Saturday, May 25, 2013

मज़ाक

(जीवन और आत्‍महत्‍या के बीच झूलता एक मासूम जीवन ...मासूम इस लिए कि  वो ये नहीं जानता की आत्महत्या करने वाले ने ऐसा किया क्यों ?)


क्या मज़ाक समझा है
जिंदगी और मौत के बीच
एक पल की नाराज़गी
इस जिंदगी से
और जीवन समाप्त
क्या ये मज़ाक लगता है |
 
यूँ ही ऐसे ही
अपने जीवन को
एक ही झटके में
खत्म  कर देना |
 
हर किसी की जिंदगी
दो-राहें पर आती है
हर किसी को जिंदगी की
सोच सताती है
ऐसे यूँ ही लड़ने की बजाए 

हथियार डाल देना
और मौत की
बाँहों में खुद को
सौंप देना
क्यों मज़ाक समझ लिया तुमने ?

गर्म और सर्द हवाएँ
राह की पथरीली राहें
रोकेंगी हर बढ़ते कदमो को
निराशा हाथ लगेगी
जीवन से मन उचाट होगा
तो क्या उसका एक मात्र उपाय
तुमने...आत्महत्या सोचा है
तो क्यों मज़ाक समझा लिया 
तुमने अपनी ही जिंदगी को ?

अपनी ही भूले,
अपनी ही गलतियों को
मेरे सर मथ देना
मज़ाक समझा लिया तुमने |
 
मेरी ये जिंदगी
तुम्हारी वजह से नर्क हुई 
मेरी सोच को
अपने अधीन करना 
मेरे जीवन को
एक कठपुतली की तरह
नचाना
और फिर एक ही
झटके में
अपने जीवन की डोर को
आत्महत्या की रस्सी से
झुलाना 
एक ही पल में 
तुम्हारी मौत ने मुझ ही 
मज़ाक बना डाला |
तुम तो चली गई
तुम संग ना रिश्ता कोई
ना बंधन में बांधा हूँ
फिर भी
जब मैं खाली बैठा
ये ही सोचता हूँ
कि तुमने ऐसा क्यों किया
तो मेरी सोच बस मुझे ही
परेशां करने चली आती है
और तुम्हारी  कही
हर बात मुझे
नुकीले कीलों सी चुभती है
पर आज तुम्हारे मृत शरीर
या
मुझे मिले मृत्य दण्ड के समक्ष
ऐसा लगता है कि
निरापराधी  होते हुए भी
मेरी उच्च-पदासीन
इस जिंदगी ने ही
मुझ संग 

एक घिनोना मज़ाक किया है ||

अंजु(अनु)

Friday, May 24, 2013

यूँ ही


लेते ही नाम उसका
ख्याबों की ज़मी पर
उगते हैं इस दिल
के अरमां
जिसकी फसल
बोते ही
वहाँ कांटे ही कांटे
नज़र आते हैं ||

कांटो की
नुकीली चुभन की
अदा भी निराली
देखी
जो,दर्द तो देते हैं
पर उसके दिए ज़ख्म
दिखते ही नहीं ||

अंजु(अनु)

Tuesday, May 14, 2013

यादगार ........(एक कहानी)

मै 'पवन' एक छोटे से शहर का जानामाना व्यापारी हूँ ,मेरी मेरे शहर में बहुत इज्ज़त है |सभी लोग मुझे मेरे नाम से पहचानते है |शहर में चलने वाले क्लबों का स्दयस..या वहां की कार्यकारणी समिति का मेंबर हूँ | शहर में दो गुटों की वजह से कर्फू लगा हुआ है और मुझे घर बैठाना पड़ा ,इस पे सबसे बड़ी बात ये की दिव्या कर्फू से पहले की अपने मायके गयी हुई है और अब वह वहां से आ भी नहीं सकती जब तक यहाँ कर्फू लगा हुआ है |बच्चे साथ है ,पर मेरे पास नहीं रहते सारा दिन ,अपने पढाई या किसी दूसरे कामो में वस्त रहते है | मुझे ऐसा लगने लगा है जैसे इस भरेपूरे घर में मै अकेला पड़ गया हूँ कोई नहीं है मेरे लिए ,हर कोई अपने आप में व्यस्त है |आज मुझे दिव्या की बहुत याद आ रही है ,आज उसकी क्या अहमियत है मेरे जीवन में मुझे समझ में आने लगा है |पर इस वक़्त दिव्या को कहा से ले लार आऊ|

