Monday, January 30, 2012

प्रतीक्षा .....................

प्रतीक्षा

हम तो इंतज़ार में बैठे रहे यूँ ही ,दिन भर
वो आए तो करीब मेरे ,पर बिन देखे कि
मेरी आँखों में इंतज़ार के आँसू भी हैं
उसने ना आने के सौ बहाने बताएँ,
पर ये नहीं पूछा कि ,तुम कैसे हो
मेरे ना आने पर ...|

ये जिंदगी हमसे इम्तेहान लेती रही
और हम इसको वक्त दर वक्त 

हम इम्तेहान  देते गए  
पर जिस दिन जिंदगी मिली हम से
तो उस ने ये तक नहीं पूछा 

कि
''तुमने इतने इम्तेहान दिए कैसे ''?

रोना चाहूँ ,तो रो ना पाऊं ,
कहना चाहूँ ,तो कुछ कह ना पाऊं
हैं जीना मुश्किल तो ,मारना और भी मुश्किल
इस मुश्किल दौर में ,मैं कहाँ जाऊं ?
दुनिया भर की बातों का उत्तर देता जाऊं ,
पर अपनों की कटाक्ष भरी बातों से
कैसे ,खुद को समझाऊँ?

बस वो देते हैं इती सी आज़ादी कि
मैं सज़ा लूँ कुछ अपने भी सपने अपने ही भीतर
पर नहीं देते वो स्वीकृति उन्हें 
सच करने की,
और बिस्तर पर पड़ा पड़ा
भांति भांति की कल्पनाओं में डूब जाता हूँ
और फिर ना जाने कब सो जाता हूँ ,

अपनी ''प्रतीक्षा'' की
प्रतीक्षा में |

अनु

Friday, January 27, 2012

बसंत के आने पर

                                    

( हरियाणा में पतंग बाज़ी के रूप में ...बसंत पंचमी  मनाई जाती हैं  ) 
बुढ़िया दादी .दोस्त पुराने ,
आँगन ,आँगन में वो छज्जे पुराने
आज नहीं हैं .....
मेरे यहाँ आने  पर |

रोशन सपने देख रहा था
मैं अपनी धुंधली आँखों से ,
था ,वही मोहल्ला ,वही शहर ,पर
यहाँ अब मेरा कोई नहीं था  ....
आज हैं बसंत ...पर मेरा आँगन  
बिन हुड़दंग ,सुना सुना सा हैं |
फिर भी ...
इस बसंत ...हर घर
हँसी ठिठौली नाच रही
यहाँ घर घर के आँगन में
आज भी वो ही शोर हैं ,
हर मुंडेर पर ,
उडती पतंगों का हैं नज़ारा ...
हर किसी के हाथ में डोर हैं
घर की माँ ...आज भी
बनाती हैं ..सबके लिए
वो साधारण सा खाना |
और देखो तो ,बेटा आज भी
दोस्तों संग अपनी ही छत पर
लगाता है महफ़िल ...
पतंग बाज़ी की 
आज भी ....
आई.....बो काटे एएएएएएएए
का शोर हैं छज्जे छज्जे पर ..और
फ़िल्मी गानों का आज भी वैसा ही दौर हैं
आया है बसंत ,
सज धज कर ,
मज़ा लुटाने को ....
 
भवरों  से कर रही तितलियाँ
नैन मटका .....छज्जे छज्जे पर
भाग गया हैं आज भी
सबका डर .....बसंत के आने पर | 
आज भी ...
ये तेरा ख्याल हैं या मेरी तमन्नाएँ 
जो मुझे यहाँ तक खींच के हैं लाई
याद हैं आज भी ...तेरी वो हँसी  
मुस्कुराती तेरी वो आँखे 
जो सिर्फ मुझे देखती थी 
छिप छिप के मेरे छज्जे पे
बसंत के आने पर ||   
अनु 

Sunday, January 22, 2012

शब्द और लिखना ...........अब ये ही जीवन हैं


(सबके साथ ... सांपला ब्लोगर मीटिंग के यादगार पल)


शब्द और लिखना ...........अब ये ही जीवन हैं



लिखना
उगना हैं एक विचार का ,
उगाना हैं ,शब्दों का
और इन दोनों के मेल से
अपने आप को
छिलने जैसा हैं
कि भीतर की हवा आर पार
हो सके
एक खिड़की तो निकल आए
मन की ताजगी के लिए
और मैं विचारों से ऊपर उठ जाऊं ...
शब्द ,
यौद्धा सी ताकत भरते हैं
मेरे मन में |

