .............प्यार ना देखे कोई जात पात ..ना देखे कोई रंग रूप ..जिसे ये मिला है अद्भुत स्वरुप ..वही है इस प्यार से फलीभूत |
प्यार शब्द खुद में अधूरा ...पर जिसने टूट के प्यार किया...उसे इस संसार ने याद भी किया और अपनी यादो में स्थान भी दिया
प्यार मीरा और राधा का ......जो बन के विश्वास आज भी इस जग में मौजूद है
राधा और कृष्ण की पहली मुलाकात ....और ब्याहता राधा हमेशा के लिए उस कृष्ण की हो कर रह गई ....उसकी पूजा ..उसका अटूट विश्वास कृष्ण के प्रति और ना भूल पाने के इच्छा शक्ति के आगे ..कृष्ण भी छोटे नज़र आते है ...कृष्ण की पत्नी ना होते हुए भी राधा का नाम आज संसार में कृष्ण से पहले प्यार और इज्ज़त से लिया जाता है ...प्यार का स्वरूप कैसा हो .......''राधा कृष्ण'' जैसा सबसे पहले ये ही जुबां से निकलता है |राधा को कृष्ण से जितना मिला ..जो मिला उसी को अपना मान उसने अपनी पूरी जिंदगी ...उस कृष्ण के प्यार के नाम कर दी .....रोग ..भोग ..शोक ..भय ....चिंता ...और क्रोध सब कुछ छोड़ कृष्णमय हो गई ..राधा प्यारी
मीरा और राधा दोनों का प्यार ....उनकी अपनी जिंदगियो से हट कर था ..जहाँ राधा ब्याहता थी....वही मीरा बचपन से ही माँ के कहने भर से कृष्ण को अपना पति मानती आई थी .......बड़े होने पर मीरा की शादी की गई पर वो राणा जी की ना हो पाई .......वो अपने प्यार में आखंड डूब चुकी थी ....प्यार जो वासना रहित था ......कोई काम नहीं ...ना मिलने की आशा .....इनका चितस्वरूपी सरोवर कभी गन्दा नहीं हुआ ....मन और तन दोनों से ये पवित्र ...सिर्फ और सिर्फ अपने प्यार में डूबी रही ....मनन किया ..मन से अपने प्यार का चिंतन किया | राधा और मीरा के मन के भावो को समझते हुए अपनी व्याख्या मै इन शब्दों से समाप्त करती हूँ कि... हे कृष्ण .....अदभुत है प्यार तुम्हारा ....अदभुत है साथ तुम्हारा जो राधा और मीरा को कर गया तुम्हारा ....इस जग में प्यार की मूरत बन गई वो दोनों |पवित्र गंगा ...गीता के सार जैसा बसा है प्यार तुम्हार उनके हृदय में ...जिसको हमारा शत शत नमन |

(अंजु....(अनु)

Wednesday, April 13, 2011

वफ़ा या बेवफा .....(एक कहानी ...मेरी और आपकी )


वक़्त की मार से कोई ना बचा है और न बचेगा .....कब क्या हो जाये कोई कुछ नहीं बता सकता ....आज कुछ ऐसी ही एक कहानी ले कर मै आपके सामने आई हूँ .......कहानी एक ऐसी औरत की ..जिसको कोई नहीं समझा सका कि वो क्या चाहती है ..उसके दिल तक कोई नहीं पहुंचा ...जो भी उसके जीवन में आया ... उसे अपना तो बनाया पर उसे अपना ना सका ..उसके दिल को ना छु सका .....कहानी है ...''छाया'' की ...
उसकी वफ़ा और बेवफाई की ......जो वक़्त आया ,जैसा वक़्त आया वो हर हाल में जीती रही .....पर एक दिन वो भी वक़्त की मार के आगे झुक गयी ..टूट गयी .पूरी तरह से ...और बेवफा का इल्जाम अपने ऊपर ले के चली गयी इस दुनिया से ...हमेशा के लिए ........|

