Tuesday, April 30, 2013

मज़दूर दिवस पर विशेष



भट्ठा  मज़दूर  ( हम सिर्फ लिख कर ही अपना फर्ज़ पूरा कर रहें हैं )

 


-री सखी   
सुन तो
आज मेरी मुलाकात हुई
भट्ठा मज़दूरों से
जो अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ
वहाँ मज़दूरी कर रहें थे 
बस उन्ही को सोचकर  
मैं यहाँ तेरे संग
अपने मन की बात को बाँटना चाहती हूँ ...

-री सखी
हर महल को बनाने में
लगी है ना जाने कितनी ही
कच्ची पक्की ईटें
और ईटों को पकाने में ना जाने
उस भट्ठे पर
कितने ही मज़दूरों उपस्थिति थे,  

पर उनके मलिन चेहरों पर थी 
कभी ना खत्म होने वाली चिंता |
 

शिकन दर शिकन वो
सेंकते रहे भट्ठे पे ईंटों के साथ
अपने अरमान,
अपने परिवार की जरूरतें
सबसे ज्यादा खुद को और 
अपनी आत्मा को|

 
-री सखी सलाम करती हूँ
उनकी इस हिम्मत को,
कि,एक एक ईंट की भांति उन्होंने
अपने बच्चों की आशाओं का निर्माण किया
अपने दूध मुंहे बच्चों के साथ भी
हर वक्त बस काम किया
ताकि दे सके उन्हें ये बेहतर भविष्य |
 
कच्ची पक्की ईटों से
मज़बूत है इन मज़दूरों के इरादे
ये दिहाड़ी मज़दूर
कभी अपनी गति को शिथिल
नहीं पड़ने देते
दर प्रतिदर मज़दूरी कर
खुद पर बोझ बढ़ाते रहे |

पर,अपने बच्चों को हर प्रकार के क्षोभ
से बचाने के लिए
अपनी मेहनत से हर मुश्किल को
निरंतर जर्जर करते हुए,
निर्धनता के साथ अपने विश्वास की
डोर थामे आगे बढ़ते रहे
ताकि गढ़ सके वो 
अपने ननिहालों  के लिए
जीवन की सुडौल कृति और 
एक सुनहरा भविष्य|
 
-री सखी मैंने देखा है
इन भट्ठा मज़दूर के लिए
ना कोई झूला है,
ना ही कोई पलंग
और ना कोई चमचमाते खिलौने हैं|   

ये पलते हैं,कच्ची ईंटों के ढांचों पर
एक मैली पतली सी चादर
और उस कड़ी धूप में |
उसी पे खेलते ,सोते ये बच्चे
जिंदगी की इन्ही क्रूर सच्चाई और 
एक निर्मम मौन के साथ
बड़े होते हैं 
कुछ पल गए, 
कुछ पाल दिए गए
कुछ पढ़ गए तो कुछ
नए मज़दूर तैयार हो गए 
इन्ही के बीच से 
एक नई पौध
भट्ठा मज़दूरों के रूप में
एक अंतहीन जीवन यात्रा
की ओर अग्रसर ये भट्ठा मज़दूर ||



अंजु (अनु)

Wednesday, April 24, 2013

यूँ ही कुछ भी सोचते हुए से लम्हें

यूँ ही जिंदगी के व्यस्त लम्हों में, जब अपने लिए भी वक्त नहीं होता, तब भी ये मन अपनी ही उलझनों में यूँ ही गुनगुनाता है कि ऐ मन तू अकेला नहीं है | वक्त और मेरी सोच को कैद किए हुए कुछ पल जो मेरी सोच का हिस्सा बने और कागज़ पर यूँ ही उतार दिए गए |ये जानते हुए कि मेरी एक सोच का दूसरी सोच से मेल नहीं खाती ...फिर भी अपनी लेखनी को बिना परिवर्तन के,आप सब के साथ साँझा कर रही हूँ|