कोई नहीं पूजता यहाँ
धँसे हुए मस्तक को
मसल दिया जाता हैं
हर झुका हुआ सर
ऐसा कौन हैं जो ,
फूल की पलकें
काट कर बिछा देगा
आपके स्वागत के लिए |

पर
शब्दों और उनको लिखना
जैसे घने कोहरे से
सूरज का निकालना
हर पतझड़ अपनी राहें
खुद ही बदलती गई
कोमल पग धरते हुए
तूफानों की तरह ये आए हैं
मेरे इस सूने जीवन में ,
चट्टान सी छवि लिए
स्थापित हो गई
शब्दांश और रोशनी सी चकाचौंध की दुनिया में |

अनु

Friday, January 20, 2012

पहले और अब के कवि ...

कोई और फोटो नहीं मिली ...इसलिए सोचा चलो अपनी ही फोटो डाल दे....अरे हम भी तो आज के वक्त की कवयित्री हैं भाई .....


पहले और अब का कवि

चश्मा चढ़ाए
झोला लटकाए
चला रहा हैं पैदल ..
देखते ही लोग उसे
कह देते थे...
वो देखो कवि लगता है ||

आँखों में सपने हैं
सपने जो अपने हैं
देखने में वो साधारण हैं ,पर
उम्मीदे हैं ,आसमन से ऊँची
धरती
पर लगने वाली
हर फसल सी
हर शाम बीतती थी जिसकी

दोस्तों के बीच ,
सिगरेट के धुंए में
उसकी बत्तीसी चमकती थी |
बात बात में वो गंभीर
होता था
चश्मे को ठीक कर
हर बात में तर्क देता था
हर किसी की बात में
बीच में कुशल तैराक सा
कूद
पड़ता था ,
अपनी सांझेदारी निभा कर
खुद पर ही खुश हो जाया करता था
क्रान्ति की किताबे
गीता सी बांचता था ,
कभी कभी एक घूँट लगा कर
हसंता तो कभी रोता था ,
फिर भी कभी उसके परिवार का पेट
उसकी कविता नहीं नहीं भरता था .......

और आज का कवि ..
दिखने में स्मार्ट हैं
तेज .चुस्त ,फुर्तीला
किसी को भी अपनी बातों में
अपनी ही बुद्धिमता से
पछाड़ने की अक्ल रखता हैं
नाप तोल के बोलता हैं
हसंता कम ...मुस्कुराता
अधिक हैं
बाईचांस
..कविता करना
इसका सिर्फ शौंक हैं
जबकि नक़ल करना इसका धंधा हैं
क्यूंकि ये अक्ल का अंधा हैं
मुस्कान इसका
सबसे
बड़ा हथियार हैं
और
वो अपनी बात किसी पर थोपता नहीं हैं
बस कहता हैं ...
बात कही ,
कोई
माने या ना माने
ये सोचने की फुर्सत नहीं
बात की और,कट लिया ,पतली गली से ,
अपनी बातों से हर दिल में
बस जाता हैं ....
काम निकलने पर वहाँ से
खिसक जाता हैं
किसी का दिल टूटे तो टूटे
कोई सपना रूठे तो रूठे
पर
वो बुत खड़ा हैं
आज भी सरे बाजार में ,
किसी नए की तलाश में
ये आज का कवि .....|


अनु

Tuesday, January 17, 2012

आखिर कब तक ?


कन्या और भूर्णहत्या की मिली जुली सोच के साथ लिखी गई कविता ......बहुत दुःख होता है जब आज कल की पढ़ी लिखी लड़की जब इस तरह का कदम उठती है तो ...वो खुद एक कन्या हैं ...उसके बाद भी घर परिवार के दबाब में उस बच्ची को जन्म से पहले ही मारने पर मजबूर कर दी जाती हैं या ...खुद अपनी इच्छा से उसकी हत्या की भागीदार बन जाती हैं ............आखिर कब तक ?



ये ही दुनिया की है रीत है भाई
कन्या दान कर ,
सबने अपनी जान हैं छुड़ाई
प्रश्नों की आंधी में
उजड़ रहे खुद के ही रिश्ते

नहीं सोचा क्या बीतेगी बेटी पर
जब कहेगा उसको कोई पराया
शादी कर हर किसी ने
अपने सर का बोझ
समझ कर उसे हैं उतरा ......
नहीं पूछा उसे किसी ने
क्या सुख हैं-.क्या दुःख है तुझे
बस अपनी ही मस्ती में
चलते रहे समय की ढलानों पर |

