Sunday, August 28, 2011

हम दोनों के बीच


हम दोनों के बीच

भागीरथ बन कर
भिगो गया कोई
खुद के बोल देकर
गुनगुनाने को छोड़ गया कोई.
प्रेम रस की फुहारों से
इस तन की प्यास
बुझा गया कोई.

अठखेली करती चंचल मन
सीमाओं में बंधी-कसी ...
मन के तारों को

झुंझना गया कोई

चले हैं मिल कर साथ
छूने को आसमां
अतृप्त आह, आहें कई .. ...
अब भी है
हम दोनों के बीच.

प्यासी धरती के दिल में
प्यार बीज बो गया कोई.

रीझ रीझ के नाचा है मन मयूर
उसकी प्रेम फुहारों में

मरू की नीरसता टूटी है
मन मंदिर के द्वारे में

तन से नाच ..नचा
गया कोई.

कान, कान वो ही
जिसने तेरी आवाज़ सुनी
आँख, वो आँख वही
जिसने तेरा जलवा देखा
इन्ही सुर्ख नयनो में
सपना सजा गया कोई.

भीच लूँ तुझे अपनी
बाहों में
प्यासे थल, जल की
आशा में
एक स्वप्न अब भी बाकी है
हम दोनों के बीच
लो सपने सजा गया कोइ ||

(अनु )


Wednesday, August 24, 2011

इंतज़ार


इंतज़ार


भीगे भीगे है ज़ज्बात जिन्दगी के भीगी सी आँखे ये उन यादो से
थोड़े पास ,थोड़े दूर है
ना कुछ कहने दे
ना चुप रहने दे
दिल की टीस रही
ये यादे ...
ना हँसने दे
ना रोने दे .....
रूपकों को रूप की ही
नज़र ना लग जाय
खोज में जो भी मिले,
या ना मिले,
पर मिल जाए उस से ये मन......
सब एक सा हो, या नहीं हो,
पर हो उस में तनिक दीवानापन,....
फिर क्यूँ ....
बेरुखी उनकी ना सोने दे
ना जागने दे ....
रात के सफ़र में
यूँ ही अकेले चले थे हम
बनके तूफ़ान अपने मन का ....
नहीं मालूम था कि
आशियाँ भी नसीब होगा की नहीं ?????
वक़्त से कुछ न
कहा मैंने ...
वो आया और लौट भी गया
उसके रास्तो को भी कहाँ
रोका था मैंने?
दिन निकले और ढल गए
रातें भी ख़ामोशी से आयी
और चुपचाप चली गयी
चाँद ने भी मुझसे कुछ कहा नहीं
वो भी रात भर आँख बचाकर
चमकता रहा.....
एक तुम क्या मिले मुझे
दुनिया बदल गयी मेरी
लेकिन मैं तब से अकेली उसी
जगह खड़ीं हूँ ...
जहाँ तुम मुझे छोड़ गए थे
इस इंतज़ार में कि शायद
कभी किसी बहाने से तुम लौट आओ ?????

(अनु )

Tuesday, August 16, 2011

ये जिंदगी भी ,रहस्य है

चित्र आभार .....रोज़ी सचदेवा

ये जिंदगी भी ,रहस्य है




मन की बेचैनी
घुटन है मन में
सच बोलने की ताकत
आते ही
चुप करवा दिया जाता है
ऐसा क्यूँ होता है
मै समझी नहीं आज तक
सच सुन कर हर कोई
क्यूँ दूर हो जाता है
सच अगर इतना ही कड़वा है
तो फिर ...कोई क्यूँ
किस उम्मीद से करीब आता है
किसको अपना समझे
किसको बेगाना
अपने भी सच के सामने
बेगाने नज़र आते है

कुछ आते है उग
कुछ उगाती हूँ मैं
हर शाम
दर्द की फसल उगाती हूँ मैं

खुद को तराशती हूँ मैं
जर्रा जर्रा कतरा` कतरा
ये जिंदगी भी ,रहस्य है
मेरे लिए
मन को उधेड़ती हुई

कहाँ जा रही हूँ..

