Monday, July 29, 2013

एक चिट्ठी अपने प्रिय के नाम

 (डायरी के पन्ने ....जो कहानी संग्रह के रूप में लिखे जा रहें हैं ....उसे कुछ हिस्से साथ साथ यहाँ ब्लॉग पर आप सबके साथ साँझा कर रही हूँ .....चित्र गुगल से लिया गया है )



प्रिय!तुम अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए, ना जाने कैसे कैसे हथकंडे अपनाते हो |तुम जिंदगी के २ पड़ाव पार चुके हो, पर अब जब तुम्हें जीवन में एक स्थाई मुकाम मिला है तो ...मुझे मेरे जीवन की हर बात सोचने का मन करता है | क्यों,कब और कैसे पूरी जिंदगी बस घर के झमेलों  में ही निकल गई | तुमने अपना स्थान पा लिया और मुझे, अपने लिए सोचने का वक्त ही नहीं मिला |

शादी हुई और शादी होते ही नई दुल्हन के कोई चाव देखने को नहीं मिले, तो मन टीस उठी, अपेक्षाएँ आहत हुई, जब जब कुछ देखा या सुना  तो बस हर किसी को मुझे से कोई ना कोई उम्मीद या शिकायत ही रही ,मन और तन से मैं बार-बार टूटती रही ,फिर भी एक गहरी ख़ामोशी मेरे ही भीतर ..मुझ से ये सवाल जरुर करती थी कि  ''यार!(मेरा तकिया कलाम) क्या मैं ऐसी हूँ कि हर किसी को मुझ से सिर्फ शिकायत रहती है ''|

मन में विचारों का उद्गम जब भी हुआ है तो हमेशा नकारात्मक सोच ही सबसे पहले मन में घर करती है |सबके सामने, मुझे अपने आप को साबित करने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी ये कोई भी आम गृहणी आराम से समझ सकती है |कुछ सपने पूरे और कुछ अधूरे ही यादों के बस्ते में कैद पड़े हैं जो बाहर आने ले लिए अपने आप में मंथन मचाए हुए हैं ..और हर बार मेरा खुद से ये सवाल होता है कि '' यार! ये सपने इतना शोर क्यों करते हैं ?''

वास्तविक जीवन में कोई परेशां करे तो समझ में आता है ...पर ऐसे यूँ जाग कर सपने देखना और उनके पूरे होने की उम्मीद करना सत्य के धरातल पर कुछ मुमकिन हो ...ऐसा लगता तो नहीं है | मैं बहुत सपने देखती आई हूँ ..पर हर सपना पूरा हो ...ऐसा जरुरी तो नहीं है ना |

मेरी समस्या, मेरे शब्द और मेरी सोच है, जो मुझे कदम-कदम पर दुर्बल बनाती आई है,पर उसके बाद भी मैं बहुत अधिक यथार्थ और आशावादी हूँ| जीवन में कुछ भी हो जाने की स्थिति बहुत देर तक मुझ पर हावी नहीं रहती शायद ये ही मेरे जीवन का मूल-मंत्र है कि ''कुछ भी हो जाए,बस आगे बढ़ो'' ||

पर मेरी सबसे बडी सोच'' तुम '' हो कि तुम कब मुझे खुद सा समझोगे कि '' तुम्हारे जीवन में 'मैं कौन हूँ ' तुम्हारे लिए ?'' यह प्रश्न जाने-अनजाने हमारे जीवन में मुझे परेशां करने चला आता है | किन्तु मन में ये विचार भी बार-बार आता है कि क्या फर्क पड़ता है कि 'मैं कौन हूँ सिवाए इसके कि मेरा एक नाम है जो अब तुम से जुड़ चुका है और मैं एक शख्सीयत हूँ जिस से मैं अपने परिवार से जुड़ी हूँ' |

मैं खुद से मौज-मस्ती वाला जीवन जी रही हूँ ये सोच कर मुझे क्या जरुरत है इस बेकार की सोचों के झंझट में पड़ने की ...फिर भी पता नहीं क्यों एक अनचाही उदासी मेरे मन को घेर लेती है | फिर भी प्रिय ! मेरे पास जन्मों से संचित प्रेम और अपनेपन के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं जो मैं तुम्हें और परिवार को समर्पित कर सकूँ, पर मेरी इस दुनिया के बाहर भी एक दुनिया ओर  है ...मेरी सोच और मेरे शब्दों की दुनिया...जिसे शायद ही आप कभी समझ सको,प्रिय !