समय की ढलानों पर
अब भी हर रिश्ता बदल रहा
मकड़ी के जालो -सा
हैं उसके मन में उलझाव सा
बोझिल हैं अपनापन ,
मन के सूनेपन में हैं
अब भी हैं भारीपन
उसके जीवन की
एक साँझ और बीती
इसी कन्या का इन्साफ तो देखो
अपनी ही कन्या से इसने
अपनी ही कोख में जान हैं छुड़वाई |
भ्रम के परिवर्तन में दब गई वो
बन कर माँ,बहन ,दादी ,नानी |

खुद तो बन कर आई है
किसी के घर की महारानी
उसके मन के चौराहे पर
खांस रहा उसके अपनों का घमंड
एक बेटे की चाह में
कर डाली उसने
अपनी ही गर्भ -कन्या
की हत्या ...

अब उलटे मुहं लटक रही
उसके मन की पीढा
नहीं जानती वो कि उसने
एक घर की नींव को हैं खोदा और
एक घर की वंश बेल को बढने से है रोका ||

अनु

Thursday, January 12, 2012

ये प्यार है या है एक भूल .......


ये प्यार है या है एक भूल .......

मैं तुम तक आती हूँ और तुम कोहरा बन ,
खुली आँखों से भी
नहीं दिखते
सूरज की पहली किरण
आने पर भी |

पर धीरे धीरे
मैं भी उबरने लगती हूँ
उस कोहरे के सच से
ना जाने कहाँ से
मुझे में ये सहनशक्ति
आ जाती हैं ..कि
मैं समझने लगती हूँ तुम्हारे ही
सच को .....
पर अब समझ आया है कि
तेरा ये इंतज़ार सिर्फ मेरा था
जो अब फ़िज़ूल है
कितना भी याद करूँ ,
पर ये प्यार है या है एक भूल .......
मैं उन लम्हो को लिए घूमती रही
जो मेरे थे, तुम्हारे थे, और हमारे थे
मैं सीने से लगा के रखती रही ,
उन लम्हों को जो
तुम को भी जान से ज़्यादा कभी प्यारे थे|
पर अब हर बात को समझने लगी हूँ
कि ...
मैं ,मेरे हिस्से की सज़ा
पहली ही पा चुकी हूँ
तुम मुझे छोड़ के मुझ से बहुत
दूर जा चुके हो
मुझ से दूर जाना तुम्हारे लिए
कितना आसान था
ये अब मैं जान चुकीं हूँ |

आज के बाद मेरी महक तुम्हारे
बदन से नही आएगी
अभी जिस्म दूर हुए हैं रफ़्ता रफ़्ता
तुम्हारी रूह भी मुझे भूल जाएगी
अब के जब जुदाई आएगी
तो मुकम्मल आएगी
क्यूँ कि
वो बाते भी तेरी थी ,
वो मुझे झुठलाना तेरा था
वो अपना बना कर
अपनापन जतलाना भी तेरा था
बन गई जब मैं तेरी तो ,
वो ठुकराना भी तेरा था
मैं अपनी वफ़ा का क्या इन्साफ मांगती
वो वादा भी तेरा था और
वादे को तोड़ कर चले जाना भी
तेरा था ..
मैं अपने दिल का इन्साफ
कहाँ मांगती तुझ से ,
मुझे छोड़ के चले जाने का
हर फैंसला भी तेरा था ?????

अनु

Sunday, January 8, 2012

द्वंद


भावनाओं के समंदर में ,
भावों की एक नदी बहती हैं
जो इंसान को देती हैं ...
अपने ही डर से डरने की वजह
एक सिकुडन,एक असुरक्षा का भाव
जो एक रेखा खींचती है
अपने ही मन के भीतर |

कितने पधारे ,कितने विराजे
कितने आये ,कितने गए
किस किस ने अपना स्थान बनाया ,
जाने कितने वर्षों से
इन इंतज़ार की घड़ियों में
पल पल हम अपने मन का
मंथन करते रहे
सोचते रहे ,एक ऐसा क्षण
जहाँ अपनी ही खुशियों का
हो कोई एक पल का स्मरण ?

खुद के विचारों के डाकू
डाका डालते हैं ,खुद के अस्तित्व पर
जो जीने नहीं देते ,
अहम के बादल कोहरा बन कर
दिल और दिमाग पर छाये रहते हैं
और झुकने नहीं देते ,
अपनों के आगे ..
विचारों का ना मिलना और
विचारों के द्वंद की तोड़-मोड
चलती रहती हैं
भीतर ही भीतर ,
जो अकेला कर के रख देती है
अपनों के बीच ,
उम्र के किसी भी पड़ाव पर ||


अनु