Tuesday, January 13, 2009
अरमानो के पंख लगा ....उड़ने दो ...............
उड़ने दो ..उड़ने दो खुले आसमा में ,
अरमानो के पंख लगा ....उड़ने दो ,
जंहा सारा आसमा मेरा हो ,
जंहा ना बंदिशों का डेरा हो ...
भले मिले ना इन राहो पे फूल तो ,
उनके काँटों से भी मुझे दोस्ती करने दो ,
पर फूलो कि भांति मुझे भी खिलने दो
खिलने दो ..............
करने दो ,करने दो ...
मुझे भी अपने मन कि करने दो ,
खुद से खुद का परिचय करने दो ,
आज इस ज़माने मे ,मैंने भी बड़ी बात कर ली
खुद से खुद कि मुलाकात कर ली .........
तोडी परम्परा कि बेडिया.......
अपने खुद के सपने सजाने के लिए ,
अब तो परिवर्तन के दोर..कि शुरुआत कर दी ......
उड़ने दो ..उड़ने दो खुले आसमा में ,
अरमानो के पंख लगा ....उड़ने दो ..............
बंदिशों कि घेरे में ..छटपटाती नारी हु में ,
गलतियों से बचते हुए ,जिंदगी गुज़री ,
अपनों कि बेडियों से अब ,मुक्ति पाने लगी हू मै ,
इन बेडियों से ..जकड़ी तन और मन कि काया है ,
आज
खुलने दो ..खुलने दो ..........
मुझे भी अब हक़ के साथ
जीने दो....जीने दो .....
बचे जो पल ज़िन्दगी के ........
मुझे खुद के लिए जीने दो.......
जीने दो ...........
उड़ने दो ..उड़ने दो खुले आसमा में ,
अरमानो के पंख लगा ....उड़ने दो ...............
.....अनु.......
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2 comments:
नारी की सोच नारी की घुटन दर्द शब्दों की गहराई अनु खुब उम्दा तरीके से उतारा है आपने सच आप की लेखनी की कला बहुत बढ़िया है
tum pari lok se aayee thi,aaankho me sapne layee thi
tum dard se thi sahmi huee,labo se bhi tum pyasi thi
humne tumhare tan ko chhuha,tumne mere man ko chhuha
maine tan pe marham jo diya,tumne mujhe apnapan diya
tumne man ko samajh liya,jab mere baho me kaid huee
phir haule-haule hasne lagi,sansho me mere basne lagi
kyu tum hoke mujhse unmukt ,aakash me udhna chahti ho
ab kyu tum mere sapne todhke mujhse ajad hona chahti ho
kya mila nahi sukun tumko yaha ab kya aur pana chati ho
kyu mujhko akela bejan chodh aasman me udhna chahti ho
ab ek gujarish hai is dil ki tum samjh sako samajh jao
man ka agan hai bahut badha ishme tum udho swatrant yaha
mat chodh mujhe to tum jane ki socho ab laut bhi aao ab................
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