इस सुकून के एहसास के साथ कि ''मैं अकेली नहीं हूँ ''(उस बेटी की आवाज़ जो आज अपनों की वजह से सुरक्षित है )

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अजीब बंदिशे है इस जिंदगी की
कि ना रोया जाए ना हँसा जाए
गम छिपा कर
कागज़ पर उतार दिया जो मैंने
वो, ना लिखा जाए ना छोड़ा जाए ||
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कुछ ना कर पाने के लिए
एक गुस्ताखी
मेरे नाम  लिख दो
हाँ कसूरवार हूँ तुम्हारी
कि तुम्हारे ख्याबों में अक्सर
तुम से बिन पूछे
चली आती हूँ
इसके लिए
अपना हर इल्ज़ाम
मेरे नाम लिख दो ||

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गमे जिंदगी में इल्जामों का
बोझ है इतना
कि जिंदगी में आई
एक छोटी सी खुशी भी
डरा देती है
आज  इस गिद्धों के युग में
 जो मंडरा रहें
वासना  की हवास में
वहाँ तेरी साफ़-गोई निगाहें 
मुझे  संशय में डाल
देती है ||
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कागज को बना कर दिल अपना
लिख देती हूँ जो 
कुछ फलसफा सा
वो क्यों बन जाता है 
फ़साना जिंदगी का ||
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जिंदगी के कुछ ख्याब
खुद-ब-खुद रूबरू हो गए
जो खोया था हमने जिंदगी में
वो खुद-ब-खुद मेरी
आगोश में आकार सो गए ||
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 स्वर्णिम लहरों में
अपनापन साकार 
उठा 
आज ना जाने फिर सुधियों का
कैसा ज्वार 
उठा
मन की छाया तले,
फिर से तन का ये संसार 
नाच उठा ||
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यूँ  तो उलझने
कम नहीं
ना  दुखों का है
कोई  अंत 
नहीं जरुरी कि,
हर फूल की खुशबू
सांसों में घुल के बहे
नहीं जरुरी हर चिराग की रोशनी,
घर को रोशन करे
जरुरी ये है कि,
सांसों में मेरी
इस दुनिया के गम का
अहसास बना रहे ||

अंजु(अनु )

Monday, April 1, 2013

''miss u'' अप्रैल फूल स्पेशल

ये ''miss u'' शब्द जितना छोटा है लिखने में उतनी ही इस से उम्मीद बडी हो जाती है ...जब आप किसी के साथ खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हो तो कुछ वक्त तक तो ऐसा लगता है जैसे आप उसी की छत्र-छाया में रहें| बस ये खुमारी कभी ना उतरे,पर जिंदगी का सच इस कहीं उल्टा और कड़वा होता है |

जब सच अपनी काटने वाली सच्चाई के साथ आपके सामने खड़ा होता है तो ,ना चाहते हुए भी आपको अपनी  जिंदगी में वापिस आना ही पड़ता है | मेरे ख्याल से मानुष जन्म में कोई भी ऐसा इंसान नहीं होगा जो सपनों में,उम्मीदों में या अपनी पुरानी यादों में अपने खाली वक्त में टटोलता नहीं होगा | तभी तो जब आप किसी के साथ कुछ जुड़ाव की स्थिति में आते है तो ये ''miss u'' कहना या मोबाईल पर या लिख कर भेज देना ही उसके लिए बहुत कुछ हो जाता है |
निराशाजनक परिस्थितियों में हर वक्त उलटा सोचना,निराशा भारी बाते करना और हर वक्त गुमसुम से घंटो बैठे रहना ,बस ऐसे ही दिन शुरू होता और वैसे ही खत्म हो जाता ...एक मशीन की भांति| इस लिए अच्छा है ना किसी के ख्यालों को जिंदगी बना कर ...उसी में खुद को जीवित कर लिए जाए, कम से कम उस वक्त खाओ ,पीओ और मौज मनाओ वाली स्टेज तो रहती है |
कम से कम वक्त-बेवक्त ये बात तो हर वक्त दिमाग में रहती ही है कि मैं...''miss u'' हो रही हूँ | उफ़ कितना सुकून मिलता है ये मैं बता नहीं सकती और बार बार मोबाईल उठा कर उसके पुराने भेजे''miss u'' को पढ़ना उफ्फ्फ वो बताने के लिए भी शब्द नहीं हैं मेरे पास और पलट कर मैं भी ''miss u tooooooooooo''(bade se wala)लिख कर उस पर पलट वार करती हूँ :) | क्या करूँ ज़माना ही ऐसा है ...अगर रिप्लाई ना करो तो सामने वाला ...down market ..लोअर मिडल क्लास समझने लगता है ..और मुझे वो अपने आप को बिलकुल शो नहीं करना ...भई हम आज के वक्त के जीव हैं ...क्या हुआ अगर ईश्वर ने औरत बना कर भेजा है ...दिल तो हम भी रखती हैं ना |
और हम अपने ही बच्चों की होड़ क्यों ना करे ...सुपर मोम हैं हम आज कल की ...जब टीवी पर आज की मोम ...mrs india...aaj kii supar mom...डांस इंडिया डांस (mothers spl) का हिस्सा बन सकती है तो क्या मैं किसी को भी ''miss u'' नहीं लिख सकती |

