Saturday, August 25, 2012

एक नई भोर



एक नई भोर हुई सी ....

ये दिल भरा भरा सा
इस दुनिया की चालों से
डरा डरा सा ,अनजानी राहों पे
फिर भी कदम बढ़ रहे
मंजिल की ओर |

मुख मद्धम मद्धम
आँखों की चमक है खोई खोई
झुकी झुकी है नज़र
अनहोना ना देखे कुछ 

फिर भी  बेगाने हैं लोग बहुत |

हां ,दूर कहीं एक आस
जगी जगी सी
उम्मीदों की किरणे हैं
फैली फैली सी
उसकी इक रोशनी मुझे
अपनी ओर खींचती हुई सी |

अब ये दो नयना भरे भरे से
एक  विश्वास की डोर से
बंधे बंधे से
एक नई भोर की लाली
अभी अभी उभरी सी

 इक नई मंजिल की ओर
कदम  बढ़े बढ़े से ||

अंजु (अनु)

Saturday, August 18, 2012

क्या हैं आप सबकी पहली सोच ....इस विशालकाय वृक्ष को देख कर .....



मेरे दिल्ली वाले घर के सामने का एक विशालकाय वृक्ष ,जो मेरे घर की तीसरी मंजिल से भी ऊँचा हैं ...जब इसे मैंने अपने मोबाईल वाले कैमरे में कैद किया तो ...मुझे रामायण और महाभारत सीरियल याद आ गए ....उस में इस तरह के विशालकाय वृक्ष दिखाए जाते थे (आज भी सीरियल आने पर हम देखते है)...मुझे पहली नज़र में ये किसी दैत्य से कम नहीं लगा ....उस दिन हवा बहुत तेज़ थी ...और बरसात भी हों रही थी ...आसमां देखने में काले बादलों से घिरा हुआ था ...और ये वृक्ष ज़ोरो से हिल रहा था ...आप लोगों की क्या सोच हैं इसे पहली नज़र देखने के बाद ||

अंजु (अनु)

Wednesday, August 15, 2012

हाय री शराब देवी !




आज सुबह नाश्ते की मेज पर जब परिवार में बातचीत का दौर शुरू हुआ तो ...एक बात सुनने को मिली ...वो बात कुछ अजीब ना होते हुए भी कुछ अजीब सी थी .पति देव ने बताया की ..दुकान के दो लड़के अपनी कमेटी छुडवाने के बाद खूब शराब पी कर नशे में धुत ...किसी ट्रेन में सवार हुए ...और जब उनको होश आया तो अपने आप को ..मुंबई में पाते हैं ....पर इस बात को सुनते ही मैं सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या शराब का नशा इतना था कि वो दोनो ये नहीं जान पाए की वो दोनो कहां और किस ओर जा रहे हैं  और क्या ये नशा उनका २४  घंटे तक रहा होगा  ...कि उन्हें ये होश ही नहीं की वो लोग हैं  कहां ? इस दौरान उनके परिवालों पर क्या गुज़री होगी ....ये जब सोचने लगती हूँ तो ऐसा लगता है कि या तो वो दोनों झूठ बोल रहे हैं ....या फिर ऐसा कुछ हुआ हैं जिस से वो भाग रहे हैं ...पर बात जो भी हो परिवार में अपने बच्चों के लिया माँ ही सबसे पहले और सबसे अधिक परेशां होती है ...क्या आज के बच्चे (खास कर लड़के ) इतने निरमोही है कि  वो अपने परिवार के बारे में ...इस शराब के आगे कुछ सोचने समझने के काबिल नहीं रहते ....शराब के स्वाद में ऐसा क्या है ..जो  आज की युवा पीढ़ी इस ओर बड़ी तेज़ी से आकर्षित हो रही है ...बड़े शहरों में तो और भी बुरा हाल है ...अब तो हर टी.वी सीरियल में शराब को खुलेआम पीते हुए दिखाया जाता है ....वो भले ही कोई लड़का हो ,आदमी या जवाँ होता कोई बच्चा ...लड़के लड़की में भेद खत्म हो गया है शराब के मामले में ..बेशर्मी की हद तक अपने समाज में इस शराब ने अपनी पकड़ बना ली है ...ना पीने वाले को पिछड़ा हुआ और बेचारा समझ लिया जाता है.....

