Monday, April 11, 2011


एक रिश्ता दरका सा है

अभी अभी कुछ देर पहले
एक रिश्ता दरका सा है
रिश्ता दिल से था
कि था बस बातो का
पर एक विश्वास टूटा सा है ||

ये दिल लगाने वाले
अपनी ही शर्तो पे चलते है
जब मन आया याद किया
नहीं तो
तू कौन और हम कौन कि
तर्ज़ पे चलते है ||

देकर भगवान की दुहाई
दिल से खेलने की अनुमति
मांगते है
सौ सौ कसम दे कर
साथ धड़कन का मांगते है ...

.और फिर
फिर भूल के कसम अपनी
अकेला छोड़ देते है ||


इन्ही करीबियों से डर सा
लगने लगा है
उनकी नजरो में अब
क्यों ये मेरा ही
अक्स बदलने लगा है ?
क्या सच में ये रिश्ता अब दरका दरका सा है ?...........
(दरका ......मतलब की टूटा टूटा सा है )
(((((अंजु.....(((((अनु)))

4 comments:

Sunil Kumar said...

सत्‍य के बेहद निकट ...बेहतरीन प्रस्‍तुति...

Anonymous said...

kya keh diya hai ANU G

रश्मि प्रभा... said...

dil laganewale kabhi tarz pe nahi chalte , jinke paas dil nahin hote tarz ke geet wahi gate hain

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन के दरकने का डर ...अच्छी प्रस्तुति