Wednesday, October 1, 2014

कत्ल



‘’ये अमीरों की जमात भी बड़ी अजीब सी होती हैं |इन लोगों की हर बात आम इन्सानों से अगल ही होती है|घर के रहन सहन, उनके कपड़े, उनके घर के झगड़े, जैसे हिन्दी सीरियल में दिखाये जाते हैं उनसे एक दम अलग .....यहाँ इन घरों में कोई ऊँची आवाज़ में बात नहीं करता |दो-चार गालियाँ इंग्लिश में निकाली और शटअप कहते हुए अपने अपने कमरे में चले जाते हैं....
ओर तो ओर बहुत से अमीर ऐसे है जो इन्सानों से ज्यादा अपने पालतू कुत्तों से प्यार करते हैं| हम सब से अच्छे तो ये कुत्ते ही हैं |भले ही बेचारे घर में बुजुर्ग अकेलेपन और बेचारगी से दम तोड़ दे, पर उनका डार्लिंग कुत्ता / कुत्तिया अकेली नहीं होनी चाहिए | 
कभी कभी तो मन में आता है कि मैं भी ऐसे ही किसी अमीर के घर का कुत्ता होता तो खूब मज़े में रहता....यार तंग आ गया हूँ ये घर घर में नौकर का काम करते हुए |वो साल कुत्ता होते हुए मालिक के साथ चिपक कर एक ही बिस्तर पर सोता है...वो भी ए.सी में और यहाँ हम साले सारा दिन घर का काम करते हैं तब भी इस उमस भरी गर्मी में पंखे के नीचे बैठने को तरस जाते हैं | खेर मैं अपनी क्या बात कहूँ, इस घर की असली मालिक भी एक इज्ज़तदार जिंदगी,अच्छे खाने,अपने कमरे और ए.सी के लिए तरस गया है, उस बेचारे को भी उसके बेटे ने हम सब के बीच सरवेंट क्वाटर में फेंका हुआ है |क्या फायदा, इतना पैसा होते हुए भी वो हम नौकरों से भी बुरी हालत में है | तरस आता है उस बुड्ढ़े पर|’’

मैं अपनी ही स्पीड से काम करता जा रहा था और अपने अंदर का गुस्सा सब्जी काटते हुए, अपने साथी नौकर से बात करता जा रहा था....मैं भी क्या करता, किस से अपने मन की बात करता, तभी तो यूं ही अपने मन की भड़ास कटती हुई सब्जियों पर निकाल लेता हूँ .....यूं लगता है जैसे मैंने सब्जी काटते हुए किसी का क़तल कर दिया हो |कम से कम मैं इन अमीरों से तो बहुत बेहतर था जो अपने घर के जिन्दा इंसानों को खुद से अलग कर, पल-दर-पल अपनी खोखली अमीरी के चलते वो अपने ही घर के बुज़ुर्ग का कत्ल तो नहीं कर रहा था |