हाय री शराब देवी !
कमाल है तेरा आकर्षण
कमाल है तेरी शक्ति
उनके लिए ...
जग में नहीं कोई तुझ से बढ़ कर भक्ति
ये भक्त तेरे ,तेरे ही गुलाम हैं
नशे में धुत ,
नशे के घोड़े पे सवार हैं
रिश्तेनाते ,जीवन का कोई मूल्य नहीं
इनके वास्ते ..
तू साकार मूर्ति यमराज की
फिर भी होती है तेरी भक्ति
तू तो है बड़ी कमाल की
जिगर को लगाती आग है

फिर भी इंसा के लबों के पास है
हर रोगों की उत्पादक ,
समस्त अच्छाईयों की नाशक
फिर भी तू सब में ...महान है
हे-शराब देवी ..
धन्य है तेरा नशा -धन्य है तेरा आकर्षण !!

अंजु(अनु)

Saturday, August 11, 2012

स्वंत्रता दिवस ....१५ अगस्त

अपनी आज़ादी पर अपने ही कुछ विचार ....(मन का मंथन )
क्या ये है अपनी सच्ची आज़ादी ??



कैसी आज़ादी है ये ...कैसा है इसका स्वाभिमान ...जहाँ मान सम्मान का ही कोई अता-पता नहीं है
हमारे देश के स्वतंत्रता सैनानियों ने देश की स्वतंत्रता के लिए आज़ादी की लड़ाई लड़ी ताकि अपने देश से ..विदेशी हुकूमत यहाँ से चली जाए और सामाजिक क्रांति के द्वारा देश का  आर्थिक ,सामाजिक और राजनैतिक विकास हों |उनकी मंशा थी ,देश का अंतिम व्यक्ति की भी देश के विकास की मुख्यधारा में उसकी सांझेदारी हो ..पर आज़ादी के ६५ साल के बाद ..आज जो इस  देश की हालात हैं वो किसी से भी नहीं छिपा है ...जहाँ एक और विकास हुआ है वही दूसरी और सरकार की  मनमानी दिनोदिन बढ़ी है ...वक्त दर वक्त प्रशासन और प्रजा में दूरी बढती जा रही है |झूठ ,अन्याय ,अनीति व भ्रष्टाचार राष्ट्रीय व्यक्तित्व के ही अंग बन गए हैं .....कहने को तो हम आज से ६५ साल पहले आज़ाद हो गए ....अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान तो छोड़ दिया ....पर वो हम को गुलामी का पाढ़ पढ़ा कर चले गए ...आज देश के किसी भी हिस्से पे नज़र डालो वो ..हिंसा ,अराजकता ,तनाव और खुद में स्वार्थपरता लिए जी रहा है आज का आम इंसान इसी के दबाब में अपनी जिंदगी गुज़ार रहा है |सामान्यतःआम आदमी स्वैच्छा से भ्रष्टाचार करना नहीं चाहता ,न  ही वह झूठ फरेब में पड़ना चाहता है पर सरकार की नीतियों से परेशां या लाचार होकर अनीति और असत्य की दलदल में फंसता हैं |आज जहाँ एक और विकास बहुत तेज़ी से हो रहा है ...वही दूसरी और आम जनता पर टैक्स का बोझ दिनों दिन बढ़ रहा है ...विकास दर महंगी होती जा रही है ...आम इंसान की जरुरत का सामान और उसका मूल्य आसमां छूने लगे हैं ...क्या ये ही हैं हम लोगो की सच्ची आज़ादी ...जिसके लिए हम लोगो के स्वतंत्रता सैनानियों ने एक लड़ाई लड़ी थी ....हर राज्य और उसके शहर ,हर सड़क आज की औरत के लिए असुरक्षित है ,कन्याभूर्ण हत्या जोरो पर हैं ...हर राज्य जातिवाद और आरक्षण की आग में जल रहा है ...हिंसा का तांडव खुलेआम हो रहा है ...वैश्विकरण की आड़ में खुले आम गाँव के गाँव खत्म हो रहे है और आधुनिकता के नाम पर  नंगापन परोसा जा रहा है..........आज जब भी कोई आवाज़ उठती है तो वो ये ही होती है ........
''हाय रे ..ये महंगाई डायन खाय जात है ''..कहने को तो सब ये कहते है की ये बापू का भारत हैं ...पर क्या ये अब वैसा ही है जैसा कि वो छोड़ के गए थे ?????
हे बापू !ये भारत तेरा प्यारा घर ,
आज चारो ओर से टूट फूट रहा है
और अपनी आभागी किस्मत पर
आँखों में आँसूं भर ,रो रहा है
और बापू ! तेरी सच्चाई ,अहिंसा की तो हत्या हो गई
और इस देश की शांति ना जाना
कहां खो गई ...
तेरी ही सीख को ,तेरे ही पुजारियों ने
भीख समझ कर फेंक दिया
और तेरे ही सिद्धांतों को ,तेरे ही शागिर्दों ने
भ्रष्टाचार की अग्नि में झोंक दिया
अब बोलो ....कि वो भारत अब कहां है
जिसे तुम ...आने वाली पीढ़ी के लिए
छोड़ गए थे ????


