Wednesday, February 23, 2011
बदलते रिश्ते
मै जब भी उस से मिलती हूँ
क्यों उस जैसी हो जाती हूँ
उसके ख्यालो को सोचती हूँ
उसकी ही आहटो पे चलती हूँ
उसकी दी हुई बोली ही बोलती हूँ
फिर भी क्यों वो ....
मेरी तरह नहीं सोचता
मेरी बोली क्यों नहीं बोलता ?
मै उसके दिल को पढ़ती हूँ
उसके शब्दों को लिखने से पहले
समझती हूँ ...
उसकी सांसो को जीती हूँ
उसी के दिए नगमे गाती हूँ
उसकी यादो को दिल में बसा
सपनो की एक हसीन दुनिया सजा
उसी में खो जाती हूँ ...
फिर भी क्यों वो ......
मेरी तरह नहीं सोचता
मेरी बोली क्यों नहीं बोलता ?
वहीँ तो घर था मेरा
वहीँ तो मै उस संग खेली थी
पहला घर घर अपना
वहीँ तो मैंने अपने सपनो की
दुनिया सजाई थी
आज वो बिछड़ गया है
उसकी अगल ही दुनिया है
अलग है सपने उसके
बदल गयी है हम दोनों की तकदीरे
अब किस उम्मीद से मै अब ये कहूँ..
कि क्यों नहीं वो मेरे जैसा सोचता????????
(अंजु ....(अनु )
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11 comments:
main uske dil ko padhti ho
uske sabdo ko leekhne se pahle samajhti hoon..:)
bahut khub...itna samjha tabhi to itna pyara sa likha!!
फिर भी वह क्यों नहीं मेरी तरह सोचता .....नए विषय को उकेरा है आपने ,बधाई शायद आपके व्लाग पर पहली बार आया हूँ |
आपका हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया है! बहुत सच्ची बातें कहीं हैं!
sundar rachna
नमस्कार मित्र आईये बात करें कुछ बदलते रिश्तों की आज कीनई पुरानी हलचल पर इंतजार है आपके आने का
सादर
सुनीता शानू
दिल को छु गईं यह पंक्तियाँ।
सादर
बदलते रिश्ते और उनकी यादें ... अच्छी प्रस्तुति
आपकी यह प्रस्तुति बहुत ही अच्छी लगी.
बहुत बहुत आभार सुनीता जी की हलचल का.
मेरी प्रार्थना थी कि आप मेरे ब्लॉग पर आतीं
अपनी टिपण्णी रुपी प्रसाद से मुझे हर्षित कर जातीं.
पर लगता है मैं आपके प्रसाद के शायद मैं लायक नही.
बड़ी सुन्दर रचना है...
सादर...
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