(आगे भी सफर ऐसे ही जारी रहेगा ....मेरे साथ अंजु(अनु) चौधरी )







Saturday, July 27, 2013

हाय ये कुर्सी ! उफ़ ये कुर्सी








हाय ये कुर्सी ! उफ़ ये कुर्सी 
ओ! कुर्सी के निर्माता
एक कुर्सी मुझे भी भिजवा दो
गर्दन और कंधे का
दर्द मिटा दो ||





देखो ना...
इसी कुर्सी के लिए
नेताओं ने
देश के हिस्से
कर डाले
अपनों ने,अपने ही  

मार डालें
उफ़! इस कुर्सी की
महिमा है निराली
जो है आम जनता की
उम्मीदों पर भारी ||

ओ-कुर्सी के निर्माता
ये कुर्सी-लोक है
घूम-फिर कर
सबको यहीं 
है आना 
इस कुर्सी के लिए
हर गठबंधन
बनाया और तोड़ा जाता 
झूठे बयानों का छींका
किसी पर भी
फोड़ा जाता   

सबका सपना है
ये कुर्सी
अब ओर क्या कहूँ 
क्या क्या महिमा
कुर्सी की मैं बतलाऊं   |

हर नेता की आस है
राजनीति की चाल है
ये कुर्सी
 
हत्याधारी, अत्याचारी और
बलत्कारी का बचाव है
ये कुर्सी
कुर्सी की गिरफ्त में
गिरफ्तार हर कोई
उफ़! ये कुर्सी
हाय! ये कुर्सी |


पर,मेरे लिए भी
वरदान है
ये कुर्सी,
काम करने के बाद
कुछ पल आराम के देती है
ये कुर्सी ||


बस
मेरा ये काम करवा दो
दुआ दूंगी
हर वक्त तुम्हें 

इस अनचाहे
दर्द को मिटा दो
ओ-कुर्सी के निर्माता
एक कुर्सी...मुझ को भी                         
भिजवा दो !!!                                                           

            अंजु(अनु)

Monday, July 15, 2013

मेरी सोच,मेरा चिंतन

कुछ ऐसे वचन जो हर किसी पर लागूं होते हैं अगर कोई उसे दिल से माने तो ...बस ऐसे ही पढ़ते पढ़ते कुछ वचन मेरे हाथ भी लेगे...तो सोचा कि चलो इसे अपने ब्लॉग पर सबके साथ साँझा करके हमेशा के लिए अपने पास सुरक्षित रख लिए जाए, ताकि जब मन करे इसे आसानी से पढ़ा जा सके ||



(1) माचिस की तीली का सिर होता है,पर दिमाग नहीं,इसलिए वह थोड़े से घर्षण से जल उठती है| हमारे पास सिर भी और दिमाग भी,फिर भी हम छोटी-सी बात पर उत्तेजित क्यों हो जाते हैं?

बात बहुत छोटी सी है पर इसके अपने बहुत गहरे अर्थ है ...अगर मैंने ये कहूँ की हर किसी को जीवन में बहुत बार ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है|मैंने अपनी इस लाइफ में बहुत से लोगों को देखा,परखा और समझा है |बहुत कम लोग मुझे अपने विचारों,व्यवहार और मर्यादा में स्थिरता और दृढ़ता लिए हुए दिखे | नहीं तो ज्यादतर लोग अपनी ही बात करके मुकर जाते हैं या अपने दिमाग का प्रयोग किए बिना ही झूठ पर झूठ बोलते हैं और उसी झूठ को अपनी जिंदगी का कभी ना खत्म होने वाला घुन बना कर जीते हैं और ये घुन उनकी पूरी जिंदगी को धीरे-धीरे जला कर राख कर देता है ..जिसका पता बहुत देर से लगता है तब पछताने के अतिरिक्त ओर कुछ नहीं बचता |पर मैंने देखा है कि कुछ लोगों में कुछ भी गलत करने के बाद पछतावा तक नहीं होता ...ऐसे इंसान को क्या कहिएगा????