मै उम्र के उस दौर से गुजर रहा हूँ ,जंहा..मुझे ऐसा लगने लगा है कि हर इंसान अपने आप को अकेला और असुरक्षित महसूस करता है |ये उम्र ऐसी है जंहा हमहे अपने जीवन साथी कि सब से ज्यदा जरुरत होती है |बच्चे बड़े होते है और अपने अपने कामो में व्यस्त होते चले जाते है |मुझे मेरी पत्नी...दिव्या ने बहुत बार समझाने कि कोशिश कि ''पवन मेरे लिए और अपने घर के लिए वक़्त निकालो ..नहीं तो हम दोनों ही नहीं ..बल्कि तुम बच्चो से भी दूर हो जायोगे ''.......पर मैंने कभी उसकी किसी बात को गंभीरता से नहीं लिया | मेरी सोच है कि थमने का नाम ही नहीं ले रही ,मुझे अपनी हर वो बात याद आ रही है जिसे दिव्या माना करती थी और मै अपनी ही जिद्द में करता चला जाता था कि ये काम दिव्या ने मुझे माना क्यों किया .....कितना बचपना था मेरे अंदर | मै कभी दिव्या को समझ ही नहीं पाया की वो आखिर मुझे से चाहती क्या है ...दिव्या ने हर वक़्त मुझे से अपने लिए थोडा सा वक़्त माँगा जो मै कभी उसे दे नहीं सका ..पैसा कमाने और ..ओरो से खुद को ऊपर साबित करने के चक्कर में मै हमेशा भागता ही रहा ..कभी नहीं सुनी दिव्या के दिल की आवाज़ ....
सोचा ना था कभी की ऐसा भी दिन आएगा की मुझे अपने लिए सोचना पड़ेगा ,ये वक़्त भी ऐसा है की जब बच्चे बड़े है और अपना काम खुद कर लेते है और मेरे पास वक़्त ही वक़्त है जो काटे नहीं कटता |
बहुत बार ऐसा कुछ करने का सोच जिस में मन लगा रहे पर आज तकदिव्या ने कुछ करने नहीं दिया ,और अब आदत नहीं रही कुछ अलग कर ने की| बहुत बोर सा लग रहा था ऐसे खाली घर पे बैठना..समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ ...हर चीज़ को उलट पलट के देखने लगा ........तभी दिव्या की डाइरी मेरे हाथ लगी ....पहले तो उठा के रख दी ..फिर सोचा पढूं तो दिव्या हर वक़्त क्या लिखती रहती है .......ये क्या ....इस में तो उसकी लिखी हर कविता है जो वो मुझे हर बार पढने को कहती थी ..पर टाइम ना होने का बहाना बना मै उसे हर बार मायूस कर देता था..पर आज वही डायरी मुझे बहुत अपनी सी लगी ..उसे सीने से लगा पहले तो मेरी आँखे भर आई ..फिर खोल के पढने लगा |आज मुझे दिव्या का लिखा हर शब्द बहुत अपना सा लग रहा था ऐसा लग रहा था जैसे मै दिव्या को ही पढ़ रहा हूँ .........जैसे की कवितायों को पढने के बाद मैंने पन्ना पलटा तो वहा किसी प्रीत का नाम देख ऐसा लगा जैसे मैंने सब कुछ खो दिया अपनी जिन्दगी में |पन्ने के शुरुआत में ही .........पर आज मै अपनी दिव्या को पढना चाहता था इसलिए उसने जो भी लिखा वो मैंने पढना शुरू किया .........तो वह .पढ़ते पढ़ते जब आखिरी पन्ने पे आया तो वहा किसी प्रीत का नाम देख ऐसा लगा जैसे मैंने सब कुछ खो दिया अपनी जिन्दगी में |पन्ने के शुरुआत में ही .......''.प्रीत ''...बहुत बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था .......पर आज मै अपनी दिव्या को पढना चाहता था इसलिए उसने जो भी लिखा वो मैंने पढना शुरू किया ..
मेरे नाम को संबोधित करते हुए लिखा था...
' पवन'...