मै 'छाया' को उस वक़्त से जानती हूँ जब ....उसने मेरे साथ पांचवी में दाखिला लिया था ..किस्मत से हम दोनों को मैडम ने साथ बिठा दिया ...बहुत चुपचाप सी रहती थी वो हर वक़्त | खुद में खोयी हुई ..और मै ..छवि ..हर वक़्त बोलते रहने वाली ..चुलबुली सी लड़की थी ..और बहुत सारे दोस्तों में घिरे रहना मेरी आदत थी ...पर छाया ठीक मेरे से उलटी ..बिलकुल चुपचाप .कटी कटी रहती | बहुत जल्दी मैं उसकी आँखे पढ़ कर उसे समझने लगी थी ....बहुत खालीपन था उसकी आँखों में ....बस अकेले रहना उसे अच्छा लगता था ..हर वक़्त क्लास की खिड़की से बाहर खुले आसमान को देखती रहती थी वो ..... कम बोलती थी ..पढने में बहुत अच्छी नहीं थो बुरी भी नहीं थी ...सभी मैडम उसकी तारीफ करती थी ...उसकी आँखे कोई देख लेता तो वही दो पल को रुक जाता था ..बहुत गहराई थी उसकी आँखों में ..ऐसा लगता था जैसे हल पल बोलती है उस की आँखे |सोचते सोचते ... ..पता नहीं कब कौन सी दुनिया में चली जाती थी | वक़्त बीता .....हम साथ रहते रहते 11th में आ गए ....इन बीते सालो में हम सब लड़कियों में बदलाव आया ...पर छाया ..कुछ ज्यादा बदली ..शरीर से भरी हो गयी ..देखने में साधारण रही ..और उसके घर में पैसे की किल्लत थी ये मैं जानती थी ..पर उसके पापा ने कभी उसे ये महसूस नहीं होने दिया ....१६ साल कि उम्र और ये खामोशी ..कभी मुझे बहुत बेचैन कर जाती थी ..मेरे आलावा वो किसी के साथ खुल के बातचीत नहीं कर पाती थी ...वो कुछ अलग सी थी मेरी ''सखी'' ...मै उसके सबसे करीब थी अपनी हर बात वो आ कर मेरे से करती थी ..पर मै कभी उसे दिल से अपने करीब नहीं कर पाई ..क्यूंकि मेरा रहन सहन अगल था ..मेरे पापा के पास पैसा था ..कभी मुझे कुछ मांगना नहीं पड़ा ..और छाया ..मेरा मुकाबला तो नहीं कर सकती थी पर कभी उसने खुद ......मेरे से कम भी साबित नहीं होने दिया ....मै आज तक ये नहीं जान पाई कि वो उस वक़्त पैसे लाती कहाँ से थी | छाया के घर में वो तीन बहने और १ छोटा भाई था ...बहनों मैं ये सब से छोटी थी ..पर लाडली नहीं ...छाया नहीं कभी किसी से कुछ माँगा नहीं.... हर वक़्त अपना सब कुछ सबको दिया ही है ..चाहे वो होम वर्क की कॉपी हो या किसी को पैसे लेने हो सब छाया के पास ही जाते थे ..वो किसी को भी मना नहीं करती थी ..हर वक़्त हर किसी के काम के लिए हाज़िर .....पर मै एक दम उल्टी..किसी की कभी कोई मदद नहीं करती थी ..पर फिर भी सब मेरे पास आते थे.....क्यूंकि मै उन सुंदर लड़कियों में आती जो पैसे वाले घर से ताल्लुक रखती थी ...बहुत गुमान था मुझे अपनी सुन्दरता पर |
हम दोनों का स्कूल खत्म हो गया और हमने एक साथ एक ही कालेज में प्रवेश लिया ....यहाँ आ कर मेरी जिंदगी बदल गयी ..मै ओर मस्त होती गयी और छाया पहले से भी ज्यादा अकेली ....छाया कालेज आती और उसके बाद सीधा घर चली जाती ..हम सब सहेलियाँ घूमने जाती पर वो कभी साथ नहीं होती थी ...ख़ैर वो धीरे धीरे मुझे से दूर होती गयी और मै अपनी जिंदगी में ओर भी मस्त |कालेज के तीसरे साल के आखिर में ..छाया की शादी हो गयी और वो हम सब से बहुत दूर चली गयी ...इतनी दूर की उसकी कोई खबर नहीं थी मुझे .....और उसकी शादी के दो साल बाद मेरी शादी भी हो गयी ....वक़्त बीता......मै अपने घर और परिवार में खो गयी ....पर आज अचानक शादी के २३ साल बाद उसका ख़त मुझे मिला ...जिसको पढ़ के मै सोचने पे मजबूर हो गयी की क्या ऐसी भी जिंदगी होती है किसी की ...क्या कोई मन से इतना भी भूखा हो सकता है?..तन की प्यास से बढ का मन की प्यास होती है ????...क्या प्यार भरा स्पर्श सच में जीने की राह दिखता है???
