Wednesday, February 24, 2010

मेरी तन्हाई






















(आज मैं अपनी एक पुरानी पोस्ट आप सबके साथ साँझा कर रही हूँ ....इसे मैंने २४ फरवरी २०१० में लिखा था ....शब्दों के बदलाव के बिना और बिना किसी एड्टिंग के आप सबके सामने लाई हूँ )



मेरी तन्हाई में ,
किनते आंसू थे  
कि तुझे से दूर होकर  भी
तेरे पास थी मैं    
चांदनी थी अपने चाँद के साथ  
फिर भी बहुत उदास थी मैं | 

मेरे चाँद को छिपा लिया बादलों ने

जो मेरे मन की 
चांदनी की आखिरी आस था  

सिमट गए मेरे सब सपने
उस अधूरी रात में
अब,टूट गए सब सपने 
तुम्हारे आने की आस में |

क्यों किसी ने ना सुनी 
मेरे बचपन और जवानियाँ
तनहा मैं जी गई
कितनी ही जिन्दगानियाँ
कमज़ोर हूँ..अकेली हूँ ...
फिर भी कि आँखों के बिन रोए 
अश्क सी हूँ    
मै वक़्त का वो भूला बिसरा लम्हा हूँ  
या 
तेरी निगाहों में खटका वो तिनका हूँ  
जो,वो कहते है बोझ मुझे ,
पर,अब मैं तो खुद के ही 
बोझ से भी हल्की हूँ |

ये मन अब किसी रिश्ते में ना बंध पाएगा
फिर भी , 
आज भी है इस दिल में 
हजारों आरजुएँ
जो  कभी नहीं होंगी 
रहनुमाई सी 
भटकन बडी है इस 
प्यार की राहों में
जिस पर अब  मुझे ही चलना है
क्यों 
मेरी तन्हाई में ,इतने आंसू थे ||

 अंजु (अनु)

अजीब सी उलझन में है ये मन


अजीब सी उलझन में है ये मन
अजीब सा ये एहसास है
उम्र के इस मौड़ पर
क्या किसी के आगमन का ये आभास है
क्यों अब ये दिल जोर जोर से धड़कता है
क्यों हर पल उसकी ही सोचो का दायरा है
हर पल ऐसा लगे कि वो मेरे साथ है
क्या उसे भी मेरी तरह इस बात का एहसास है
कि है कोई जो इस दिल के तारो को अब झनझनाता सा है
आ आ कर सपनो में अब वो जगाता सा है
क्यों वो धीरे धीरे मेरे लिए ही गुनगुनाता सा है
अजीब सी उलझन में है ये मन.............
क्यों मै अब नए सपने बुनने लगी हूँ
क्यों इस नयी इस दुनिया में विचरने लगी हूँ
क्यों खुद से ही मै बाते करने लगी हूँ
अरमानो के पंख लगा ...
लो उड़ चला अब मेरा मन
क्यों प्यार के इस नए एहसास से अब मन
डरा डरा सा है
मेरे मन और तन कि भाषा
अब बदली बदली सी है
मेरी आँखों में अब नए सपनो कि दुनिया
अब सजी सजी सी है
है बदलाव का नया नया दौर ये
क्यों मै तरु सी खुद में ही अब
सिमटी सिमटी सी हूँ
अजीब सी उलझन में है ये मन.............
(..कृति..अंजु..(अनु..)

Tuesday, February 23, 2010

खामोशिया


तेरी खामोशिया बहुत कुछ ब्यान करती है
बंदिशे तेरी ..मुझे तक पहुँचती है
देके आवाज़ तुझे ..रोकने का मन करता है
पर क्या करूँ...तेरी भी कुछ मजबूरिया
मुझे हर बार रोकती है ...
बाँध दिए थे सब अरमां…
दूर किसी डाली से..
मेरे चेहरे से तेरे ग़म को जीया आज भी मैंने ,
मिलके जो हमने जलाया वो दोस्ती का दीया आज भी है.....
(...कृति....अंजु...अनु..)

वजह हो तुम .......

वजह हो तुम .......
मन बेचैन है मेरा ...

याद् बन गये हो,
क्यूंकि साथ नहीं हो तुम .......... हृदय में उतर जाते हो ,
मेरी स्पंदन हो तुम .....
मेरे होने की वजह ,
मीठा बंधन हो तुम ......
आँखों में बसते सपने हो तुम
आती हुई हवायो ने
कर दिया बेताब दरिया कि तरह
कली सी मुस्कान सजती रहे
तुम्हारे होंठो पे ,
जब ढूंढती हूँ कण - कण में ,
सब में व्याप्त हो तुम ,
कैसे भूलूँ तुम्हे पल भर को भी ,
मुझमे शुरू , मुझमे समाप्त हो तुम ..
(......कृति ...अंजु..अनु ..)

प्यार हमारा


प्यार हमारा
जिसका कोई रूप नहीं है जिसकी कोई भाषा ,कोई बोली नहीं है जो समझता है दिल कि ही बातो को एहसास है तो सिर्फ साथ बंध जाने का तमन्ना है तो अब साथ निभाने की हम तो एक पत्थर है उस रस्ते के जिस से महोब्बत के महल बना करते है मुझे ऐसी अदा से नवाज़ा एह खुदा मेरे महोब्बत का जनुन जब दिल में बसता है तो इस दिल में एक अजीब सा तुफ्फान सा उठता है इतने से काफी हो जाये ये सबब ..एह खुदा कि इश्क कि तनहा साँसे भी मुझे महका देती है उनकी यादे के साये जब घेर के मंडराते है तो चिराग महोब्बत के ही उनके मेरे इर्द गिर्द मंडराते है प्यार हमारा

जिसका कोई रूप नहीं है
.......... (..कृति ..अंजु...अनु...)