Tuesday, June 24, 2014

लकीरें



इन आड़ी-तिरछी लकीरों से
खींचती है ज़िंदगी एक तस्वीर
एक सोच
एक द्वंद्ध
एक लड़ाई 
इस बेरहम जिंदगी से

एक सोच
उस खालीपन की कसक
कुछ तो करना है
जो अभी अधूरा है

एक जद्धोजहद
उस खालीपन की
जिसके इंतज़ार में
उम्र निकलती जा रही है

खाली से टेबल पर
खाली से वक़्त में
कागज़,पेंसिल से खेलने की कला
जो बेमतलब खींच देती है
किस्मत की लकीरों को
इन आड़ी-तिरछी रेखाओं की तरह ||





ये तन्हाई भी क्या चीज़ होती है, बेकार बना देती है इंसान को
क्या करेगा ये दिल यूं ही , पुराने पन्ने पलट-पलट कर ||


(एक ही शॉर्ट में लिखी गयी कविता को यूं अब ब्लॉग में रखने की सोची है .......इस कविता में भी लिखने के बाद कोई भी बदलाब नहीं किया गया )



अंजु चौधरी अनु