 (2) किसी शांत और विनम्र व्यक्ति से अपनी तुलना करके देखिए,आपको लगेगा कि,आपका घमण्ड निश्चय ही त्यागने जैसा है |

क्या आपको भी ऐसा लगता है कि हर व्यक्ति इंतना सोच समझ कर अपनी जिंदगी को कोई दिशा देता होगा?
मैं ऐसा नहीं मानती...पर ऐसा भी नहीं है की मुझे भरोसा ही नहीं है| फिर भी बहुत लोगों से बातचीत के बाद कम से कम मैंने ये महसूस किया है कि एक ओर मैं और दूसरी ओर से बातचीत करने वाला व्यक्ति ( भाई,बहन ,दोस्त ,पति या बच्चे कोई भी समझ लों ) अपने आप को हमेशा ही सही साबित करने में प्रतीत से होते हैं (हो सकता है की मुझे लेकर भी उनकी भी ये ही सोच हो ) ऐसा क्यों होता है कि हम लोग अपनी गलती को सुधारने की बजाए उस गलती को और गलती करते हुए उसे अपने ही घमण्ड के तले, एक तारीक(अन्धेरा, धुंधला) के तले दबाते चले जाते हैं |


(3)  जितने अच्छे से आप दूसरों से,दूसरों की स्त्रिओं से,दूसरों के माँ-बाप से,दूसरों के बच्चों से बात करतें हैं ,उतने ही अच्छे से यदि अपने घर में, अपनों से बात करने लगें तो घर में ही स्वर्ग उतर आए| (मुनि प्रज्ञासागर)



 मुनि जी ने कितनी पते की बात कह दी है ...इस बात से मैं तो १००% सहमत हूँ |पर आज भी इस इंटरनेट की दुनिया में बहुत से लोग ऐसे मिल जाएँगे,जिनके खाने के दाँत ओर और दिखाने के दाँत ओर हैं |जो आज भी अपने ही रिश्तों  का मज़ाक बनाते देर नहीं लगाते |

कुछ रिश्तों को, उम्र भर टिकाऊ रूप से हमें सँभालने के लिए वो ईश्वर देता है पर कुछ नादान और गन्दी सोच के व्यक्ति हर रिश्ते में से कुछ ना कुछ खोट निकाल कर, उसे बदनाम करते हुए अपने से दूर कर देते हैं |

बहुत बार देखने में आया है और बहुत से लोगों ने अपने मरते हुए रिश्तों से सीख देते हुए भी ये सिखाया है कि ''मरते हुए रिश्तों में भी सांसे होती है ...जिसकी वजह से वो अपने को, अपने प्यार और विश्वास को अपने भीतर जीवित रखते हैं  | रिश्ते मरने का दर्द सिर्फ एक तरफ़ा होता है क्यों कि ...अगर दूसरी तरफ लेश मात्र भी दर्द या उसे सँभालने की सोच होती तो ...''कभी भी कोई रिश्ता टूटता ही नहीं '' |







आज बस इतना ही क्यों कि ....अपने ही कदमों के निशाँ पर जब हम अपनी उलटी लौटती हुई चाल से कदम मिलाने की कोशिश करेंगे ...तो वो कभी नहीं मिलेंगे ||




जब अपने ही कदमो के निशाँ नहीं मिलेंगे तो ...किसी एक की सोच किसी दूसरे से कैसे मिल जाएगी ?(सिर्फ मेरी सोच ..पर आधारित लेख पर लिखे  गए मेरे विचार )


 अंजु(अनु)