Tuesday, January 6, 2009

दोस्ती.....................


अजब करिश्मा देखा हमने दोस्ती में
दोस्ती में भावनायो का समंदर देखा
नापी न जाये गहराई जिसकी
निश्छल ,नि: स्वार्थ है इस दोस्ती कि भाषा
रोतो को भी हँसते देखा हमने दोस्ती में
अजनबियों को भी बंधते देखा इस दोस्ती में
रूठो को भी मानते देखा दोस्ती के वास्ते ..
अजब करिश्मा देखा हमने दोस्ती में.................
मैंने तो भटकी हुई थी ,अनजान राहो पे ,
कितने छाले पड़े थे इस पाव में
लो आ गयी ,आ गयी ,मैं भी दोस्ती कि राह में
हंसी ख़ुशी का सागर है ये दोस्ती ,
गमो से पर जाने के किवायत है ये दोस्ती ....
सावंले सलोने रूप को भी सवारती है दोस्ती
इज्ज़त से जीती और मर्यादा में रहती है दोस्ती
सम्मान देती और लेती है दोस्ती ,
जब दोस्तों कि मुखो पे छाए हँसी ,
बस इता सा ही चाहती है मेरी और तेरी दोस्ती ...........
मेरे सर का ताज है .......ये दोस्ती .....
अजब करिश्मा देखा हमने दोस्ती में..................
(कृति.....अनु......)

10 comments:

pawan arora said...

dost ek payar hai aur payar ek nasha jisme insaan khud ko pata hai ..dosti ek dor nahi bandhan nahi dhdakan hai jo jab tak saanse hoti hai jindgi mai tab tak dosti ki dor saath saath saanso ke rup ruh mai khud mai paai jaati hai anu ji ...

Anonymous said...

sundar abhivyakti.
-------------------------------------"VISHAL"

Unknown said...

dosti ek pyaraa sa ehsaas hai.....bahut khub...

पंकज "प्रेम" said...

Yeh kavita koi aap sa dost hi likh sakta hai...
aur bakhubi yeh sari bate aapke ish kavita me jhalakta hai...khushi hai ish baat ki ki mere paas aap sa sathi hai...;):p

विवेक दुबे"निश्चल" said...

Chhupne se chhupta nahi , kakh koshish karo rukta nahi he, bandisho me bandhta nahi he. Dosti ka yah jajwa ek esa sagar he dubte he sabhi isme sabhi terta koi nahi he.

विवेक दुबे"निश्चल" said...

Dosti Kudrat ka sabse nayab tohfa he . Do dilo ko milane ka rasta he yah. Apno se mile gamo ko bhulata he yah, har jakhm ki dawa he yah. Jisko koi sahara na ho uska sahara he yah.

Unknown said...

dostee ches hee aisee hai jise mil jaye jeevan bharaa poora nazar aataahai.

Unknown said...

http://hariprasadsharma.blogspot.com/

Pintu said...

कभी-कभी क्यों हम उन लोगों को गलत मान लेते हैं,
जिनका कोई कसूर नहीं होता......

और कभी कभी क्यूँ हम उन्हीं से दुरियाँ बना लेते हैं,
जिन्हें कभी हम अपना मानते थे.......

कभी कभी क्यों हम उन्हीं से नज़र भी नहीं मिला पाते,
जिनकी नज़रों में कभी हम अपने आप को देखा करते थे......

और कभी कभी क्यों हम उनसे मिलना भी नहीं चाहते,
जिनसे कभी हम मिलने के बहाने तलाशते रहते थे....

कभी कभी क्यों हम अपने दिल का दर्द उन्हें बता नहीं पाते,
जिनके दिल में कभी हम रहते थे.....

और कभी कभी क्यों हम इतने "पत्थर दिल" हो जाते हैं...
की किसी का दिल उसी पत्थर दिल से तोड़ देते ह
कभी-कभी क्यों हम उन लोगों को गलत मान लेते हैं,
जिनका कोई कसूर नहीं होता...................kaise ho

विवेक दुबे"निश्चल" said...

Ye to khubsurat dosti ka nata hai,Jo bina kisi shart ke nibhaya jata hai,Rahe duriya to parwah nahi,Kyon ki dosti ko har pal dil me basaya jata hai…