जो खत मेरे हाथ में था वो छाया का था...मै ये नहीं समझ पा रही थी की उसने मुझे ढूंढा कैसे...इन २३ सालो में कोई सम्पर्क नहीं रखा मैंने तो छाया के साथ ....मैंने खत खोला और पढना शुरू किया ....................
''प्रिये छवि .....
आज इतने सालो बाद मेरी ये चिठ्ठी तुझे हैरान तो करेगी और सोचने को मजबूर भी ...कि कभी ऐसा भी होता है इस जहान में ..कि कोई इतना प्यासा भी होगा .. मछली पानी में भी रह कर भी प्यासी होगी .....हां छवि मै प्यासी रही इस जीवन में ..कभी वो नहीं मिला जिसकी चाहत इस दिल में थी ....मेरा बच्चपन तुम जानती हो पर जवान होती छाया के अरमानो से तुम वाकिफ नहीं हो ....छवि मै भी सब लड़कियों जैसे ही सोचती थी ...सोचती थी किसी का साथ हो....सच्चे दिल से मेरा साथ दे.... मुझे समझे.....पर हर बार खुद को देखते ही खुदबखुद पीछे हट जाती थी जब किसी को खुद पे हँसते देखती थी ,लोगो की नज़रो में मै मजाक का विषये थी , मेरी शक्ल पे और मोटापे पे फब्तिया कसी जाती थी ...कहा जाता था ओह मोटी देखना कही बस का टायर फट ना जाये....देखो तो कैसी भद्दी लग रही है इस ड्रेस में ....ओए मोटी ज़रा..इस स्कूटर को धक्का मार दे तो स्टार्ट हो जायेगा ....... पता नहीं क्या क्या सुनती थी मै और सुनने के बाद खुद में सिमटती चली जाती थी ....जिसको दिल ही दिल में चाह वो आता और मुझ से पैसे लेके अपनी गर्लफ्रेंड को ....मेरे ही सामने उसे उसकी पसंद का सामान ला कर देता ..और मै दिल ही दिल में ओर बुझ जाती ..फिर मैंने अपने आपको सब से दूर कर लिया .... कालेज में तुम मेरे से बहुत दूर हो चुकी थी और उस वक़्त मै एक दम अकेली पड़ गयी थी ...मैंने अपने आप को पढाई में डुबो दिया ...कालेज का आखिरी साल और मेरी शादी हो गयी ...संजोग से मुझे घर और मेरा वर दोनों अच्छे मिले ....क्या हुआ अगर 'संजय' मेरे से ६ साल बड़े थे तो...मै भी तो दिखने में बहुत साधाराण थी ना ..फिर भी उन्होंने मुझे पसंद किया ....शादी के बाद मेरी हर इच्छा को संजय ने अपनी इच्छा समझते हुए पूरा किया ..वो खुद तो दसवी के बाद पढ़ नहीं पाए ..पर उन्होंने मुझे मेरी पढाई पूरी करने दी ...मुझे बी.एड. ..करवाया ...M A..करवाया ...ताकि आने वाले वक़्त से में खुद लड़ सकू ...मेरा रूप रंग सब संवार दिया ..मुझे इस काबिल बना दिया कि इस दुनिया की बातो का जवाब दे सकू ...|
छवि क्या कभी तुमने अपनी जिंदगी में अकेलापन देखा है......महसूस किया है कभी खुद को ....की तुम बाते करना चाहती हो ...पर तुम्हे सुनने वाला कोई नहीं ...सबके साथ घुल मिल के रहना पसंद है तुम्हे पर कोई साथ देने वाला कोई नहीं .......बस ये ही अकेलापन मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा था ........|