(अनु )

Wednesday, August 10, 2011

जाते हुए सावन को सलाम ......

वर्षाऋतु........

हमने बादलो को घिरते देखा है
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल महीन कणों को,
खुद पर गिरते देखा है,
ऊँचे हिमालय के कंधों पर
उभर आया वो सतरंगी
इन्द्रधनुष भी ...
वर्षाऋतु के आने पर
हमने बादल से उसे
निकलते देखा है......

वो थी वर्षाऋतु की सुप्रभात
मंद-मंद थी ठंडी हवा का बहाव
मद्धम मद्धम थी किरणे
सूरज की....काले बदलो में
खेलती सी
एक दूसरे से करते वो
अठखेली थे
अलग-अलग रहकर ही जिनको
साथ निभाना था....
हमने बादल को भी
खेलते देखा है......

तेज़ बारिश की सुबह
चारो ओर था पानी ही पानी
वर्षा ऋतु के आगमन पर
छा गई हरियाली ...
खिल उठा बगीचे का हर फूल
पंछियों की आवाजों से गूंज
उठा ये आकाश सारा
हमने बादल को आज
फिर बरसते देखा है.....

ठहरे पानी में बच्चों की
तैर उठी कागज़ की कश्ती
मस्तानी सी
उनके नन्हे पावँ
पानी में छप छप करते
ये दृश्य बड़ा सुहाना था
बरस पड़ेगी कभी भी
ये काली सी बदली...जिसको हमने
गरज-गरज भिड़ते
अभी अभी देखा है,

हमने
बादल को
फिर से घिरते देखा है....


(अनु )

Monday, August 8, 2011

भविष्य की रिर्हसल ........


भविष्य की रिर्हसल ..........( रियलिटी शो के ड्रामे .... पर आधारित एक रचना )
आओ हम सब
करे भविष्य की रिर्हसल ....
एक से एक बढ कर
इठलाती ,बलखाती लडकियाँ
रियलिटी शो की ......शोभा बढाती
आयो आज के बेटो की माँ....
एक रियलिटी शो...से खुद के लिए
एक अदद बहू चुन ले
अभी से कर ले हम भी
कल की बुकिंग
पता नहीं कल कोई
बहू मिले या ना मिले
रह ना जाये ...हमारे पूत कुंवारे
होने वाली बहू की डिलिवरी
भले ही ७ साल के बाद मिले ...
इसे एक नई और
अच्छी शुरुआत कहे
या
बिडंबनाओं का मायाजाल...
करना है अब हमें
नए यथार्थ से सामना
सनसनी खेज़ खुलासे के साथ
अब है रियलिटी शो का ज़माना
डांस हो या फेमिली ड्रामा
बच्चे पालना हो या ...
बिग बॉस का वाहियात ड्रामा
या हो बहू की खोज करवाना ......
सब यहाँ सजा के परोसा जाता
अगर हो गालीगलौच बच्चो को सिखाना
तो खोलो टी.वी और
देखो ये रियलिटी शो का ड्रामा

(अनु)

Friday, August 5, 2011

२१वीं सदी के रिश्ते....


२१वीं सदी के रिश्ते.....(एकल होते परिवारों का दुःख.......जो मैंने समझा है ....मेरे विचार ...मेरी कविता )



