Thursday, October 20, 2011


मैं और मेरे गीत

तिमिर के उस पार
जाना चाहती हूँ
एक नया गीत
लिखना चाहती हूँ
मैं और मेरे गीत
खुद को पढूं और
खुद को लिखूं
मेरे बाद इसे
पढना हैं किसने
कागज़ और कलम
के ज़रिये ...
मैं और मेरे गीत

गीत सूर्य का हो

या हो नदी का ..
दूर तक ...
पर्वत के आर पार
शब्द भी बोलते से हो
जीवन में कुछ धीमी सी
गति से बढते से हों
किसी किसी की
किस्मत में होता हैं
अपने खुद के गीत
बना के उनमे
खुद को जीना और
उस में ही मर जाना
मैं और मेरे गीत.....

गीत में मेरे शब्द
सौन्दर्य प्रतिमा ..
साथ में नग्नता का भान
देते हुए से
गीतों के चमत्कारी शब्द
जयकार पा जाते
पर चुभ जाते है कभी
कांटो से भी ज्यादा ...
इन में भी हैं मानमर्यादा
के सारे बंधन
पर तोड़ कर मैं इनको .....
इन सबसे दूर
असर के उस पार
उड़ जाना चाहती हूँ
मैं और मेरे गीत ........

सूखे बिस्तर सी
चादर से गीत
भागती जिन्दगी ,
फूलो की महक ,
दर्द तो कभी ,
तपती धूप
तो कभी इस भूखे पेट
की आवाज़
कहीं ..पिया प्यार
तो कहीं प्रणय दुलार
की चहकन..
तो कहीं गुस्से में
झटक देते और
कहीं दुआ देते
मैं और मेरे गीत ......
अनु

Friday, October 7, 2011


एक ग़ज़ल .....

खुद को खोया भी नहीं,तुमको पाया भी नहीं कभी
फिर साथ तुम्हारा ,अब कैसे मेरा अपना होगा ||

हमने हर गम से निखारी है यादे ,दिनो दिन तुम्हारी ,
तू ही बता कि ,मेरी बगावत का आखिरी रास्ता क्या होगा ||

तुमको पाते तो उसी मदहोशी में ,हम फ़ना हो जाते ....
हम नजदीकी से भी डरते रहे और ,दूरी भी ना बना पाए कभी ||

लोग कहते है कि ,पल भर में होगा सवेरा होगा अभी

पर सूरज को भी तो काली घटायों ने, घेरा होगा कभी ||

सुबह
की शिखायों पर ,उतरती है उषा की लाली
कौन जाने की ये लाली, अनिष्ट है मेरी किस्मत की||


घेरा हुआ है कुदरत के तूफानों ने, इस संसार को

कौन जाने की कभी मेरा भी कोई नया ,सवेरा भी होगा||

क्या मुमकिन है की तूफ़ान के ,दब जाने पर भी ,
मेरा इश्क भी एक नये रूप में, मेरा ही होगा ????

अनु...