मै भी बहुत बोलना चाहती थी ..खुल के जीना था मुझे भी तुम सबके जैसे ....तुम जैसा बनाना चाहती थी खुद को ....पर घर की जिम्मेदारियों ने कभी मुझे कुछ करने नहीं दिया ...बचपन क्या होता है ...नहीं जानती मैं...जवानी कब आई और चली गयी ..मुझे पता ही नहीं चला .....शादी हुई और कब जिम्मेदारियों का बोझ मेरे कांधो पे डाल दिया गया ...मुझे पता ही नहीं चला.....
पर एक बात इन सब मैं बहुत अच्छी हुई की मुझे मेरे पति....संजय ..बहुत अच्छे मिले ....कभी किसी बात के लिए मुझे उन्होंने रोका नहीं ..कभी फालतू टोका नहीं | मैंने जो करना चाह वो करने दिया |पर फिर भी इतनी आज़ादी के बाद भी मै अकेली थी ..बहुत अकेली ......|
जीवन में बाते कैसी होती है .....साथ साथ बैठ के एक ही थाली में खाना कैसे खाया जाता है मै नहीं जानती .......मै वक़्त के साथ बच्चे पालती रही और संजय अपना व्यापर बढाते रहे ..... संजय से दूर और दूर होते गए ...कभी कभी मन की घुटन इस कद्र बढ जाती कि .......अकेले में खूब जोर जोर से रो देती ....मुझे सुनने वाला कोई नहीं होता था .....संजय के लिए वक़्त के साथ...संजय की सोच और जिन्दगी में पैसा ही सब कुछ है होता जा रहा था .......पर मेरे लिए परिवार ही सब कुछ था....रिश्तो को जीना चाहती थी ....संजय को सुनना ....और खुद बोलना चाहती थी ......उन्मुक्त आकाश में पंख फैला कर उड़ना चाहती थी .....पर ऐसा कुछ नहीं हुआ ...वक़्त का इंतज़ार करते हुए ...मुझे संजय के साथ २० साल हो गए ...अब बच्चे बड़े हो गए...और अपनी दुनिया में मस्त .......मै ओर भी अकेली हो गयी ............|
पर यहाँ भी अकलेपन ने मेरा साथ नहीं छोडा ......संजय अपने व्यापार में बहुत व्यस्त रहते थे ....महीने के ३० दिन में से २५ दिन घर से बाहर रहते...हां ये जरुर था कि वो रात को घर आ जाते थे..पर इतने थके हुए कि बात करना तो दूर कभी कभी वो मुझे देखते भी नहीं थे .......खाना खाया ओर सो गए | बिस्तर पर भी संजय कभी मन से तैयार नहीं हुए.......उनका ये ठंडापन मुझे अंदर ही अंदर तोड़ गया.... सेक्स को भी बस एक काम है जो पूर्ण करना है ..किया ओर सो गए ....कभी ये नहीं सोचा कि ''छाया '' भी शांत हुई या नहीं ...पूरी पूरी रात मै जलती रहती .....सोना तो दूर...कभी कभी तो आँखे खोले..घूमते पंखे को देखते हुई मेरी रात बीत जाती ......संजय के साथ ऐसे ही रहने कि मुझे अब आदत पड़ गयी थी...........
यहाँ से शुरू हुई मेरे बदलाव की कहानी ...... मै उनके अनुरूप अपने आप को बदलती रही ....बस कंही कोई कमी थी......कंही कुछ था जो अधूरा था ...कोई ऐसा एक कौना था जो अभी भी खाली था.....ऐसा अन्छुया पहलू | वक़्त अपनी रफ्फ्तार से चलता चला गया.......सोचा की संजय का काम में हाथ बँटा उसकी थोडी सहायता कर दू ..हर काम वो अकेले सँभालते है...मैंने उनके साथ फैक्ट्री जाना शुरू कर दिया ....यहाँ आ कर मेरी जिंदगी यूँ बदल जायेगी ये मैंने भी नहीं सोचा था |यहाँ आने के बाद लोगो से संपर्क बड़ा ...सब कुछ अच्छा लगने लगा ...यहाँ फैक्ट्री आने के बाद वक़्त कैसे बीत जाता पता ही नहीं चलता...दिन बीतने लगे ..मेरी लोगो से बातचीत और पहचान बढने लगी ....कुछ महीनो के बाद संजय मुझे यहाँ छोड़ अपना बाहर का काम करने लगे ....फैक्ट्री में मैनेजेर की पोस्ट पे काम कर रहे ''विक्रम'' से मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी ....खाली समय में हम खूब गप्पे मरते थे ..और काम के वक़्त सिर्फ काम ..उस वक़्त मै .''.मैडम'' होती थी और वो विक्रम ....पर जब हम बात करते तो वो मुझे'' छाया जी '' कहता और मै ''विक्की'' बुलाती थी ..हम उम्र में लगभग एक से थे ...सो दोस्ती और गहरी होती गयी | संजय मेरे हवाले फैक्ट्री कर अब दिल्ली के बाहर का काम सँभालने लगे जिस करके आये दिन 'वो' दिल्ली से बाहर रहने लगे | विक्की कब करीब आ गया मुझे पता ही नहीं चला ..उसकी कही हर एक बात को अब मै सोचती थी ....वो कहता ''.छाया जी आपकी आँखे कितनी गहरी है ..बोलती है ..सब पता चल जाता है ....जब तुम खुश होती हो ..तो बोलती है तुम्हारी ये आँखे....जब गुस्सा आता है तो भी पता चल जाता है ...हंसती हो तो एक अलग ही नूर झलकता है चेहरे पर ....गोरी नहीं हो ..पर सुन्दरता की कमी नहीं ...पतली नहीं ..पर देखने में भद्दी भी नहीं लगती ..अब भी तुम ४० की हो और एक बड़ी बेटी की माँ हो ..