
मै जब भी उस से मिलती हूँ
क्यों उस जैसी हो जाती हूँ
उसके ख्यालो को सोचती हूँ
उसकी ही आहटो पे चलती हूँ
उसकी दी हुई बोली ही बोलती हूँ
फिर भी क्यों वो ....
मेरी तरह नहीं सोचता
मेरी बोली क्यों नहीं बोलता ?
मै उसके दिल को पढ़ती हूँ
उसके शब्दों को लिखने से पहले
समझती हूँ ...
उसकी सांसो को जीती हूँ
उसी के दिए नगमे गाती हूँ
उसकी यादो को दिल में बसा
सपनो की एक हसीन दुनिया सजा
उसी में खो जाती हूँ ...
फिर भी क्यों वो ......
मेरी तरह नहीं सोचता
मेरी बोली क्यों नहीं बोलता ?
वहीँ तो घर था मेरा
वहीँ तो मै उस संग खेली थी
पहला घर घर अपना
वहीँ तो मैंने अपने सपनो की
दुनिया सजाई थी
आज वो बिछड़ गया है
उसकी अगल ही दुनिया है
अलग है सपने उसके
बदल गयी है हम दोनों की तकदीरे
अब किस उम्मीद से मै अब ये कहूँ..
कि क्यों नहीं वो मेरे जैसा सोचता????????
(अंजु ....(अनु )