नोट ..मैं अपनी महिला दोस्तों से सिर्फ ये ही कहूँगी कि ...ये सिर्फ मेरी सोच है जो मैंने देखा और अपने आस-पास होते हुए देख रही  हूँ | किसी व्यक्ति विशेष को मैंने टिप्पणी नहीं की है ...पर आज कल ऐसा बहुत हो रहा है | कुछ वक्त पहले फेसबुक पर किसी दोस्त ने एक प्रश्न किया था कि ...''ये इन दिनों फेसबुक पर महिला रचनाकारों और विशेष रूप से कवियित्रियों की जो भीड़ दिखाई देने लगी है, क्‍या वास्‍तव में उनका कविता और साहित्‍य से कोई वास्‍ता नजर आता है क्या ?
मैंने ये बात आपसे इसलिए शेयर की क्‍योंकि जितनी संख्‍या ऐसी महिला रचनाकारों की है, उससे अधिक संख्‍या उनके ऐसे सो कॉल्‍ड दोस्‍तों की है जो बिना कुछ जाने समझे उनकी तारीफ में बेहिसाब कसीदे गढ़ते हैं।
एक्‍चुअली उनका छद्म मकसद कुछ और होता है||'' 
ये प्रश्न मुझ से पूछा गया था ....बहुत देर तक सोचती रही कि इसका का जवाब दूँ ...हर किसी अपनी-अपनी जिंदगी है, मैं कैसे किसी के बारे में कोई टिपण्णी कर सकती हूँ?|

पर मन नहीं माना और ये लेख उन्हीं के उत्तर में लिखा है |''miss u'' तो लिखने का एक बहाने जैसा हैं ..जैसे अपनी बात रखने के लिए एक भूमिका की जरुरत होती है ठीक वैसे ही | यहाँ ऐसा बहुत कुछ देखने को मिलता है जो एक महिला लेखक होने के नाते कभी-कभी नागवार गुज़रता है |
 हाँ पर मैं इतना जरुर कहूँगी कि वाकई कभी कभी कुछ रिश्ते ऐसे बनते हैं ...जिन्हें हम दिल से निभाते है और उन्हें हम miss भी करते है ...ऐसे सच्चे  रिश्तों के लिए,मैं भी सर झुका कर नमन करती हूँ |पर क्या ये सही बात है कि लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए ...कुछ भी ऐसा किया जाए कि वो झूठे लोग आपकी वाह-वाही करे ...ऐसी झूठी वाह-वाही से अपने आत्म-सम्मान को मत मरने दीजिए ...मैं बस इतना ही कहना चाहती हूँ ||

चलते  चलते बस यूँ ही 



अंजु(अनु)