पर लगती नहीं ...''..बस ऐसी ही कुछ बाते जो मै संजय से सुनना चाहती थी वो मुझे विक्की हर बार कहता था..उसकी बातो का नशा सा होने लगा था ...खाली वक़्त में हर दम अपने आपको आईने के सामने निहारने लगी ... | कब मै और विक्की एक दूसरे को छू कर बाते करने लगे .. ...कब हमारा मजाक हद्दे पर कर गया ....कब हम एक दूसरे की निजी जिंदगी में जा घुसे पता ही नहीं चला ...वो मेरे सामने अपनी पत्नी को गुस्से में डांट देता ...लड़ पड़ता था ...पर मै कभी उसे मना नहीं कर पायी | कुछ दिन से मैंने खुद में ये बदलाव देखा की मुझे विक्की को छुना उसके करीब रहना ..और बात बात पे उसे यार कह के बात करना अच्छा लगने लगा था ..कभी तो उसकी बाजू पकड़ लेती , कभी हाथ ,कभी उसके कंधे पे अपना सारा भार डाल देती ..और विक्की ने भी कभी एहतराज़ नहीं किया...धीरे धीरे विक्की मेरी आदत बनता जा रहा था ..जिस दिन वो फैक्ट्री नहीं आता तो मेरा सारा दिन ऐसे लगता जैसे बिलकुल बेकार गया ..उस दिन मै चिडचिडी सी घुमती रहती ....उसकी बाते मेरे दिलो दिमाग में छाने लगी ...एक ऐसा कोहरा ...जिस में मै खुद को आज़ाद नहीं कर पा रही थी....... मै और मेरी सोच एक अलग ही दिशा में भागे जा रही थी ....बहुत तेजी से मेरा दिल विक्की की बातो में खोता जा रहा था ...हर वक़्त वो नशा बन मेरे दिमाग में छाया रहता....अजीब सी खुमारी थी| विक्की अपनी बातो से मेरे मन को जीतता गया ...उस से बाते करते करते मेरी मन की कुंठा ना जाने कहाँ गायब हो गयी ...खुल कर बोलना..(.कहो तो बिंदास)...सब के साथ हँस हँस के बाते करना मेरी दिनचर्या में शुमार हो गया| पहले वाली '''छाया '' ना जाने विक्की के साथ मिलते ही कहाँ काफूर हो गयी.....मै भी नहीं जानती ...ये जो नयी छाया सबके सामने थी...वो खूब बोलती थी ..सबके साथ सबकी बन के ..उसके लिए कोई मालिक नहीं कोई नौकर नहीं था ....बिंदास...जीने में विश्वास करने लगी थी ये छाया ......विक्की का रंग मेरे सर पर चड़ के बोल रहा था ...हर वक़्त विक्की ही विक्की ..ओर उसकी बाते ही मुझे सुनाई पड़ती थी |वो मेरे वजूद का हिस्सा बन गया था.......|
विक्की से मिलते ही उसे किस (चुम्बन) करना अब मेरे लिए बहुत ही साधारण सी बात हो गई थी........ वो भी कभी मुझे मेरे गाल पे, कभी मेरे माथे पे और जब बहुत प्यार आता तो मेरे होठ चूम लेता था ..मैंने कभी उसे नहीं रोका |हम जब भी साथ होते तो एक दूसरे से चिपक के चलते थे...नहीं तो हाथो को थाम के चलना हमारी आदत बन गयी थी .....अब तो ये हालत थी कि अगर वो मुझे अपने साथ सोने को भी कहता तो मै उसके साथ अपने सम्बन्ध बनाने में ज़रा भी ना झिझकती ....एक पल की देरी किये बिना सो जाती उसके साथ ...मुझे लगने लगा था की वो मुझे भी उतना ही प्यार करता है जितना मै उसे करती हूँ .....विक्की मुझे अपने साथ हर उस पार्टी में लेके जाने लगा जहाँ वो अकेला जाता था ....धीरे धीरे उसके दोस्त मेरे दोस्त बनते चले गए ......| अपने जमा किये पैसो से मै विक्की और उसके दोस्तों का खर्चा उठाने लगी..पता नहीं कितना पैसा मैंने उन पे लगा दिया ...और मेरे माथे पर शिकन तक नहीं आई ...मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मै जीते जी किसी जन्नत में पहुँच गयी हूँ ...सब शर्मा हया ...भूल बैठी थी ...बच्चे घर पे मेरी राह देखते रहते और मै ...विक्की के साथ बाहर पार्टी में होती थी ...देर रात को आना मेरी आदत बन गयी थी ....'संजय ' घर होते नहीं थे .जिन से मै डरती ..और अब घर में कोई बड़ा भी नहीं था जो मुझे कुछ करने से रोकता ...| पर नहीं जानती थी की जिस राह मै चल रही हूँ वहां ताबह्यी के अलावा कुछ और नहीं था ...मै विक्की के हाथो का खिलौना बन गयी थी ...वो मेरे शारीर से तो नहीं खेला पर मेरे पैसे और मेरी भावनायो से खूब खेला ....जब मन आता मुझे गले लगा लेता ..जब मन आता मुझे चूम लेता ...कही भी मन करता तो वो मुझे छु सकता था ..ये हक़ मैंने ही उसे दिया था |पर यहाँ भी मेरी किस्मत मुझे दगा दे गई 'छवि'.....विक्की वो नहीं था जिस रूप में वो मेरे सामने था .....इस बात का खुलासा उसकी पत्नी ने मरने से पहले मेरे सामने किया ..जिसको सुन कर में ....मै वही मर गयी ......जिंदा लाश बन गयी उस दिन से मै ..........जो मुझे विक्की का सच बताया गया वो ये था कि ....