मेरा आज का भारत महान ,जहाँ की आज़ादी भी हैं गुलाम ||






( इस बच्चे को देखो ..जिसे आज़ादी का मतलब भी नहीं पता और वो राष्ट्रीय झंडा हाथ में लेकर बेच रहा है ये देखे बिना की सड़क पर कितना ट्रेफिक है )
Online edition of India's National Newspaper


अंजु (अनु)

Saturday, August 4, 2012

त्रासदी ...(बादल फटने की )


त्रासदी ...(बादल फटने की )

आज फिर बादल फटा

आज फिर किसी की
दुनिया उजड गई होगी
आज भी कई मासूम अनाथ
हों गए होंगे ..
और कई माँ बाप ...इस दुनिया में
अकेले रह गए होंगे ...

किसी का घर बह गया

तो किसी की दुकान...
कोई राह चलता नहीं
पहुँच सका घर अपने ..
हँसती खेलती ...बगिया
हर बार उजड जाती हैं
इस कुदरत के कहर से
आँखों के आँसूं अभी सूखते भी नहीं हैं
और हर साल एक नयी
त्रासदी चली आती हैं
लोगो को रुलाने के लिए
हर बार ,ये मानव लड़ता हैं
उस ईश्वरीय ..विपदा से
एक नयी ताकत से
बार बार हारने को ...

हर बार दर्द उभरता हैं

उनके ,अपनों की खोज में
हर दर्द बोलता हैं
एक नयी जगह की
तलाश में
हर दर्द ,प्रतिबिम्ब बन कर
रहा गया ,आने वाले कल का
हर दर्द ,एक प्यास जगा गया
उनके अपने जीवन के प्रति
हर दर्द ,दर्शाता हैं
विवशता उनकी आँखों में
दिखती जो नहीं अब कोई बची आस
इस बादल से गिरते पानी में
आ गई ये मौत
बेवक्त की रवानी में
अमीर गुज़रा,गरीब गुज़रा
ये नहीं देखा ,उस बादल से
गिरते पानी ने .....
वो तो बस सब कुछ
बहा ले गया अपने साथ
सबको कच्ची मिट्टी के घड़े समान
बिखर गई जिन्दगियाँ,
बिखर गए सबके अरमान
जो नहीं बिखरा ...
बस वही हैं इस कुदरत का चमत्कार ||

अंजु (अनु)