Friday, March 11, 2011

कुछ पलो के ख्याब....


कुछ पलो के ख्याब थे ,जिंदगी बन के लौट गए .. अजीब बात थी|
रात की खामोशी भी शोर मचा के लौट गई..
अजीब रुत थी ||

चिंगारी जो रखी जुबां पे ,वो अंगार बन गई ....अजीब एहसास था |
दिल्लगी में दिल्लगी ,इस दिल की आग बन गई ...अजीब एहसास था ||

रफ्ता रफ्ता वो जिंदगी से यूँ गई ....कभी सोचा भी ना था |
खबर भी ना लगी और वो अजनबी बन गई....कभी सोचा भी ना था ||

वाकिफ नहीं थी वो मेरे इस जलते जुनून....ये कैसी तड़प थी |
परिंदे भी आकर झील से प्यासे लौट गए ...ये कैसी प्यास थी ||

हम लडखडा जाते है एक हल्की सी ठोकर के बाद .....ये अब किसका ख्याब है |
कोई अब आवाज़ भी दे तो धोखा सा लगता है ...ये अब किसका इंतज़ार है ??
(((अंजु....अनु )))

6 comments:

man na vicharo said...

koi aavaj bhi de to dhokha lagta hai..ye ab kaisa intjar hai ?

man na vicharo said...

bahooooooot badhiyaa

Amit Chandra said...

दिल के एहसासों को बखुबी शब्दों मे ढाला है आपने। आभार।

Patali-The-Village said...

दिल के एहसासों को बखुबी शब्दों मे ढाला है आपने। धन्यवाद|

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi achhi gazal

मुकेश कुमार सिन्हा said...

dil ko sakuun deti gajal...:)