''छवि ...सम्लैगिग समझती हो ....हां वही ....जहाँ औरत औरत को और आदमी आदमी को प्यार करता है और सम्बन्ध बनता है ....विक्की भी सम्लैगिग था''......मरने से पहले उसकी पत्नी ने बताया कि .. ''मेरी शादी मेरे ही भाई ने करवाई थी कि उन के परिवार को ये ना पता चले कि वो विक्की के साथ बहुत सालो से जुडा है ..उन्होंने अपने रिश्ते को बचाने के लिए मेरी जिंदगी ..मेरी ख़ुशी .....मेरे अरमानो की आहुति दे डाली ...मेरा पूरा जीवन नर्क बना डाला .....मुझे आदमी के हाथो का खिलौना बना डाला ..विक्की और मेरे भाई ने मिल के | कोई भाई भी अपनी बहन के साथ ऐसा कर सकता है कभी सोचा नहीं था मैंने.|'' वो तो मर गई ....पर मै क्या .... कहती उसे कि वही हालत अब मेरी भी है ...मुझे विक्की ने तो कभी इस्तेमाल तो नहीं किया ..पर दूसरो के आगे भोग की वस्तु बना के पेश कर दिया ...मुझे सेक्स का चस्का लगा के खुद मुझे से दूर हो गया ..मैंने अपने शारीर के साथ साथ संजय का विश्वास और पैसा दोनों खो दिए ...मै तन ,..मन और धन तीनो से लुट चुकी हूँ ..क्या बताती मै उसे अपने बारे में ...खुद के नजरो से गिर ही चुकी थी मै ... क्या करूँ ...कहाँ जाऊं ..किसको अपनी आप बीती सुनाऊं कि आगे से कोई ऐसी गलती ना करे ...मैंने तो खुद से अपने घर को आग लगा ली ..अपना जीवन तबाह कर दिया ..ऐसा रास्ता चुना जहाँ आगे तो बड़ा जाता है ..पर लौटा नहीं जा सकता |
संजय बहुत दिनों से मुझे देख रहे थे ऐसी हालत में ...समझे तो बहुत कुछ होंगे...तभी तो एक दिन आ कर मुझ से बोले "छाया ...मै सब जानता हूँ ..कि की तुम्हारे मन में क्या चल रहा है..और तुमने क्या किया है ...देखो अब तुम्हे अपनी पत्नी तो नहीं कहूँगा ..हां तुम मेरे बच्चो की माँ हो और रहोगी ये हक़ तुम से कोई नहीं छीन सकता ...बस इस छत के नीचे उनकी माँ बन के रहो....तो यहाँ रह सकती हो .......सच मानो छवि संजय की सादगी ने ....उस. 'छाया ' को उसी पल मार दिया ...जब संजय ने मेरा नंगा सच मेरे सामने रखा ....क्या कहती अपने बच्चो से ...कोई बात...कोई ऐसा प्रश्न ही नहीं था जिसका उत्तर मेरे पास होता |फिर भी मै अपने आपको मौत के हवाले नहीं कर पाई ..डर गयी ..अगर बच गयी तो सबकी नज़रो का समाना कैसे करुँगी ..जितने लोग उतनी बाते ..मेरे बच्चे तो जीते जी मर जायेगे ...अपनी माँ की ये करतूत सुन के ....अपने बच्चो के लिए मैंने संजय की बद सलूकी भी बर्दाश कर ली .......पर शायद जीना मेरी किस्मत में नहीं था....मै संजय की अच्छाई के आगे हार गई | जब तक ये चिट्ठी तुम्हे मिलेगी तब तक मै इस दुनिया में नहीं रहूंगी ....अपने घर का पता और टेलीफोन नम्बर मै तुम्हे देके जा रही हूँ.........हो सके तो मेरी व्यथा को अपनी कहानी का रूप देके छपवा देना ....हो सकता है कोई मेरी जैसी औरत ..उसे पढ़ के भटकने से बच जाये .........|
मै तो अपने आप को संवार नहीं सकी .......मुझे खुद को सँभालने का मौका ही नहीं मिला ....जब तक सब कुछ समझती कि ....विक्की ने मेरे साथ ये सब छल..सिर्फ पैसो के लिए किया है ....मुझे इस्तेमाल कर उसने सिर्फ संजय की दौलत को मुझे से छिना है ......दौलत तो फिर आ जायेगी .......पर इस मन की भटकन का क्या है जिसने मुझे कभी जीवन में शांत नहीं रहने दिया .......जिसकी वजह से मेरा ये हाल हुआ है ..मैंने अपने आप से और ..अपनों से दूर हो गयी ..बेवफा ना होते हुए भी ...संजय ओर बच्चे से बेवफाई कर गयी .............
बस संजय को इतना कहे देना कि....मैंने कुछ भी जानबूझ के नहीं किया ......... ..वफ़ा या बेवफा .....जैसे भारी शब्दों से खुद को आजाद कर मै अब इस दुनिया से विदा ले रही हूँ..|''
मेरी ये बात मेरे बच्चो और संजय तक मेरी आवाज़ बन तुम पहुँचाना ...मै जानती हूँ तुम्हारी बुलंद आवाज़ को वो जरुर सच मानेगे ........|
तुम्हारी .......''छाया''