आज मै आपको अपने बारे में वो सब कुछ बताना चाहती हूँ जो मै सोचती हूँ .....आप जानते है की हमारी शादी मेरी पढाई की बीच में ही होगई ..कालजे भी मैंने शादी के बाद पूरा किया और मैंने कुछ ऐसी भी पढाई नहीं की हुई की मै अपने को कुछ काबिल मानू| सिंपल सी बीए..और वोह भी बिना इंग्लिश के ...जिस की आज कोई किम्मत नहीं है अनपढ़ की श्रेणी में मानती हूँ | अपने आप को ..किसी से बात करने के लिए सौ बार सोचना पड़ता है मुझे |हर बार एक हीनभावना से घिर जाती थी मै...वक़्त बदला .शादी हुई और वक़्त के साथ बच्चे भी अपने वक़्त पर हो गए हमारे |सारा वक़्त घर के काम और बच्चो की देखभाल में बीतने लगा ...कभी कभी तो घर का काम इतना होता था की रोते बच्चो की आवाज़ भी कानो तक नहीं पहुँच पाती थी और मै कुड़..कुड़ करती सारा काम करती जाती थी | हर वक़्त मन भारी सा रहता था ..अपने बारे में कुछ सोच सकूँ इतना भी वक़्त नहीं था मेरे पास | बहुत बार पवन तुम से भी कहासुनी हो जाती थी ..जब भी घर के बारे में...( सास या जेठानी की बात ) बात करनी चाही तुम नाराज़ हो गए ..तुम्हारी ये नाराज़गी मुझे चुप करवाती चली गई और मै अपनी बात कहने के लिए घुटने लगी ..ऐसा कोई नहीं मिला जो मेरे दिल की सुने ..जो मुझे समझे जो मुझे जाने..मेरे संग बाते करे..और थोडा वक़्त बिताये ...तरसती रही हर छोटी इच्छा लिए ... |
बच्चे बड़े हो गए और अपने रस्ते पे चल पड़े ..और पवन आप अपने मे ही वयस्त थे |आपको अपने काम से कभी फुर्सत नहीं मिली ........पवन ऐसा नहीं है कि आप ने मुझे प्यार नहीं दिया.....बहुत प्यार मिला मुझे आप से और मेरे बच्चो से ..घर पे मुझे कभी वो इज्ज़त नहीं मिली जो एक घर की बहु को मिलनी चाहिए थी....कदम कदम पे आपने मुझे संभाला......पर आपसे वो जुडाव महसूस नहीं कर सकी जो एक औरत आदमी से करती है .....जब भी मै रोई..आपने कभी चुप नहीं करवाया ..जब भी मै रूठी ..अपने कभी मुझे नहीं मनाया .....आपके मन मुताबिक आपको प्यार करती रही ..पर जब भी मेरा प्यार करने का मन हुआ ..आपने मुझे दुत्कार दिया ..और मै रोती हुई..मुह मोड़ के सारी रात रोती रही और आप गहरी नीद में सोते रहे|
फिर भी एक पत्नी को जो प्यार अपने पति से मिलना चाहिये वो मुझे भी मिला ..और मै इस में ही बहुत खुश थी ....बहुत खुश .....पर वक़्त के साथ अकेलापन और आपका काम बढता चला गया ..आप और व्यस्त होते गए ...... पर मै कभी भी आपसे दूर नहीं हुई ..आज भी आपको उतना ही मान सम्मान देती हूँ ..जितना की शादी के वक़्त ..आप आज भी मेरे दिल के बहुत करीब है ..मेरे है ..मेरे घर की धूरी है आप ..आप से मेरा वजूद है इस जहान में ...आपसे अलग होने की सोच भी नहीं सकती.....बस अब मौत ही मुझे आपसे अलग कर सकती है .........