आज के मशीनी युग में
समय कुछ ज्यादा ही
महंगा हो गया है
आप सब अब
अवकाश निकालो
आप लोगो से दो
बाते हैं करनी ..कि
सोया है सबका विश्वास
उसे तो जगा लो ...क्यूँकि
आज रिश्तो की पहचान
कठिन सी हो गयी है......
हर रिश्ते में सिर्फ
प्यार की
iv> कमी सी हो गयी है....
माँ बाप और संतान का
रिश्ता सिर्फ पालन पोषण
और नसीहतो तक ही
सिमट कर रह गया है.....
क्या किया उन्होंने
संतान के लिए ?
ये प्रश्न उनके दिमाग में
प्रेत बन कर बैठ गया है
कुछ नहीं ????
सिर्फ
अपना फ़र्ज ही तो
निभाया है.....
बदले में कुछ चाहने
का उन्हें हक नहीं.....क्यूंकि,
बच्चो की अब
तो अपनी ही जिन्दगी
हो गई हैं ....... और
पति पत्नी का रिश्ता
भी तो सिर्फ
तनख्वाह दिन तक का
ही रह गया है......क्यूंकि
दोनों की अब अपनी अपनी
निजी जिन्दगी है भाई...
अजब सी दुनिया है ये ...
दिल में है क्या ..ना जाने कोई ....
क्यूँ ...आज पोते पोतिया,
दादा दादी को नहीं जानते.....
वो इस रिश्ते को नहीं पहचानते......
क्यूंकि ......बूढे माँ बाप
घर की शोभा बिगाड़ते है....
और उनकी आज़ादी में खलल डालते हैं
इस लिए वो लोग तो
वृद्धाश्रम में ही भाते है........
देखो तो ...भाई -भाई जान के
दुश्मन बन बैठे हैं ...
रिश्तो की मिठास की कमी
को अब स्वीट डिश
जो पूरा करती है.....
टूटे हुए रिश्तो का
आज दौलत से एक
अटूट रिश्ता जुड़ गया है......
फिर भी मैं ...ये ही कहूँगी कि .....
ढूंढ़ सकते हो तो ढूंढ़ लाओ
वो स्वयं के रिश्ते जो खो गए
है इस दुनिया के चलन में
वो पक्के धागों से रिश्ते ....
वो रिश्तो की सच्ची मिठास......
वो प्यार, वो बंधन...
वो हर चेहरे पर मुस्कान
वो हँसीं-ठिठोली का वातावरण
वो अपनों पर विश्वास
जो मिलता था सबको
एक .... संयुक्त परिवार में ....
((अनु))

Tuesday, August 2, 2011

हे -गौतम बुद्ध..

(यहाँ आने वाले हर किसी पाठक से प्राथर्ना है कि ..कविता किसी के भी विचारों और भावनायों को आहत करने के लिए नहीं लिखी गई है ...इस कविता को सिर्फ सिर्फ कविता के तौर पर ही पढ़ा जाए )


कभी कभी मै सोचती हूँ
आशा के दीप जलाए
तुम्हे ढूंढ़ रही हूँ

हे -गौतम बुद्ध
तुम ...एक भाव
जरुर हो ....
पर पूर्ण कविता नहीं
अपनी ही कैद से भागे
खुले आसमान के नीचे
क्या मिला वहाँ
विचार,एहसास ..अनुभव...
ज्ञान भी ...बाँट लेने को
मानती हूँ मिला होगा
बहुत कुछ .....
पर ज्ञान वो नहीं जो
जो तुमने
किताबो में लिख दिया
और हमने पढ़ लिया ||

जन्म लिया था..
तो
कम से कम उसे
भोगते तो
देखते ...
कितने उतार चड़ाव
है इस जीवन में
जीवन वो नहीं
जो तुमने जिया

एक पेड़ के नीचे .....
जीवन वो है
जो एक औरत जीती है
अपने परिवार के लिए
माँ,बहन,बेटी और पत्नी
बन के ...
जीवन वो है जो
एक भाई जीता है
अपनी बहनों के लिए
उनके सामने एक आदर्श
रखने के लिए
कर देता है खुद की
इच्छायों का बलिदान
एक परिवार को
उनकी ख़ुशी देने
के लिए
जीवन वो है
जहां चार बाते हो
कुछ झगडा
कुछ प्यार हो
पति पत्नी में
मान- मुनहार हो
तकरार हो
जहाँ ..
इधर उधर की
कह लेने से
मन का गुबार
निकल जाता है
जैसे तैसे
हँसते-खेलते
लड़ते-झगड़ते
ये समय भी
खूब गुज़र जाता है

हे -गौतम बुद्ध
अफ़सोस है मुझे
की एक मिले जीवन को
तुमने यूँ ही
व्यर्थ गँवा दिया
देखे नहीं जीवन के सभी रंग
और ज्ञान के शब्दों में
संसार को बहा दिया
(अनु)