छाया की चिठ्ठी मेरे हाथो में फडफाडा रही थी ...जो उम्मीद छाया ने मुझ पर दिखाई थी ..उसकी उम्मीद को मुझे अपनी आवाज़ में पूरा कर उसे न्याय दिलाना था .....मुझे विक्की जैसे लोगो से ..छाया जैसी दोस्तों को बचाना था अब...छाया की आवाज़ बन .....उसकी ऊपर लगा 'बेवफा' ..का दाग अब मुझे ही हटाना था ...|

((((((( अंजु......(((( अनु...)))))

Monday, April 11, 2011


एक रिश्ता दरका सा है

अभी अभी कुछ देर पहले
एक रिश्ता दरका सा है
रिश्ता दिल से था
कि था बस बातो का
पर एक विश्वास टूटा सा है ||

ये दिल लगाने वाले
अपनी ही शर्तो पे चलते है
जब मन आया याद किया
नहीं तो
तू कौन और हम कौन कि
तर्ज़ पे चलते है ||

देकर भगवान की दुहाई
दिल से खेलने की अनुमति
मांगते है
सौ सौ कसम दे कर
साथ धड़कन का मांगते है ...

.और फिर
फिर भूल के कसम अपनी
अकेला छोड़ देते है ||


इन्ही करीबियों से डर सा
लगने लगा है
उनकी नजरो में अब
क्यों ये मेरा ही
अक्स बदलने लगा है ?
क्या सच में ये रिश्ता अब दरका दरका सा है ?...........
(दरका ......मतलब की टूटा टूटा सा है )
(((((अंजु.....(((((अनु)))

Monday, April 4, 2011


पारिवारिक पृष्ठभूमि यानि फैमिली बैक ग्राउंड शादी के लिए या किसी को जानने के लिए कहाँ तक औचित्य रखता है ?


आज के वक़्त में बहस का मुद्दा ....जिसका अर्थ है भी और नहीं भी ....यानी मानो तो गंगा जैसा तीरथ ....ना मानो तो रेगिस्तान जैसा मरुस्थल है इस दुनिया में संसकारो की परिभाषा | कहने और समझने की बहुत सी बाते ...कहाँ से शुरू होंगी और कहाँ खत्म ..जिसका कोई अंत नहीं है |
आज का वातावरण और हम लोग.....एक समय था जब लोगो को एक दूसरे को जानने की इच्छा .रहती थी ..उनको समझें और उनके करीब आने की जिज्ञासा हम सब को करीब से किसी सूत्र में बांधे रखती थी |पर आज इस आधुनिकता के माहौल में सब कुछ बदल सा गया है | लोगो की सोच ...रहन सहन ...यहाँ तक की खान पान की सब आदते पहले वाले वक़्त से जुदा है ...यहाँ तक की रिश्तो को देखने और परखने तक का नजरिया बदल गया है |
जिंदगी में कुछ सवाल अनसुलझे ही रहें तो बेहतर है ......और हम भी यही चाहते है की ये सवाल अनसुलझा ही रह जाएँ ,क्योंकि कहीं ना कहीं हम भी जानते है की अगर इस प्रश्न को सुलझाने की कोशिश की तो हम सबकी जिंदगी ही उलझ के रह जाएगी ...नतीजा रिश्ते बिखरेंगे ...सपने टूटेगें...और परिवार के रस्ते अलग अलग हो जाएँगे |