........तभी मेरी मुलाकात प्रीत से हुई ..प्रीतम नाम है उसका ..मेरे से १ साल छोटा है वो ...पर उसकी बाते उसका अपनापन मेरे दिल को छू गया ..पहले पहले तो मुझे ऐसा लगा की ये इन्सान अपनों में अकेला है ..इसे अपनेपन की बहुत जरुरत है जो मै उसे अपनी बातो से देने लगी..पर नहीं जानती थी की इस से बाते करने की ऐसी आदत पड़ जायेगी की ये मेरी जरुरत बन जायेगा |हर ख़ुशी और दुखा बँटा मैंने प्रीत के साथ...पर कभी उसने या मैंने अपनी हदे पार नहीं की ...एक ऐसे प्यार को हमने साथ जिया जिसको एक लड़की अपनी जवानी के समय जीती है ..प्रीत ने मुझे हर उस एहसास से अवगत करवाया जिस से मै अनजान थी |
प्रीत से मेरी मुलाकात कहाँ ओर कैसे हुई ये मै आपको नहीं बता सकती ...हां पर इतना जरुर कहूँगी की प्रीत ओर मेरा रिश्ता इतना पवित्र है की हम दोनों के मन में सिवा प्यार के ओर कोई भाव नहीं आया | हमने घंटो बैठ के बाते की है ....पर कभी एक दूसरे से मिले नहीं ..देखा तक नहीं हमने कभी...कुछ महीनो की मुलाकातों ने ओर बातो ने हम दोनों को बहुत करीब कर दिया ......पर पवन ये भी उतना ही सच है की हमने कभी अपने परिवारों को दाव पर लगा के दोस्ती नहीं की ...उसके और मेरे लिए परिवार ही सर्वोपरी रहा है ....बस हमहे बाते करना और एक दूसरे का साथ देना अच्छा लगता है क्यूंकि वो मुझे सुनता है और मै उसे .....|पवन ये भी सच है की मै आपको अपना लिखा पढने को बोलती थी तो आप मुझे मना कर देते थे...मै मन ही मन सोचती थी की कोई तो ऐसा हो जो मेरा लिखा पढ़े ओर मुझे उस में क्या कमी है ये बता दे..ताकि मै अपना लिखा ओर सवारं सकूँ ....पर आपने कभी मेरी किस बात की तरफ गौर नहीं किया..मै मन से अकली होती चली गयी ..... .उस खाली वक़्त में मुझे प्रीत का साथ मिला| मेरे लिए प्रीत का साथ एक वरदान साबित हुआ ....मन खुश रहने लगा अकेलापन दूर होता गया ओर लिखने की ताकत फिर से आ गयी ..अपनी सोच को मै कागज़ पे उतारती गयी |
अपनी लिखी हर कविता और कहानी प्रीत को सब से पहले देती पढने को ...बहुत बार वो उसे ठीक करके मुझे लौटा देता ....आज मुझे ये कहने मे ज़रा भी शर्म नहीं है कि.....मै प्रीत को बहुत प्यार करती हूँ और उसकी दिल से इज्ज़त करती हूँ ......एक ऐसा प्यार जिसको आप या कोई नहीं समझ सकता |ये हर इच्छा ..हर ख्वाईश..हर दुआ से ऊपर है ..|
जहाँ प्यार की बात आती थी..कितनी आसानी से दिव्या ने प्यार का इज़हार किया था...दिव्या का दिल प्यार से भरा पड़ा है ये तो मै जनता था..पर वो प्यार के हर रूप को इतने अच्छे से समझा गयी की ....प्यार सिर्फ वासना नहीं ...वो मीरा भी है ...प्यार माँ भी है...माँ रूपी प्यार बांटने के लिए आपका उस उम्र का होना जरुरी नहीं ...प्यार एक सखा और सखी ..प्यार एक दोस्त का दोस्त से जो सिर्फ बातो को ही खुद के भीतर जी के ... अनुपम सुख की अनुभूति का एहसास कर लेते है .......प्यार जो साथ देता ..खुद के होने का एहसास देता है ....प्यार जो हँसना सिखाता है ..प्यार को देना जनता है ...भले ही आप अंदर तक खाली हो ..पर उस प्यार के एहसास को आप अपने अंदर तक जी जाते हो ...........
जैसे जैसे डायरी पढता गया मै अपने आप को भूलने लगा.. ऐसा लगा मेरे सामने दिव्या बैठी है और मेरे संग बतिया रही है..कभी उसकी लिखी बातो पे खुदबखुद हंस पड़ता और कभी मेरी आँखे नाम हो जाती ..कैसी दर्द से भारी कवितायों का लेखन किया था उसने |