पारिवारिक पृष्ठभूमि....कहने को बहुत भारीभरकम शब्द .....दिल और दिमाग से माने तो कोई ना कोई इस बोझ तले खुद को महसूस करेगा .....और सबसे पहले दिमाग में उठाने वाले प्रश्न ये ही होंगे की ...घर पे बड़ो के बुताबिक चलने की बंदिश .....अपने अधिकारों का हनन ....पर्दा प्रथा .....कोई रुदिवादी परिवार | क्या इन्ही विचारो से एक परिवार की नीव पड़ती है ? कहने वाले और मानने वाले ऐसा मानते है ....पर जहाँ तक मैंने आज की युवा पीडी को समझा है ...उनकी सोच हम सब से अलग है ..सबसे जुदा | आज का वातावरण आज़ादी के साथ साथ खुले विचारो को ज्यादा महत्व देता है |किसी भी पारिवारिक पृष्ठभूमि.की नीव ..परिवार के लोगो की मानसिकता पर निर्भर करती है कि वो अपने परिवार पर और घर के हर सदस्य पर कितना विश्वास करते है |किसी भी परिवार के लिए उसकी सूख समृधी आपसी विचारो के तालमेल से आती है ...एक ऐसा विश्वास जो घर का मुखिया अपने बच्चो की सोच में परिवर्तित करता है ...तब सही मायनों में एक अच्छे परिवार की परिभाषा या पृष्ठभूमि तैयार होती है |

आज के प्रशन के मुताबिक किया गया सर्वेषण....जिन जिन दोस्तों से ये प्रश्न किया गया..... पारिवारिक पृष्ठभूमि यानि फैमिली बैक ग्राउंड शादी के लिए या किसी को जानने के लिए कहाँ तक औचित्य रखता है ?........यहाँ मै अपने दोस्तों के जवाब से सहमत हूँ ..उनकी विचारधारा ....से खुद को अलग नहीं कर पाई हूँ और लगभग ....सबका एक ही जवाब आया की हम सब अपनी जिंदगी में ,अपने परिवार से...उसके दिए संस्कारों से बंधे है ..और इस बंधन में हम कोई घुटन..कोई बंदिश महसूस नहीं करते ..और आज के माँ बाप होने के नाते हम सब ये ही चाहते है कि ये ही संस्कार हम अपनी नई पीढ़ी को देकर जाये
ताकि वो खुद से अपने विचारो से एक नई पृष्ठभूमि को जन्म दे | पीढ़ी आज की हो या बीते वक़्त की ....इज्ज़त की नज़र से उसे ही देखा गया जो अपने संस्कारों से फलीभूत हुए और जिसका लाभ सबको मिला | जब एक नया रिश्ता जुड़ता है ..वो चाहे शादी के बंधन का हो या दोस्ती का ..सबसे पहले संस्कारों की ही चर्चा की जाती है |संस्कार से फलीभूत परिवार को आज भी इज्ज़त की नज़र से देखा जाता है ...हर जगह उसकी चर्चा की जाती है | आज कल के वक़्त में भी एकल परिवार और सयुंक्त परिवार से आई लड़की और लडको में ये अंतर देखने को मिल जाएंगा .....जहाँ एकल परिवार के बच्चे जिद्दी ,मनमोजी और एकांत प्रिये होते है .. वहीँ सयुंक्त परिवार से सम्बन्ध रखने वाला बच्चा सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है ..उसके लिए परिवार के हर सदस्य की ख़ुशी उतनी ही मायाने रखती है ..जीतनी की उसकी अपनी ख़ुशी |
जिंदगी में कुछ सवाल अनसुलझे ही रहें तो बेहतर है ......और हम भी यही चाहते है की ये सवाल अनसुलझा ही रह जाएँ ,क्योंकि कहीं ना कहीं हम भी जानते है की अगर इस प्रश्न को सुलझाने की कोशिश की तो हम सबकी जिंदगी ही उलझ के रह जाएगी ...नतीजा रिश्ते बिखरेंगे ...सपने टूटेगें...और परिवार के रस्ते अलग अलग हो जाएँगे |

अंत में ये ही कहूंगी की ..सोच अपनी अपनी ....पसंद अपनी अपनी |

(((अंजु चौधरी.......(अनु))))