बड़ी उदास है ये ज़िन्दगी
बेमन से भटकती ये ज़िन्दगी
कुछ तलाशती...कुछ पा के खोने का दर्द
झेलती ये ज़िन्दगी ...
सच्चा साथ पाने को तरसती ये ज़िन्दगी
भटकती ज़िन्दगी को ना किनारे अच्छे लगे ..
ना उठती लहरों का शोर ...
फिर भी एक साहिल तलाशती ये ज़िन्दगी


इस से आगे मै ऑर कुछ पढने की हिम्मत नहीं कर सका .....आज दिव्या मेरे पास नहीं है ....;'क्यों नहीं हो दिव्या तुम आज मेरे पास ...आज तुम्हारा माथा चूम के माफ़ी मांगने का मन हुआ है की मेरी लापरवाही की वजहें से तुम्हे किसी ओर के सहारे की जरुरत पड़ी ...क्यों मै वो नहीं दे पाया जो तुमको पसंद था'' ...आज मुझे अपने आप से नफरत होने लगी थी |

"अब मै एक पल की भी देरी नहीं कर सकता मुझे आज ही खुद जा के दिव्या को अपने घर लाना होगा ...बस बहुत रह लिया तुमने दूसरो के सहारे ....अब उसे अपने पवन के पास ही रहना होगा ..." सोचता हुआ जैसे ही घर से निकलने के लिए मैंने दरवाज़ा खोला ...सामने दिव्या को देखते ही ...मेरी आँखों से खुदबखुद छलकने लगी और आगे बढ के कब उसे गले लगा रो पड़ा मुझे खुद भी पता नहीं चला |दिव्या मेरी हालत पे बहुत अचंभित सी खडी थी ओर एकटुक मुझे देखे जा रही थी |मै कुछ नहीं बोला और एक पर्ची अपने हाथ से लिखी हुई दिव्या के हाथ में थमा दी ..और वो उसे खोल के पढने लगी.....जिस में मैंने लिखा था .."दिव्या"
प्यार पुण्य है पाप नहीं
प्यार अहसास है वस्तु नहीं
प्यार भावना है सामग्री नहीं
प्यार कशिश है कोशिश नहीं
प्यार विश्वास है अविश्वासी नहीं
प्यार निस्वार्थ है स्वार्थी नहीं ........


पढ़ते ही उसकी आँखों से बहने लगे ......और उसने कहा ...पवन आज के दिन आपने मुझे ये तोह्फा देके हमारी शादी की २१ वी..सालगिरा को यादगार बना दिया |
(...कृति ...अंजु चौधरी ....(अनु )

Saturday, May 11, 2013

मेरी माँ






जैसे सत्य है रवि,
रवि की दीप्त किरणें भी
जैसे सत्य है बादलों की
श्यामली माया
सत्य है उसकी बरखा भी
सत्य है व्यवधान अंतर
जैसे सत्य तम भी उजाला भी
वैसे ही सत्य माँ
और उसकी ममता भी
अटल सत्य है तेरा और मेरे साथ
तुम मेरी सखी-सहेली भी
और खुद में पूर्ण और सम्पूर्ण भी
मेरी माँ...............||




बहुत  खुशनसीब हूँ की शादी की २५ वीं सालगिरह पर माँ हमारे साथ थी अपने आशीर्वाद के साथ



 मैं और मेरे बच्चे ......(मैं भी अब माँ की भूमिका में .....कल, आज और कल )


अंजु(अनु)